पंजाब चुनाव में धार्मिक डेरों और संतों का क्या असर होगा
पंजाब चुनाव में धार्मिक डेरों और संतों का क्या असर होगा। क्या वाकई डेरों के जरिए वोट तय होते हैं।
नई दिल्ली:
पंजाब-हरियाणा जैसे राज्यों में चुनावों में धार्मिक डेरों और संतों का काफी असर रहता है। यही वजह है कि चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां इन धार्मिक डेरों के धर्मगुरुओं की शरण में पहुंच जाती है और हर पार्टी की कोशिश होती है कि इन डेरों के अनुयायियों के वोट अपने पक्ष में किस तरह हथिया लिया जाए। डेरों पर तमाम पार्टियां डोरे डालने शुरु कर देती है और तब डेरे भी अपने फायदे के हिसाब से राजनीतिक पार्टियों को अपरोक्ष रुप से समर्थन देते है।
पिछले हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी को डेरा सच्चा सौदा से मिला खुला समर्थन राज्य में पार्टी की बड़ी जीत के पीछे का अहम फैक्टर माना जाता है। और शायद इसी वजह से पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तमाम राजनीतिक पार्टियां फिर से डेरों की शरण में जाने की तैयारी कर रही है। अकाली दल-बीजेपी हो, कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी सब को डेरों से समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं। पंजाब में कई बड़े डेरे है और इन डेरों के पास बड़ा आधार भी है और वोट वैंक भी है। पंजाब में इस वक्त कई डेरे सक्रिय है और इन डेरों पर अक्सर राजनेताओं को नतमस्तक होते हुए देखा जा सकता है।
पंजाब के मालवा इलाके के भटिंडा, मुक्तसर, अबोहर, मानसा, संगरुर, फिरोजपुर और मोगा जैसे जिलों में लाखों अनुयायी पाए जाते हैं। कई बीजेपी नेताओं को डेरामुखी गुरमीत राम रहीम के सामने नतमस्तक होते देखा गया। पंजाब के दोआबा इलाके के जालंधर, होशियारपुर, नवांशहर और कपूरथला जैसे जिलों में लाखों अनुयायी हैं।
पंजाब के डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल से लेकर अरविंद केजरीवाल तक हो चुके है इनके नतमस्तक हो चुके हैं। डेरे का दावा है कि वो राजनीति से दूर है लेकिन अक्सर राजनेताओं को डेरे के कार्यक्रमों में देखा गया है।
कुछ महीने पहले संत रंजीत सिंह ढ़डरियांवाले पर हुए जानलेवा हमले के बाद अरविंद केजरीवाल दिल्ली से चलकर संत ढ़डरियांवाले के डेरे पर आये और पंजाब के डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल से लेकर पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष कैप्टन अमरेन्द्र और बीजेपी पंजाब अध्यक्ष विजय सांपला भी डेरे पर देखे गये।
पंजाब के तमाम राजनीतिक दल डेरों से समर्थन लेने के मसले पर खुलकर तो कुछ भी नहीं बोल रहे लेकिन तमाम राजनीतिक पार्टियां मानती है कि डेरे समाज का अहम हिस्सा है और डेरों पर राजनेताओं को जाना ही पड़ेगा। डेरों से परहेज करने का कोई मतलब नहीं है।
पंजाब सरकार के मंत्री और अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा का कहना है कि "डेरे पर भी जाना जरुरी होता है। हमारे सीएम तो वैसे भी संगत दर्शन यानि जनता के बीच में जाने में विश्वाश रखते है। और डेरे भी हमारे समाज का ही हिस्सा है और इनके पास जाने में डरना किस बात का"
वहीं कांग्रेस के राज्यसभा सांसद शमशेर सिंह दुल्लो का कहना है कि "डेरों के पास तो जाना ही पड़ेगा, बिना डेरों के पास गये काम नहीं चलता। राजनीति में डेरों की भूमिका हमेशा रही है और अब भी है। समर्थन तो सबका मांगना है और डेरों से समर्थन मांगने का फैसला हाइकमान का होगा और डेरों के पास शक्ति भी है।
दूसरी तरफ राज्य में पहली बार चुनावी दावेदारी पेश कर रही आम आदमी पार्टी के नेता हिम्मत सिंह शेरगिल का कहना है कि "आम आदमी पार्टी ने सबको साथ लेकर चलना है और नया पंजाब बनाना है।"
आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता सुच्चा सिंह छोटेपुर के अनुसार "केजरीवाल भी सभी डेरों पर जा चुके है। हम भी डेरों पर जाएंगे और समर्थन लेंगे। डेरों का अपना महत्व है और उन्हें साथ लेकर चलेंगे।"
वहीं राजनीतिक पार्टियों को समर्थन देने के मुद्दे पर डेरों के मुखिया और धर्मगुरुओं की अलग-अलग राय है। जैन मुनि श्री तरुण सागर मानते है कि जो डेरे और धर्मगुरु अपने अनुयायियों को एक पार्टी विशेष के समर्थन में वोट डालने के लिये फतवा जारी करते है उनकी मंशा उस राजनीतिक पार्टी की सरकार बनने पर अपने फायदे की होती है। हरियाणा विधानसभा में प्रवचन दे चुके जैन मुनि ने कहा कि वो किसी पार्टी के समर्थन में तो नहीं है लेकिन उनकी निजी राय के मुताबिक प्रघानमंत्री नरेन्द्र मोदी हाल की राजनीति में सबसे काबिल नेता है।
वहीं सियासत और ग्लैमर की दुनिया में छाये रहने वाले विवादित गुरु डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा राम रहीम भी यूपी और पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले अपने पत्ते नहीं खोल रहे है। बाबा राम रहीम का पंजाब और पहले भी बीजेपी का साथ देने के आरोप लगते रहे है और अभी भी वो साफ कर रहे है कि वो बीजेपी समर्थक है।
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