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बीमा (Insurance) का नहीं मिलेगा क्‍लेम (claim), अगर की हैं ये गलतियां

बीमा (Insurance) कराते वक्‍त अक्‍सर लोग मामूली सी गलती कर देते हैं. लेकिन बाद में यह गलती काफी भारी पड़ती है और कई बार क्‍लेम रिजेक्‍ट (claim rejection) हो जाता है.

Updated on: 26 Sep 2018, 02:27 PM

नई दिल्‍ली:

बीमा (Insurance) कराते वक्‍त अक्‍सर लोग मामूली सी गलती कर देते हैं. लेकिन बाद में यह गलती काफी भारी पड़ती है और कई बार क्‍लेम रिजेक्‍ट (claim rejection) हो जाता है. लेकिन कुछ सावधानियां रख कर इनसे बचा जा सकता है. बीमा (Insurance) अपने न रहने के बाद परिवार की सुरक्षा (safety) के लिए लिया जाता है, लेकिन कुछ गलतियां (mistakes) बाद में क्‍लेम (Insurance claim)दिलाने में परेशानी पैदा करती हैं. इसलिए जरूरी है लोग जब बीमा (Insurance) के लिए फार्म भरा जा रहा हो तो पूरी जानकारी दें.

बीमा रिजेक्‍ट होने के आंकड़ों पर डाले नजर
बीमा नियामक प्राधिकरण इरडा (Insurance Regulatory Authority IRDA) हर साल बीमा दावों के रिजेक्‍ट (claim rejection) होने के आंकड़े जारी करता है. पिछले वित्‍त वर्ष में जहां एलआईसी (LIC) ने 0.58 फीसदी बीमा दावे रिजेक्‍ट (claim rejection) किए, वहीं निजी कंपनियों ने 0.97 फीसदी दावे रिजेक्‍ट (claim rejection) किए हैं. हर साल बीमा (Insurance) कंपनियों के पास लाखों दावे आते हैं. इरडा (IRDA) के आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि हर साल कई हजार बीमा दावे रिजेक्‍ट (claim rejection) हो जाते हैं. कई बार यह दावे मामूली सी चूक के चलते रिजेक्‍ट (mistakes) होते हैं.

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कैसे बच सकते हैं इससे

बीमा (Insurance) कराते वक्‍त कंपनियां कई जानकारी मांगती हैं. इन जानकारियों को पूरी तरह से नहीं देने के चलते बाद में क्‍लेम रिजेक्‍ट (claim rejection) होने की दिक्‍कत बढ़ती है. इसलिए जरूरी है कि बीमा (Insurance) होने के बाद जैसे ही पॉलिसी (Policy) मिले उसे ध्‍यान से पढ़ें. अगर कहीं भी कमी नजर आए तो बीमा (Insurance) कंपनी को उसे वापस करते हुए सुधरवाएं. बीमा कंपनियों नियमत 15 दिन का फ्री लुक पीरियड (Free look period) देती हैं. इन 15 दिनों में लोगों के पास दस्‍तावेज (document) में सुधरवाने के अलावा बीमा नहीं लेने का भी विकल्‍प होता है.

सबसे पहले ध्‍यान रखने लायक बात
बीमा (Insurance) कराते वक्‍त सबसे जरूरी होता है कि परिवार की हेल्‍थ की सही जानकारी कंपनी को दें. परिवार के हेल्‍थ की सही जानकारी कंपनियां चाहती हैं. कंपनियां जानना चाहती हैं कि कहीं बीमा (Insurance) कराने वाले के परिवार में किसी को ऐसी तो कोई बीमारी की हिस्‍ट्री नहीं है, जो वंशागत कहलाती है. अगर ऐसा है तो सही जानकारी देने पर भी बीमा कंपनी पॉलिसी देती है, लेकिन प्रीमियम (premiums) थोड़ा ज्‍यादा लेती है. लेकिन बताने से फायदा यह होता है कि अगर कभी क्‍लेम (claim rejection) की जरूरत पड़ी तो दिक्‍कत नहीं आती है.

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अपनी सेहत की भी सही जानकारी दें
बीमा (insurance) कंपनियां आपकी सेहत की भी सही सही जानकारी (Infomation) चाहती हैं. अगर किसी प्रकार भी बीमारी हो तो उसे फार्म में जरूर लिखना चाहिए. आमतौर पर लोग जिन बातों को छोटा समझते हैं वह बाद में बड़ी बन जाती हैं. इसलिए छोटी से छोटी से बात बीमा कंपनी को जरूर बताना चाहिए. अगर कुछ बीमारी होगी तो भी बीमा कंपनी बीमा देती है, लेकिन थोड़ा प्रीमियम (insurance premiums) ज्‍यादा ले सकती है.

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अपने काम और आमदनी के बारे में सही जानकारी दें
बीमा पॉलिसी (insurance policy) लेते वक्‍त अपने काम की सही जानकारी देना चाहिए. इसके अलावा आमदनी के बारे में भी सही सही बताना चाहिए. कई बार लोग ज्‍यादा वैल्‍यू का बीमा लेने के लिए अपनी आमदनी की गलत जानकारी दे देते हैं. अगर कभी क्‍लेम की नौबत आती है तो यह जानकारी रिजेक्‍ट होने का कारण बन सकती है.