इस्लाम लोकतांत्रिक मजहब, इसमें महिलाओं को जितने अधिकार हैं उतना किसी अन्य धर्म में नहीं: दरगाह दीवान
मौजूदा दौर में नारी शक्ति को कमजोर आंकना पुरूष प्रधान सोच रखने वालों की गफलत है
अजमेर:
सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के वंषज एवं वंषानुगत सज्जदानषीन दरगाह दीवान ने महिला दिवस के मौके पर पर कहा कि इस्लाम लोकतान्त्रिक मजहब है और इसमें औरतों को बराबरी के जितने अधिकार दिए गए हैं उतने किसी भी धर्म में नहीं हैं. इसलिए मौजूदा दौर में नारी शक्ति को कमजोर आंकना पुरूष प्रधान सोच रखने वालों की गफलत है उन्हें अपनी इस सोच को बदलकर भ्रूण हत्या जैसे अमानवीय कृत्यों को त्यागना चाहिये.
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शुक्रवार को महिला दिवस के मौके पर दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने जारी बयान में कहा कि इस्लाम पहला धर्म है जिसने व्यवस्थित ढंग से महिलाओं को उस समय सशक्तिकरण प्रदान किया जब उन्हें पुरुषों के अधीन माना जाता था. एक महिला के स्वतंत्र अस्तित्व और गरिमा के साथ समानता की इस समय कोई कल्पना नहीं थी. इसलिए मौजूदा दौर में महिला को दोयम दर्जा देने वाली संकीर्ण सोच को बदलने की जरूरत है और बच्चियों को बेहतर शिक्षा देकर समाज को विकसित करने की आवश्यकता है इसके अलावा भ्रूण हत्या जैसे मानवीय कुरीतियों को त्याग कर महिला सशक्तिकरण को प्रबलता से कायम करना होगा.
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उन्होंने आगे बताया कि नारीवाद क्या है? सिर्फ महिलाओं का सशक्तिकरण और उन्हें भी पूर्ण मानव होने का अधिकार देने का आंदोलन है. इस तरह हम 20वीं सदी की शुरुआत में देखते हैं कि पश्चिमी देशों में महिलाओं की स्वतंत्रा की स्थिति अच्छी नहीं थी. 1930 के दशक के बाद ही महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त हुआ और कई पश्चिमी देशों ने इस संदर्भ में कानून पास किए. अब भी कई समाजों में पितृ-सत्तात्मक व्यवस्था लागू है. आमतौर पर लोगों में यह धारणा यह है कि इस्लाम में महिलाओं को अत्यधिक अत्याचार और शोषण सहना पड़ता है. इसके अलावा इस्लाम को लेकर यह गलतफहमी फैलाई जाती है कि इस्लाम में औरतों को कमतर समझा जाता है. जबकि सच्चाई इसके उलट है इस पर इल्जाम लगाने वाले पहले इस्लाम का अध्ययन करें, तब उन्हें पुता चलेगा कि इस्लाम ने महिलाओं को चैदह सौ साल पहले ही वह मुकाम दिया गया था जो आज के कानून भी उसे नहीं दे सकते.
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दरगाह दीवान ने महिलाओं को दिए गए विशेष अधिकारों का जिक्र करते हुए कहा कि महिलाओं को स्वतंत्र बिजनेस करने का अधिकार, इस्लाम ने महिलाओं को बहुत पहले से दिए हैं. इसके अलावा भी प्रमुख अधिकार हैं - जन्म से लेकर जवानी तक अच्छी परवरिश का हक, शिक्षा और प्रशिक्षण का अधिकार, शादी-ब्याह अपनी व्यक्तिगत सहमति से करने का अधिकार, पति के साथ साझेदारी में या निजी व्यवसाय करने का अधिकार, नौकरी करने का आधिकार, बच्चे जब तक जवान नहीं हो जाते (विशेषकर लड़कियां) और किसी वजह से पति और पुत्र की सम्पत्ति में वारिस होने का अधिकार. इसलिए वो खेती, व्यापार, उद्योग या नौकरी करके आमदनी कर सकते हैं और इस तरह होने वाली आय पर सिर्फ और सिर्फ उस औरत का ही अधिकार होता है.
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