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खास है गया में पिंडदान करना, जानें, इसके पीछे की कहानी

बुद्ध की धरती गया में लोगों की भीड़ है। देश ही नहीं सीमापार से लोग यहां पितृपक्ष में पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए जुटे हुए हैं। सनातन धर्म में मान्यता है कि पिंडदान करने से पुरखों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। बिहार के गया में पिंडदान का अपना खास महत्व है।

Updated on: 24 Sep 2016, 09:17 AM

गया:

बुद्ध की धरती गया में लोगों की भीड़ है। देश ही नहीं सीमापार से लोग यहां पितृपक्ष में पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए जुटे हुए हैं। सनातन धर्म में मान्यता है कि पिंडदान करने से पुरखों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। बिहार के गया में पिंडदान का अपना खास महत्व है।

गया में ही क्यों पिंडदान?

गया को विष्णु का नगर माना जाता है। जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है। मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं।

गया में भगवान राम ने भी किया था पिंडदान

ऐसी मान्यताएं हैं कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए यहीं आये थे। और यही कारण है की आज पूरी दुनिया अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए आती है।

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कहां करते हैं पिंडदान

गया के विष्णु पद पर ज्यादातर लोग पिंडदान करते हैं। यहीं से फल्गु नदी बहती है। जहां कोई श्रद्धालु नदी के रेत में तो कोई बट वृक्ष के पास पिंडदान करता है। एक साथ बीच नदी में 60 से 70 लोग पिंडदान करते हैं।

सीता कुण्ड: ये वो जगह जहां माता सीता ने राजा दशरथ को पिंड दिया और उनका पिंडदान किया। आज वहां मन्दिर है, जहां सीता की प्रतिमा है। जब लोग गया आते हैं तो मंदिर के दर्शन जरूर करते हैं। क्योंकि मंदिर के दर्शन के वगैर पिंडदान पूरा नहीं माना जाता है।


बैतरणी सरोवर: यहां तर्पण किया जाता है। इस बैतरणी को पार करने से बैकुंठ का रास्ता मिलता है, सबसे खास यहां गौ दान की विधा है। इस सरोवर के किनारे कई गाय और बछड़े बंधे होते हैं, ऐसी मान्यता है कि गाय की पूंछ पकड़ बैतरणी पार लगता है।

अक्षय वट: सनातन धर्म में मानना है कि मां सीता को यहीं आशीर्वाद मिला। पिंडदान के बाद इस वृक्ष के पास लोग आते हैं और भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। कहा जाता है कि ऐसा वृक्ष भारत में चार जगह और एक श्रीलंका में हैं। इस वृक्ष के तने भी अब जड़ का रूप ले चुके हैं और इस अक्षय वट का एक अलग अस्तित्व है।