ऐसे चुना जाता है देश का राष्ट्रपति, सांसद और विधायक होते हैं मतदाता
उत्तर प्रदेश समेत चार राज्यों में बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) की सरकार बनने के बाद एनडीए के उम्मीदवार कोविंद बढ़त की स्थिति में है।
highlights
- राष्ट्रपति चुनाव की वर्तमान व्यवस्था 1971 की जनसंख्या को आधार मानते हुए 1974 से चल रही है और यह 2026 तक लागू रहेगी
- चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा होती है
- सिंगल वोट यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकी से वोट देता है
नई दिल्ली:
देश के अगले राष्ट्रपति के लिए आज मतदान होने जा रहा है। बीजेपी की अगुवाई वाली NDA ने जहां बिहार के पूर्व राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है वहीं विपक्षी दलों ने पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को साझा उम्मीदवार बनाया है।
उत्तर प्रदेश समेत चार राज्यों में बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) की सरकार बनने के बाद एनडीए के उम्मीदवार कोविंद बढ़त की स्थिति में है। विधानसभाओं, विधान परिषदों और संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के आंकड़े को देखते हुए सत्ताधारी बीजेपी के पास राष्ट्रपति के अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए पर्याप्त वोट हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये चुनाव प्रक्रिया कैसी होती है। हम आज आपको इस बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज करता है। इसमें संसद के दोनों सदनों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 54 में राष्ट्रपति चुनाव का जिक्र किया गया है। देश की जनता अपने राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वोट से चुने गए प्रतिनिधि करते हैं।
कौन करेगा वोट
भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्य और लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद अपने वोट के माध्यम से करते हैं। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए गए सांसद सदस्य इस चुनाव में वोट नहीं डाल सकते हैं।
भारत में 7 राज्यों में विधानपरिषद है और राष्ट्रपति चुनाव में मत का प्रयोग नहीं कर सकते। क्योंकि वह जनता द्वारा सीधे चुने गए प्रतिनिधि नहीं होते हैं। सभी केंद्रशासित प्रदेश इस चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते, लेकिन दिल्ली और पुद्दुचेरी के विधायक हिस्सा लेते हैं, क्योंकि इनकी अपनी विधानसभाएं हैं।
वोटों का कैलकुलेशन
राष्ट्रपति चुनाव की वर्तमान व्यवस्था 1971 की जनसंख्या को आधार मानते हुए 1974 से चल रही है और यह 2026 तक लागू रहेगी। चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा होती है और इस विधि से प्रत्येक वोट का अपना मूल्य होता है।
सिंगल वोट यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकी से वोट देता है। वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली दूसरी और तीसरी पसंद कौन है।
यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।
सांसदों के वोट का मूल्य (708) निश्चित है मगर विधायकों के वोट का मूल्य राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करता है।
इसके साथ ही उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी देखा जाता है। जैसे सबसे अधिक जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट का मूल्य 208 है वहीं सबसे कम जनसंख्या वाले प्रदेश सिक्किम के वोट का मूल्य सात है।
वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है। इस तरह जो अंक मिलता है, उसे फिर 1000 से भाग दिया जाता है। अब जो अंक आता है, वही उस राज्य के एक विधायक के वोट का वेटेज होता है। जबकि 1000 से भाग देने पर अगर शेष 500 से ज्यादा हो तो वेटेज में 1 जुड़ जाता है।
मतों की गिनती प्रक्रिया
भारत में कुल 776 सांसद हैं, जिसमे 543 लोकसभा सांसद और 233 राज्य सभा सांसद। चूंकि प्रत्येक सांसद के वोट का मूल्य 708 है, इसलिए 776 सांसदों के वोट का कुल मूल्य हुआ 5,49,408 (लगभग साढ़े पांच लाख) भारत में कुल विधायकों की संख्या 4120 है।
इन सभी विधायकों का सामूहिक वोट है 5,49,474 (लगभग साढ़े पांच लाख)। इस प्रकार राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट करीब 11 लाख (10,98,882) होता है। जीत के लिए प्रत्याशी को 5,49,442 वोट हासिल करने होंगे। जो प्रत्याशी सबसे पहले यह वोट हासिल करता है, वह राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा।
भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है। राष्ट्रपति वही बनता है, जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे।
ऐसे तय होता है राष्ट्रपति
जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिलता है उस कैंडिडेट को रेस से बाहर कर दिया जाता है। लेकिन उस उम्मीदवार को मिले वोटों में से यह देखा जाता है कि वोटरों की दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले हैं। फिर सिर्फ दूसरी पसंद वाले वोट बचे हुए उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर होते हैं।
यदि इस वोट से किसी उम्मीदवार के कुल वोट तय संख्या तक पहुंच गया तो वह उम्मीदवार विजयी माना जाता है। नहीं तो दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाला भी रेस से बाहर हो जाएगा और यह प्रक्रिया फिर से दोहराई जाएगी।
यानी वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है। यानी इस वोटिंग सिस्टम में कोई बहुमत समूह अपने दम पर जीत का फैसला नहीं कर सकता। लोकसभा और राज्यसभा के अलावा राज्यों के विधायकों का वोट भी राष्ट्रपति चुनाव में काफी अहम हो जाता है।
राष्ट्रपति चुनाव: जानिए, सादगी वाले डॉ राजेन्द्र प्रसाद से जुड़े ये विवाद
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
-
Salman Khan Spotted in Airport: घर में फायरिंग के बाद काम पर निकले सलमान, एयरपोर्ट पर कड़ी सुरक्षा के साथ हुए स्पॉट
-
Kajol Daughter : निसा के बर्थडे से पहले इमोशनल हुईं काजोल, बेटी के लिए बयां किया प्यार
-
Lok Sabha Elections 2024: रजनीकांथ से लेकर कमल हासन तक वोट देने पहुंचे ये सितारे, जागरूक नागरिक होने का निभाया फर्ज
धर्म-कर्म
-
Akshaya Tritiya 2024: 10 मई को चरम पर होंगे सोने-चांदी के रेट, ये है बड़ी वजह
-
Abrahamic Religion: दुनिया का सबसे नया धर्म अब्राहमी, जानें इसकी विशेषताएं और विवाद
-
Peeli Sarso Ke Totke: पीली सरसों के ये 5 टोटके आपको बनाएंगे मालामाल, आर्थिक तंगी होगी दूर
-
Maa Lakshmi Mantra: ये हैं मां लक्ष्मी के 5 चमत्कारी मंत्र, जपते ही सिद्ध हो जाते हैं सारे कार्य