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अपना घर जलाकर बेटियों ने किया मां का अंतिम संस्कार

अपना घर तोड़कर करना पड़ा बेटियों को मां का अंतिम संस्कारगरीबी इंसान को ना तो चैन से जीने देती है।

Updated on: 26 Sep 2016, 12:30 PM

कालाहांडी:

गरीबी इंसान को ना तो चैन से जीने देती है और ना ही मरने देती है। गरीबी की ऐसी ही कहानी रविवार को कालाहांडी जिले में देखने को मिली। जब एक भिखारन विधवा महिला का दाह संस्कार उसकी चार बेटियों ने अपने कंधे पर ले जाकर व अपने ही घर के हिस्से तोड़ी गई लकड़ियों से किया।

उड़ीसा के कालाहांडी जिले के डोकरीपाड़ा गांव में रविवार को गांव में घूम घूम कर पैसे,खाना मांगने वाली कनक सत्पथी नामक एक विधवा महिला का देहांत हो गये। पर पैसे की कमी होने के कारण मां के शव को उसके चार बेटियों ने अपने कंधे में उठाकर स्मशान तक ले जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। गांव में घूम मुट्ठी भर चावल मांग कर सत्यपथी स्वयं तथा अपनी विधवा बेटियों को पाल रही थी। कनक सत्पथी की कोई बेटा नहीं होने के कारण उसकी बेटियों ने ही उसके लाश को अपने कंधे में उठाकर ले गयी।

हद तो तब हो गई जब लाश को जलाने के लिए लकड़ी नहीं होने के कारण गाँव वालों ने उसी के ही घर के आधा हिस्सा तोड़कर उसमें से निकले लकड़ियों से उसकी अंतिम संस्कार कर दिया। अब टूटे हुए मकान में तीन विधवा बहन अपनी एक और छोटी बहन के साथ रहने को मजबूर है। ऐसे तो ओडिशा सरकार द्वारा किसी भी लाश के सम्मान पूर्वक अंतिम संस्कार करने के लिए हरिस्चन्द्र इज्ना के तहत दो हज़ार रुपया देने की व्यवस्था है। लेकिन लाश को छोड़ कर गांव से 50 किलो मीटर दूर सरकारी ऑफिस का चक्कर काटने कौन जायेगा इसके बारे में सरकार के पास कोई योजना नहीं है।

तीन विधवा बहन पंकजिनी दाश ( 50 ), राधा ठाकुर ( 45 ) प्रतिमा दाश ( 39 ) एवं संजुक्ता मुंड ( 40 ) जिसे पागल पति ने छोड़ दिया है। यह चारो बहन विधवा माँ के पास रहती थी। सत्पथी की मौत के बाद कोई गांववाला मदद को आगे नहीं आया। तब गरीबी और मज़बूरी में उन चारों ने मिलकर मां को अपने कंधो पर उठाकर ले जाना उचित समझा।