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मां को है बेटे का इंतजार, एक बार गले लगा लो मेरे लाल

जब किसी बूढ़े पिता के सामने उसके जवान 32 साल के बेटे का शव रखा होता है, जिसे वह देख भी नहीं सकता। जब एक मां अपने लाल की शक्ल सिर्फ एक बार देखना चाहती है और उसे आखिरी बार भी अपने बेटे को देख पाना नसीब तक नहीं होता

Updated on: 20 Sep 2016, 03:46 PM

नई दिल्ली:

जब किसी बूढ़े पिता के सामने उसके जवान 32 साल के बेटे का शव रखा होता है, जिसे वह देख भी नहीं सकता। जब एक मां अपने लाल की शक्ल सिर्फ एक बार देखना चाहती है और उसे आखिरी बार भी अपने बेटे को देख पाना नसीब तक नहीं होता। एक पत्नी जब दरवाजे को एकटक निहारती रहती है कि शायद उसका पति एक बार आकर उसे अपने गले लगा लेगा। लेकिन सामने आता है बेटे,पति और एक बाप का जला सा पार्थिव शरीर तब उन सब पर क्या गुजरती, इसकी अंदाजा आप या हम नहीं लगा सकते है। उरी में शहीद हुए 18 जवानों के घरों में आज सन्नाटा पसरा है क्योंकि आज उनके लाल उनसे इतने दूर जा चुके हैं जो लौट के घर वापस कभी नहीं आयेगें।  

पापा का सपना पूरा करने में जुटी बेटियां

बिहार गया के जवान शहीद सुनील कुमार विद्यार्थी का शव घर पर रखा था और उनकी बेटियां स्कूल जा रही थीं। वो इसलिए ताकि अपने पिता का सपना पूरा कर सकें। क्योंकि पापा ने देश के लिए कुर्बान होते हुए अपना काम पूरा कर दिया था और अब बेटियों की बारी थी। गांव में अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्होंने अपनी बेटियों को शहर में पढ़ाई के लिए भेजा था। सुनील हमेशा से चाहते थे कि बेटे की तरह बेटियां भी उनका नाम रौशन करें। जिस पर तीनों बेटियों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पिता की मौत की खबर मिलने के बाद भी तय स्कूल की परीक्षा में हिस्सा लिया।

लांस नायक आरके यादव को क्या पता था वह नहीं देख पायेगें अपने होने वाले बच्चे को

उरी आतंकी हमले में शहीद हुए लांस नायक आरके यादव की पत्‍नी गर्भवती हैं और इसी महीने उनके तीसरे बच्‍चे की डिलीवरी होने वाली है। पर मां की कोख में पल रहे उस बच्चे को क्या पता दुनिया में आने के बाद वह पापा शब्द से महरूम हो जायेगा। उसके दुनिया में जन्म लेने से पहले ही उसके पिता का साया उसके सर से छिन चुका है। शहीद लांस नायक की दो बेटियां हैं और बड़ी बेटी की उम्र आठ साल है। जो अपने पापा को ढ़ूंढ़ रही हैं लेकिन चाह कर भी देख नहीं पा रहीं हैं।

मां आज जितनी बात करनी है, कर लो

तीन दिन पहले राकेश सिंह ने अपनी मां से बात की थी। उस दौरान अपनी मां से कहा था कि मैं जल्‍द ही ''ऊंची रेंजों में तैनात'' होने जा रहा हूं और वहां पर फोन से बात की सुविधा नहीं मिलेगी इसलिए ''जितनी बात करनी हो, कर लो।'' पर उस मां को क्या पता था कि उसके बेटे के साथ ये उसकी आखिरी बात होगी।

ताबूत से भी नहीं निकल पाया शहीद राजेश कुमार का शव

जौनपुर(उत्तर प्रदेश) की गोमती नदी के किनारे बिहार रेजीमेंट 6 के सिपाही राजेश कुमार सिंह का पार्थिव शव रखा था। पर वहां बस एक ही बात थी कि क्या ताबूत के साथ ही दाह संस्कार किया जाए या फिर हटा कर। क्योंकि शहीद के शव की हालत इतनी बुरी हो चुकी थी कि शहीद के साथ आए जवानों ने ताबूत खोलने से मना कर दिया। सिंह करीब 20 दिन पहले ही उड़ी में तैनात हुए थे।

मां करें अपने लाल का इंतजार

जम्मू कश्मीर के उरी में आर्मी ब्रिगेड के हेड क्वार्टर में रविबार को हुए आतंकी हमले में शहीद हुए 18 जाबांजों में से एक गणेश शंकर के परिजनों की आंखें अपने लाल को ढूंढ रही हैं, लेकिन देश के नाम अपनी जान कुर्बान करने वाला यह बेटा अब कभी लौट के नही आएगा। अपने जाबांज लाल की शहादत की खबर सुनते ही पूरे गांव में मातम का माहौल है।

दृष्टिहीन पिता लेना चाहते हैं बेटे का बदला

शहीद अशोक सिंह के 78 साल के दृष्टिहीन पिता जगनारायण अपनी आंखों की रोशनी वापस चाहते हैं। ताकि वो भारतीय सेना के साथ मिलकर पाकिस्तान से अपने बेटे की शहादत का बदला ले सकें। जगनारायण जी का कहना है कि जिस तरह आतंकियों ने घुसपैठ करके हमारे जवानों को मारा है, हमें भी वहीं करना चाहिए।

शहीद हवलदार अशोक कुमार सिंह का बेटा होगा सेना में शामिल

बिहार के भोजपुर ज़िले के शहीद अशोक सिंह के गांव में भी मातम पसरा हुआ है। हर किसी के कदम निकलते तो अपने घर से हैं लेकिन रूकते शहीद के घर जा कर ही है। पत्नी का रो-रो कर बुरा हाल है।  शहीद अशोक सिंह के बड़े भाई, दो भतीजे और बड़ा बेटा सेना में है। पिता की शहादत के बाद अब छोटा बेटा भी सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहता है।

जम्मू-कश्मीर में चारों तरफ सन्नाटा

जम्मू कश्मीर के उड़ी में सेना के शिविर में रविवार को हुए आत्मघाती हमले में शहीद सूबेदार करनैल सिंह का जम्मू और शहीद हवलदार रवि पॉल का सांबा (जम्मू कश्मीर) में पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इन सपूतों को अंतिम विदाई देने आए हर व्यक्ति की आंख नम थी। चारों तरफ शहीदों के लिए जोर जोर से नारे लग रहे थे तो जल्द से जल्द बदला लेने की आवाज़ें जोर पकड़ रहीं थी।