logo-image

क्या मुस्लिम वोटर नीतीश से हो रहे दूर, जोकीहाट दे रहा संकेत

नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (युनाइटेड) की जोकीहाट उपचुनाव में करारी हार के बाद बिहार की सियासी फिजा में यह सवाल तैरने लगा है कि क्या मुस्लिमों का नीतीश से मोहभंग हो गया है?

Updated on: 01 Jun 2018, 08:42 PM

नई दिल्ली:

'सोशल इंजीनियर' में माहिर समझे जाने वाले और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (युनाइटेड) की जोकीहाट उपचुनाव में करारी हार के बाद बिहार की सियासी फिजा में यह सवाल तैरने लगा है कि क्या मुस्लिमों का नीतीश से मोहभंग हो गया है?

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की पहली पारी के दौरान नीतीश की पार्टी के नेता चुनाव में जहां मुस्लिम मतदाताओं को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर 'शिफ्ट' कराने का दावा किया करते थे, वहीं आज जेडीयू 70 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली अपनी परंपरागत जोकीहाट सीट नहीं बचा पाई।

इस सीट पर साल 2005 से ही जेडीयू का कब्जा था। हाल में अररिया संसदीय क्षेत्र और जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के हालिया परिणामों से साफ है कि जेडीयू से मुस्लिम मतदाताओं का मोह टूट रहा है।

वर्ष 2005 में लालू विरोधी लहर पर सवार होकर नीतीश कुमार ने जब बिहार की सत्ता संभाली थी, तब उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक को साधना शुरू किया था, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुए। इसके बाद वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव परिणाम में मुस्लिम बहुल सीमांचल की चार सीटों- अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज में से तीन पर बीजेपी के प्रत्याशी विजयी रहे थे।

और पढ़ें: चिदंबरम पर लटकी गिरफ्तारी की तलवार, पूछताछ के लिए CBI ने भेजा समन

बिहार के एनडीए में 'बड़े भाई' की भूमिका में नजर आ रही नीतीश की पार्टी ने तब मुस्लिम मतदाताओं के वोटो को शिफ्ट कराने का दावा कर बीजेपी के लिए 'छोटे भाई' की भूमिका तय कर दी थी।

इधर, वर्ष 2014 में राज्य की सियासत में बड़ा बदलाव आया। नीतीश बीजेपी से अलग होकर अकेले चुनाव लड़े, जिसमें उन्हें जबरदस्त हार मिली। पूरे राज्य में आरजेडी भी नरेंद्र मोदी की आंधी में बह गई, लेकिन सीमांचल में मोदी लहर का असर नहीं दिखा। सीमांचल की चार सीटों में से एक भी सीट बीजेपी के खाते में नहीं गई।

राजनीति के जानकार और बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर बेबाक कहते हैं कि मुस्लिम मतदाताओं पर लालू की पकड़ कल भी थी और आज भी है। मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्ग के मतदाता नीतीश और उनके विकास के प्रशंसक जरूर रहे हैं।

और पढ़ें: कर्नाटक में कैबिनेट पर थमा घमासान, JDS को वित्त और कांग्रेस को गृह

वे कहते हैं, 'नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण हुआ है, ऐसे में नीतीश को बीजेपी के साथ चले जाने पर कुछ नुकसान तो उठाना ही पड़ा है।'

पटना के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि नीतीश के लालू को छोड़कर बीजेपी के साथ जाने से मुस्लिम मतदाता खासे नाराज हैं। ऐसे में जोकीहाट के चुनाव में जेडीयू को हार का मुंह देखना पड़ा्र।

सिंह इस परिणाम के दूरगामी प्रभाव बताते हुए स्पष्ट कहते हैं कि सीमांचल में नीतीश का जनाधार खिसका है और उनकी पार्टी को एक बार फिर से रणनीति बनाने की जरूरत है।

अररिया, आरजेडी के सांसद रहे मरहूम तस्लीमुद्दीन का गढ़ माना जाता है। जोकीहाट विधानसभा सीट जेडीयू विधायक सरफराज आलम के इस्तीफे से खाली हुई। सरफराज आलम अपने पिता तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद जेडीयू से इस्तीफा देकर आरजेडी में शामिल हुए और इसी पार्टी से अररिया से सांसद चुने गए, जो उनके पिता के निधन से खाली हुई थी।

जोकीहाट उपचुनाव में लालू की पार्टी आरजेडी के शहनवाज आलम ने जेडीयू उम्मीदवार मुर्शीद आलम को 41,224 वोटों से हराया। शहनवाज पूर्व सांसद तस्लीमुद्दीन के ही पुत्र हैं।

और पढ़ें: बेनामी संपत्ति की जानकारी देने पर मिलेगा 1 करोड़ रुपये का ईनाम