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पद्मावती से लेकर पन्ना धाय मां तक, कई कहानियों को समेटे हुए है चित्तौड़गढ़

चित्तौड़गढ़ अपने आप में कई कहानियों को समेटे हुआ है। इसे रानी पद्मावती जैसी वीरांगना मिली तो दूसरी तरफ ममता की मूर्त , त्याग और बलिदान करने वाली वीरांगना पन्ना धाय मां मिली।

Updated on: 18 Nov 2017, 03:35 PM

नई दिल्ली:

राजस्थान का चित्तौड़गढ़ और 'पद्मावती' की कहानी एक बार फिर सुर्खियों में है। विवाद संजय लीला भंसाली की फिल्म को लेकर है।

इस फिल्म को राजपूत समाज के साथ ही राजनीति पार्टियों के कई नेताओं का भी विरोध झेलना पड़ रहा है। हालांकि, चित्तौड़गढ़ का इतिहास अपने आप में पद्मावती इतर कई कहानियों को समेटे हुआ है।

इसे रानी पद्मावती जैसी वीरांगना मिली तो दूसरी तरफ ममता की मूरत, त्याग और बलिदान करने वाली वीरांगना पन्ना धाय मां भी मिलीं। जिन्होंने अपने कर्म और बलिदान से इतिहास के पन्नो में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवा लिया।

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पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावं में हुआ था। राणा सांगा के पुत्र उदयसिंह को मां के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना 'धाय मां' कहलाई थी। पन्ना का पुत्र और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। लेकिन पूरी कहानी में एक नया मोड़ दूसरी दासी के पुत्र बनवीर की एंट्री से आता है।   

बनवीर चित्तौड़ के शासक बनना चाहता था इसलिए उसने राजा राणा सांगा के वंशजों को मारने का षड्यंत्र रचा। एक दिन बनवीर ने राणा के वंशज को एक-एक कर के सबको मौत के आगोश में सुला दिया। सबकी हत्या करने के बाद बनवीर राजा के बेटे उदय सिंह को मारने के लिए उसके कमरे की तरफ चल पड़ा।

पन्ना धाय को सारी घटना की जानकरी पहले ही मिल गई और उसने अपना राजधर्म, कर्तव्य निभाते हुए उदय सिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर और उसे झूठी पत्तलों से ढककर अपने विश्वास पात्र सेवक के साथ महल के बाहर भेज दिया। उदयसिंह की जगह पन्ना धाय मां ने अपने बेटे को सुला दिया।

बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्ना के आंखो के सामने उसके पुत्र को मार दिया गया। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी।

तेरह वर्ष की आयु में मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को अपना राजा स्वीकार कर लिया और उसका राज्याभिषेक कर दिया। उदय सिंह 1542 में मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए।

मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ महाराणा प्रताप को याद किया जाता है, उसी गौरव के साथ पन्ना धाय का नाम भी लिया जाता है, जिसने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था।

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