ऐसे दलित नेता जिन्होंने भारतीय राजनीति पर छाप छोड़ी
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News Nation Bureau | Updated : 20 July 2017, 03:39:12 PM
बी आर अंबेडकर (फाइल फोटो)
भारतीय संविधान के निर्माता डॉ भीम राव अम्बेडकर ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी। सामाजिक व्यवस्था और कानून के जानकार होने के कारण नेहरू ने अपने पहले मंत्रिमंडल में उन्हें कानून और न्याय मंत्रालय का जिम्मा दिया। जाति व्यवस्था के खिलाफ लगातार लड़ने वाले अम्बेडकर सामाजिक और आर्थिक विषयों के विद्वान माने जाते थे। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भी पढ़ाई की थी। सन 1990 में भारत सरकार ने उनके भारतीय समाज में अहम योगदान को लेकर मरणोपरान्त भारत रत्न दिया था।
जगजीवन राम (फाइल फोटो)
बाबूजी के नाम से प्रसिद्ध जगजीवन राम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बिहार से हिस्सा लिया। नेहरू कैबिनेट में श्रम, ट्रांसपोर्ट, रेलवे जैसे कई मंत्रिमंडल संभालने के बाद, ये 1977 में भारत के चौथे उपप्रधानमंत्री बने। 1971 में भारत- पाक युद्ध के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री भी थे, जिसमें बांग्लादेश का जन्म हुआ था।
के आर नारायणन (फाइल फोटो)
केरल के कोट्टयम जिले के रहने वाले के आर नारायणन 1997 में भारत के 10वें राष्ट्रपति बने। इससे पहले शंकर दयाल शर्मा के राष्ट्रपति के कार्यकाल में 1992- 1997 तक वे भारत के उपराष्ट्रपति रहे। लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से राजनीतिशास्त्र की पढ़ाई करने वाले नारायणन जापान, यूके, थाईलैंड, तुर्की, चीन और अमेरिका के राजदूत भी रहे।
कांशीराम (फाइल फोटो)
बहुजन नायक के नाम से प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक कांशी राम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों पर चलते हुए कांशी राम ने लगातार दलितों और पिछड़ों के लिए काम किया। 1991-1996 तक उत्तर प्रदेश के इटावा से सांसद रहे राम ने 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी चुनने की घोषणा कर दी थी।
मीरा कुमार (फाइल फोटो)
2017 राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए की उम्मीदवार मीरा कुमार 5 बार लोकसभा सांसद रह चुकी हैं। 1985 में यूपी के बिजनौर से चुनावी राजनीति में प्रवेश करने वाली मीरा कुमार ने अपने पहले चुनाव में राम विलास पासवान और मायावती को भारी मतों से हराया था। इसके अलावा वे 15वीं लोकसभा की अध्यक्ष भी रह चुकी है। मीरा कुमार पूर्व उप-प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं।
रामनाथ कोविंद (फाइल फोटो)
2017 राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद इससे पहले बिहार के राज्यपाल का कार्यभार संभाल चुके हैं। 1991 में बीजेपी से जुड़ने के बाद 1998 से 2002 के बीच वे बीजेपी दलित मोर्चा के अध्यक्ष रहे। कानपुर कॉलेज से लॉ की पढ़ाई करने वाले कोविंद पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई के व्यक्तिगत सहायक रहे थे। 1994 में पहली बार वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य चुने गए थे।
मायावती (फाइल फोटो)
चार बार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती भारत में दलित समाज की बड़ी नेता मानी जाती हैं। कांशीराम के द्वारा स्थापित बहुजन समाज पार्टी की मौजूदा मुखिया ने इस मानसून सत्र में बीजेपी पर नहीं बोलने देने का आरोप लगा राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। 1995 में पहली बार उत्तर प्रदेश की 17वीं की मुख्यमंत्री बनी थी। दलितों के उत्थान के लिए लगातार काम कर रही मायावती पर कई पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं। हालांकि इस बार के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की बड़ी हार हुई थी।
रामविलास पासवान (फाइल फोटो)
1980 के दशक में बिहार में दलित नेता के रूप में उभरे रामविलास पासवान ने सन 2000 में जनता दल टूटने के बाद लोक जनशक्ति पार्टी बनाई। रामविलास बिहार के हाजीपुर से लोकसभा सांसद और मौजूदा केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और जनवितरण मंत्री हैं। वे आठ बार लोकसभा के सांसद रह चुके हैं, इसके अलावा पूर्व की यूपीए और एनडीए सरकार में कई बार मंत्री भी रह चुके हैं।
उदित राज (फाइल फोटो)
उदित राज दिल्ली के उत्तरी- पूर्व लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद हैं। वे ऑल इंडिया कॉन्फेडरेशन ऑफ एससी/एसटी ऑर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। उनके प्रयासों के कारण ही वाजपेयी सरकार ने 81वां, 82वां और 85वां संविधान संशोधन पास किया था, जिसमें आरक्षण सुविधाओं में सुधार की बात थी। उदित राज भारतीय जनता पार्टी के आलोचक रह चुके हैं, लेकिन फरवरी 2014 में बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्होंने बहुत हद तक अपने विचारों से समझौता किया।