जानिए, श्राद्ध और पितृपक्ष में क्या नहीं करना चाहिए
कहा जाता है कि विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण नहीं करने से मनुष्य को इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है।
नई दिल्ली:
16 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहा है। अगले 15 दिन तक लोग अपने पूर्वजों और पितरों को जलार्पण करेंगे। पुराणों में लिखा है कि पितृपक्ष में पूर्व पुरुष अपने उत्तर पुरुष से जल लेने मृत्युलोक पहुंचते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तर्पण करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
क्या है श्राद्ध
मान्यता के अनुसार, जो वस्तु उचिक काल या स्थान में पितरों के नाम पर विधिपूर्व ब्राह्मणों को दान दी जाए, वह श्राद्ध कहलाता है। इसके जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। कहा जाता है कि विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण नहीं करने से मनुष्य को इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है।
क्यों जरूरी है श्राद्ध
ब्रह्मपुराण की मान्यता के मुताबिक, अगर पितर रुष्ट हो जाए तो लोगों को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। घर में लड़ाई-झगड़े बढ़ जाते हैं। काम में रुकावट आती है।
श्राद्ध में क्या दिया जाता है
श्राद्ध में तिल, चावल और जौ को महत्व दिया जाता है। श्राद्ध का अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों को है। तिल और कुशा का भी महत्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।
तिल का है महत्व
श्राद्ध और तर्पण क्रिया में काले तिल का बड़ा महत्व है। श्राद्ध करने वालों को पितृकर्म में काले तिल का इस्तेमाल करना चाहिए। लाल और सफेद तिल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
कौओं का महत्व
कौओं को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण करके आते हैं।
क्या नहीं करना चाहिए
जो व्यक्ति पितरों का श्राद्ध करता है, उसे पितृपक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। खान-पान में मांस-मछली को शामिल नहीं करना चाहिए। पितृपक्ष के दौरान चना, मसूर, सरसों का साग, सत्तू, जीरा, मूली, काला नमक, लौकी, खीरा और बांसी भोजन नहीं खाना चाहिए। श्राद्ध कर्म में स्थान का विशेष महत्व है। गया, प्रयाग, बद्रीनाथ में श्राद्ध और पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। जो लोग इन स्थानों पर पिंडदान या श्राद्ध नहीं कर सकते, वो अपने घर के आंगन में जमीन पर कहीं भी तर्पण कर सकते हैं। लेकिन किसी और के घर की जमीन पर तर्पण नहीं करना चाहिए। कुत्ते, बिल्ली, और गायों को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। पितृपक्ष के दौरान नए वस्त्र भी नहीं पहनने चाहिए।
इस दिन करें श्राद्ध
अविवाहित: 20 सितंबर को पंचमी तिथि होगी। जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
महिलाएं: 24 सितंबर को नवमी श्राद्ध है। इसे मातृ नवमी भी कहते हैं।
सन्यासी: 26 सितंबर को एकादशी पर दिवंगत सन्यासियों का श्राद्ध किया जाएगा।
अकाल मृत्यु वाले व्यक्ति: 29 सितंबर को चतुर्दशी पर।
ज्ञात-अज्ञात: 30 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या होगी। इस दिन सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का तर्पण किया जा सकता है।
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