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Diwali 2019: भगवान गणेश की कैसी मूर्ति लेना श्रेयस्‍कर, लेटी, बैठी या खड़ी मुद्रा वाली, जानें यहां

Diwali 2019: बाजार में भगवान गणेश की विभिन्‍न मुद्राओं वाली प्रतिमा मिलती हैं. इनमें बैठी हुई, लेटी हुई और खड़ी मुद्रा में अधिकतर प्रतिमाएं मिलती हैं. ऐसे में आपको यह जान लेना चाहिए कि आपके लिए कौन सी मुद्रा वाली मूर्ति लेनी चाहिए घर में किस ओर स्‍थापित करनी चाहिए..

नई दिल्‍ली:

दिवाली (Diwali 2019) पर माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की भी पूजा का महत्‍व है. धन की देवी की पूजा जहां हम समृद्धि के लिए करते हैं वहीं भगवान गणेश की पूजा सभी विघ्‍नों को हरने के लिए करते हैं. बाजार में भगवान गणेश की विभिन्‍न मुद्राओं वाली प्रतिमा मिलती हैं. इनमें बैठी हुई, लेटी हुई और खड़ी मुद्रा में अधिकतर प्रतिमाएं मिलती हैं. ऐसे में आपको यह जान लेना चाहिए कि आपके लिए कौन सी मुद्रा वाली मूर्ति लेनी चाहिए घर में किस ओर स्‍थापित करनी चाहिए..

पंडित अरविंद त्रिपाठी के मुताबिक घर में सुख और आनंद का स्थायित्व के लिए गणेश जी ऐसी प्रतिमा लानी चाहिए जो आसान पर विराजमान हों.

इसके अलावा लेटे हुए मुद्रा में हों तो ऐसी प्रतिमा को घर में लाना शुभ होता है. वहीं सिंदूरी रंग वाले गणेश को समृद्घि दायक माना गया है, इसलिए इनकी पूजा गृहस्थों एवं व्यवसायियों के लिए शुभ माना गया है.

घर में आनंद उत्साह और उन्नति के लिए नृत्य मुद्रा वाली गणेश जी की प्रतिमा लानी चाहिए. इस प्रतिमा की पूजा से छात्रों और कला जगत से जुड़े लोगों को विशेष लाभ मिलता है. इससे घर में धन और आनंद की भी वृद्धि होती है.

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गणेश प्रतिमा की स्थापना ऐसे करें

  • घर के ब्रह्म स्थान (केंद्र) या पूर्व दिशा या फिर ईशान कोण पर गणेश जी को विराजमान करना शुभ एवं मंगलकारी होता है.
  • इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी की सूंड उत्तर दिशा की ओर हो.
  • गणेश जी को कभी भी दक्षिण या नैऋत्य कोण में नहीं रखना चाहिए.
  • घर में जहां भी गणेश जी को विराजमान कर रहे हों वहां कोई और गणेश जी की प्रतिमा नहीं हो.
  • अगर आमने-सामने गणेश जी प्रतिमा होगी तो आपके लिए अशुभ फल देगी
  • गणेश जी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में ही स्थापित करना चाहिए.
  • गणेश जी की पूजा भी बैठकर ही करनी चाहिए, जिससे व्यक्ति की बुद्धि स्थिर बनी रहती है.

शास्त्रों के अनुसार गणेश जी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में ही स्थापित करना चाहिए. मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा बैठकर ही होती है. खड़ी मूर्ति की पूजा भी खड़े होकर करनी पड़ती है, जो शास्त्र सम्मत नहीं है.