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अनुराग दीक्षित का ब्लॉग: आयुष्मान योजना से बदलेगी स्वास्थ्य सुविधा की तस्वीर, चौंकाने वाले हैं आंकड़ें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'आयुष्मान' स्वास्थ योजना से करीब 50 करोड़ आबादी को लगभग मुफ्त इलाज मिल सकेगा लेकिन क्या इससे बदलेगी तस्वीर.

Updated on: 27 Sep 2018, 06:17 PM

नई दिल्‍ली:

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'आयुष्मान' स्‍वास्‍थ योजना की शुरुआत की है. इसके तहत करीब 50 करोड़ आबादी को लगभग 1300 बीमारियों के लिए निजी और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिल सकेगा. जानकाराें का ऐसा अनुमान है कि अगले 3 से 4 सालों में देश में 2500 अस्पताल और 1.5 लाख आरोग्य केन्द्र खुल जाएंगे. इससे जहां गरीबों को फ्री इजाल मिले सकेगा वहीं नए अस्‍पताल खुलने से आम लोगों का भी इलाज कराने में मदद मिलेगी.

देश में 5 साल से कम उम्र के 2959 बच्चे हर रोज मौत का शिकार हो रहे हैं. अकेले टीबी के चलते 1315 और कैंसर के चलते 2227 मौत हर दिन होती हैं. इनमें से काफी जिंदगियों को बचाया जा सकता था, बशर्ते समय से इलाज दिया जा सके. ऐसे में सवाल आयुष्मान की टाइमिंग को लेकर है. चार साल सत्ता में रहने के बाद आखिरी बजट भाषण में आयुष्मान के एलान का चुनावी मतलब साफ था.

हालांकि ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ. यूपीए ने भी किसानों की कर्ज माफी का एलान 2008 में किया था. 2009 चुनाव से एक साल पहले. जाहिर है सियासत में सत्ता पहले है. वैसे सवाल बजटीय प्रावधान पर भी है. विपक्ष का आरोप है कि सिर्फ 2000 करोड़ के बजटीय प्रावधान से 50 करोड़ लोगों को इलाज देने का दावा खोखला है. वैसे विपक्ष याद रखें कि 2010 के बजट में वह भी देश में दूसरी हरित क्रांति ला रहा था. और वह भी महज़ 400 करोड़ रुपए से. हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि योजना का मौजूदा बजट बेहद कम है. इस बीच कैबिनेट ने 10 हजार करोड़ के प्रावधान को मंजूरी भी दी है.

आंकड़ें बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में 33 फीसदी पीएचसी और 40 फीसदी सीएचसी, जबकि बिहार में 42 फीसदी पीएचसी और 81 फीसदी सीएचसी में बुनियादी ढांचे की कमी है. यही कारण है कि डॉक्टर भी गांव नहीं जाना चाहते हैं. ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बीते 1 दशक में 10 हजार से ज्यादा डॉक्टरों ने गांव जाने से मना कर दिया. उन्हें लाखों रुपए का जुर्माना भरना तो मंजूर है, लेकिन गांव जाना नहीं. नतीजा ये कि देश के 6 लाख गांवों में रहने वाली 70 फीसदी आबादी के लिए केवल 20 फीसदी डॉक्टर मौजूद हैं.

स्वास्थ्य पर यूपीए सरकार जीडीपी का 1.1 फीसदी खर्च करती थी, जबकि मोदी सरकार 1.4 फीसदी. स्‍वास्‍थ पर सरकारी खर्च के मामले में भारत बांग्लादेश और अफगानिस्तान के आसपास ही है. हालांकि 15 साल बाद मोदी सरकार हेल्थ पॉलिसी भी लेकर आई है, लेकिन स्वास्थ्य राज्यों की जिम्मेदारी है. ऐसे में केन्द्र सरकार को आयुष्मान जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं के बीच गांव में स्वास्थ्य ढांचे की हकीकत को समझना होगा.