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समाजवादी कुनबे में ये सिंहासन पर कब्ज़े की लड़ाई है, टीपू ही सुल्तान होगा।

बात पार्टी की आगे की रणनीति पर ही हो रही थी। लेकिन बातचीत में ही मुलामय सिंह के संबंधी ने कहा कि 2017 के चुनाव में मुलायम की चुनौती शिवपाल होंगे।

Updated on: 18 Sep 2016, 06:11 PM

नई दिल्ली:

सालों पहले एक स्टोरी के सिलसिले में मुलायम सिंह के संबंधी के साथ बैठा था। बातचीत चल रही थी। पार्टी जीत कर सत्ता में आई थी। लिहाज़ा बात पार्टी की आगे की रणनीति पर ही हो रही थी। लेकिन बातचीत में ही मुलामय सिंह के संबंधी ने कहा कि 2017 के चुनाव में मुलायम की चुनौती शिवपाल होंगे। अजीब सी बात लगी। और लगा कि शायद उनकी अपनी राजनीति का गणित शिवपाल के गणित से टकरा रहा है शायद इसी लिए ये कहा होगा। लेकिन बात गहरी थी।

बात आयी-गयी हो गई। लेकिन जैसे ही अखिलेश और शिवपाल का झगड़ा शुरू हुआ तो लगा कि सालों पहले से ये प्लान मुलायम सिंह के दिमाग में साफ़ था। भाई और लड़के के भविष्य के बीच चुनाव करना है तो हिंदुस्तानी राजनीति और हिंदु्स्तानियों की परंपरा बेटे को ही चुनती है। भले ही भाई की कुर्बानी की तारीफ में नेताजी की ज़ुबान में कितने ही छाले पड़ जाएं।

इस बार की सरकार में शिवपाल के लोग काफी थे। ऐसे तमाम विधायक थे जो शिवपाल के इशारे पर इस्तीफा दे भले नहीं लेकिन लंका लगा सकते थे। लिहाजा मुलायम अपने बेटे को समय समय पर भभकियां दे कर लोगों को और उससे भी ज्यादा अपने भाई को बहलाते रहे। सरकार के बीच में टूट जाने से बहुत से लोग शिवपाल के पाले में भी खड़े हो सकते थे। लिहाजा चार साल राम राम करते हुए गुजर गए।

मंथराओं से भरे हुए सत्ता तंत्र में षड़यंत्र तो दिमाग तेज करने के काम आते है। लिहाजा षड़यंत्र बुने जाते रहे और लोग आते जाते रहे। मोहरे बदलते रहे और बिसात पर खेलने वाले पिता-पुत्र ही रहे। मुलायम सिंह की जमीनी समझ पर शायद ही किसी को ऐतराज हो। और पाला बदलने की उनकी योग्यता पहलावानी के अखाड़ों से उपजी हुई है। ऐसे में जब चुनाव नजदीक आ गए तो शिवपाल का पहाड़ा पढ़ने का समय भी आ गया। नेताजी की बिगड़ती हुई सेहत इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि जल्दी ही अखिलेश का रास्ता निष्कंटक करना होगा नहीं तो चुनाव के बाद संकट शुरू हो सकता है।

सरकार को बनाने के लिए विधायकों को जीताना होता है। और विधायकों को जीताने से पहले अपने आदमियों को टिकट देना होता है। टिकट बांटने का अधिकार किसी भी तरह से साझा करना सत्ता में साझा करना होता है। और मुलायम सिंह इसको किसी के साथ साझा नहीं करना चाहते थे। लिहाजा ये पूरा नाटक तैयार किया गया।

शिवपाल जमीन पर मजबूत आदमी है। जातिवादी कबीलाई मानसिकता का जीता जागता रूप। अपने आदमी के लिए आखिरी तक लड़ने की मुलायम सिंह की आदत के एक दम अनुरूप। भाई के लिए परछाईयों से भी लड़ जाने वाले शिवपाल में सब कुछ सही था बस इतिहास उनके खिलाफ आ गया।

इतिहास गवाह है कि ज्यादातर मौकों पर सत्ता बेटों को दी जाती है भाईयों को नहीं। और यही कारण है कि जातिवादी राजनीति के मसीहा और मुस्लिम यादव एकता के नायक मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल सिंह को धता बता दी। अब टिकट बंटवारे के वक्त अगर शिवपाल बगावत भी करते है तो उनकी आदत खराब बता कर उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएंगा। ये सारा खेल मुलायम सिंह का था और शिवपाल मुलायम की भाषा समझने में सबसे एक्सपर्ट होने के बावजूद दांव खा गए।

( इस लेख में व्यक्त किये गये विचार पूर्ण रूप से लेखक के हैं)