पाकिस्तान में करतापुर की तरह और भी हैं ऐसे गुरुद्वारे, जो सिखों के पवित्र स्थलों में सबसे ऊपर हैं
आइए जानें करतारपुर के अलावा पाकिस्तान में और कौन-कौन से गुरुद्वारे हैं जिनसे भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के सिखों की आस्था जुड़ी हुई है.
नई दिल्ली:
Gurudwaras in Pakistan:आज भारत के लिए 9 नवंबर ऐतिहासिक रहा. जहां सैकड़ों साल पुराने अयोध्या विवाद (Ayodhya Dispute) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फैसला (Ayodhya Verdict) सुना दिया है वहीं करीब 72 साल से सिखों का पवित्र गुरुद्वारा करतारपुर साहिब (Kartarpur Sahib) के लिए सिख श्रद्धालुओं का पहला ‘जत्था’ पाकिस्तान में दाखिल हुआ. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देवजी के 550 वें प्रकाश पर्व से पहले खोले गए ऐतिहासिक करतारपुर कॉरीडोर (Kartarpur Corridor) पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब को पंजाब के गुरदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक से जोड़ता है. गुरुद्वारा दरबार साहिब में ही सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष गुजारे थे. आइए जानें करतारपुर के अलावा पाकिस्तान में और कौन-कौन से गुरुद्वारे हैं जिनसे भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के सिखों की आस्था जुड़ी हुई है.
गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर
पाकिस्तान पंजाब के नरोवाल जिले में स्थित करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब है. यह सिखों के लिए बेहद खास है, जो इस जगह को गुरु नानक देव की कर्मस्थली के रूप में देखते हैं. मान्यता है कि गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम तकरीबन 17-18 साल यहीं बिताए थे. करतारपुर कॉरिडोर इसी गुरुद्वारे को भारत में पंजाब के गुरदासपुर जिला स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा से जोड़ेगा.
गुरुद्वारा पंजा साहिब
सिखों के पवित्र स्थलों में सबसे ऊपर गुरुद्वारा गुरुद्वारा पंजा साहिब का नाम भी है. पाकिस्तान में रावलपिंडी से करीब 48 किलोमीटर की दूरी पर बने इस गरुद्वारे के बारे में कहा जाता है कि एक बार गुरु नानक देव जब ध्यान में थे, तभी वली कंधारी ने पहाड़ के ऊपर से एक विशाल पत्थर उन पर फेंका. पत्थर हवा में उनकी तरफ बढ़ रहा था कि अचानक ही उन्होंने अपना पंजा उठाया, जिसके बाद पत्थर वहीं रुक गया. यही वजह है कि इस गुरुद्वारे का नाम 'पंजा साहिब' पड़ा. उस पत्थर पर गुरु नानक देव की हथेली के निशान हैं.
गुरुद्वारा ननकाना साहिब
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित गुरुद्वारा ननकाना साहिब वह स्थान है, जहां 1469 में गुरु नानक देव का जन्म हुआ था. 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद पाकिस्तान चला गया. लाहौर से लगभग 80 किलोमीटर दूर इस गुरुद्वारे का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था. पहले इसका नाम 'राय-भोई-दी-तलवंडी' था, लेकिन बाद में इसे ननकाना साहिब नाम दिया गया.
गुरुद्वारा रोरी साहिब
पाकिस्तान के पंजाब में एमिनाबाद का गुरुद्वारा रोरी साहिब के बारे में मान्यता है कि 1521 में जब बाबर ने अपनी सेना से साथ यहां पहुंचकर तबाही मचाई तब गुरु नानक देव ने यहीं शरण ली थी. गुरु नानक देव ने यहां एक चमकते हुए पत्थर पर बैठकर ध्यान लगाया था और वहीं से रोरी शब्द आया है.
गुरुद्वारा डेरा साहिब
सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव के अंतिम स्थल के रूप में यह गुरुद्वारा जाना जाता है. लाहौर स्थित गुरुद्वारा डेरा साहिब लाहौर किला, हजूरी बाग चौरा और रोशनी गेट जैसे स्मारकों के बीच है.
गुरुद्वारा बेर साहिब
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में ही सियालकोट में गुरुद्वारा बेर साहिब है. मान्यता है कि गुरुनानक देव यहीं संत हजरत हमजा गौस से मिले थे. वह यहां बेर के एक पेड़ के नीचे वक्त बिताया करते थे. माना जाता है कि वह पेड़ आज भी गुरुद्वारा परिसर में मौजूद है.
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