कांग्रेस कब तक लेगी झूठ का सहारा, संवेदनशील मसलों पर भी सलेक्टिव राजनीति
ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस (Congress) पार्टी ने निहित स्वार्थवश तथ्यों को दरकिनार कर वोट बैंक (Vote bank) की राजनीति करने की ही कसम खा रखी है.
highlights
- दिल्ली हाईकोर्ट के जज मुरलीधर के तबादले पर कांग्रेस ने फिर बोला झूठ. फिर की गलत बयानी.
- बीजेपी नेताओं पर भड़काऊ बयानों का आरोप लगाने वाली कांग्रेस अपने गिरेबां में झांकना भूली.
- नरेंद्र मोदी सरकार फिर बनने से कांग्रेस लगातार कर रही है नकारात्मक राजनीति. फैला रही झूठ.
नई दिल्ली:
ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस (Congress) पार्टी ने निहित स्वार्थवश तथ्यों को दरकिनार कर वोट बैंक (Vote bank) की राजनीति करने की ही कसम खा रखी है. इस बार भी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने दिल्ली हाईकोर्ट (High Court) के जज मुरलीधर के पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में तबादले समेत दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) पर गलतबयानी की. देखा जाए तो कांग्रेस सलेक्टिव राजनीति (Selective Politics) की अपनी आदत से बाज नहीं आ रही है. लोकसभा चुनाव से पहले भी राफेल (Rafale) सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप मढ़ कांग्रेस ने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) पर निशाना साधते हुए 'चौकीदार चोर है' का नारा गढ़ा था. यही नहीं, पुलवामा हमले के बाद बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical Strike) पर भी कांग्रेस ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला था. यह अलग बात है कि राफेल मसले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला आने के बाद कांग्रेस की कलई खुल गई. लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2019) में आमजनता ने ही कांग्रेस के जुमलों को नकार उसे एक और ऐतिहासिक शिकस्त दी. अब फिर काकांग्रेस मोदी 2.0 सरकार (Modi 2.0 Sarkar) पर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर हमला बोल रही है.
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हाईकोर्ट के जज के तबादले पर राजनीति
पहले बात करते हैं दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस मुरलीधर के पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में ट्रांसफर पर कांग्रेस की गलतबयानी पर. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर मुरलीधर के तबादले और जस्टिस लोया मामले पर पहले-पहल मोदी सरकार को घेरा. उनकी देखा-देखी या कहें कि निर्देश पर कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि अब न्याय करने वालों को भी बख्शा नहीं जाएगा? भाजपा नेताओं के खिलाफ मामलों की सुनवाई कर रहे जज का अचानक तबादला! जुडिशियरी के खिलाफ भाजपा की दबाव व बदले की राजनीति का हुआ पर्दाफाश जैसे जुमले गढ़ मोदी सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि 26 फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस मुरलीधर एवं जस्टिस तलवंत सिंह की दो जज की बेंच ने दंगा भड़काने में कुछ भाजपा नेताओं की भूमिका को पहचानकर उनके खिलाफ सख्त आदेश पारित किए एवं पुलिस को कानून के अंतर्गत तत्काल कार्यवाही करने का आदेश दिया था. इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला कर दिया गया.
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कॉलेजियम की सिफारिशों को ही कांग्रेस ने नकारा
मोदी सरकार को घेरने के फेर में कांग्रेस भूल गई कि हाईकोर्ट के जजों का ट्रांसफर सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की सिफरिश के आधार पर हो सकता है. केंद्र सरकार ख़ुद से फैसला नहीं ले सकती. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर यदि सरकार को आपत्ति हो, तो वह जजों से दोबारा विचार का अनुरोध कर सकती है, लेकिन सरकार सिफारिश को अस्वीकार नहीं कर सकती. कांग्रेस ने इस तथ्य की अनदेखी भी कर दी कि 12 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस मुरलीधर के अलावा दो और जजों जस्टिस रंजीत वी को बॉम्बे हाईकोर्ट से मेघालय, जस्टिस मलिमथ की कर्नाटक से उत्तराखंड हाईकोर्ट में ट्रांसफर की सिफारिश की थी. यही नहीं, 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सिफारिश के बारे में नोटिफिकेशन अपलोड होने के बाद मीडिया में ट्रांसफर को लेकर ख़बर भी चली. 26 फरवरी को न केवल जस्टिस मुरलीधर बल्कि तीनो ही जजों के ट्रासंफर को लेकर नोटिफिकेशन जारी हुआ. इसके बावजूद कांग्रेस ने सलेक्टिव पॉलिटिक्स के तहत जस्टिस मुरलीधर के तबादले को मुद्दा बनाया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो जस्टिस लोया तक को घसीट लाए. वह भी तब जब सुप्रीम कोर्ट जस्टिस लोया के मामले में भी स्थिति स्पष्ट कर चुका है.
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कांग्रेस अपना रही सीनाजोरी वाला रवैया
जाहिर है मोदी सरकार पर बदले की राजनीति का आरोप लगाने वाली कांग्रेस ने जस्टिस मुरलीधर के तबादले के भी राजनीतिकरण करने की कोशिश की. यह वह कांग्रेस का हालिया नेतृत्व है, जिसने आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला देने वाले जजों के साथ हुए बर्ताव को फिलहाल भुला दिया है. समझ यह नहीं आता कि संवेदनशील मसले पर कांग्रेस भ्रम फैलाने की कोशिश क्यों कर रही है? खासकर जब दोनों ही मसलों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है, तब मोदी सरकार पर इस तरह के हमले कर कांग्रेस एक तरह से खुद ही भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा को कम कर रही है. साथ ही मोदी सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करने का आरोप लगा रही है. इसे चोरी ऊपर से सीनाजोरी ही कहा जाएगा.
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दिल्ली हिंसा पर भी कांग्रेस की सलेक्टिव राजनीति
अब बात करते हैं दिल्ली हिंसा पर राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद से मुलाकात कर गृह मंत्री अमित शाह से त्यागपत्र देने की मांग की. दिल्ली हिंसा की निंदा कर उसके लिए गृहमंत्री अमित शाह को दोषी ठहराने की कवायद में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत उनके चश्म-ओ-चिराग राहुल और प्रियंका गांधी शाहीन बाग आंदोलन से लेकर नागरिकता संशोधन कानून पर अपने ही दिए भड़काऊ बयानों को भूल गए. 14 दिसंबर को रामलीला मैदान से सोनिया गांधी ने सीएए पर मुसलमानों से आह्वान किया था कि वे विरोध करने सड़कों पर उतरें. उन्होंने कहा था कि सीएए मसले पर इस पार या उस पार की लड़ाई लड़नी हो होगी. राहुल गांधी ने भी मोदी की तुलना हिटलर से करते हुए सीएए के खिलाफ आंदोलन की आवाज बुलंद कीं. प्रियंका गांधी ने सीएए कानून बनने के बाद कहा था जो नहीं लड़ेगा वह कायर कहलाएगा. प्रियंका तो शाहीन बाग हिंसा के बाद शुरू हुए धरना-प्रदर्शन के समर्थन में धरने पर जाकर बैठ गईं. अब वह बीजेपी नेताओं पर भड़काऊ बयानबाजी करने का आरोप लगा रही हैं. वारिस पठान से लेकर असदुद्दीन ओवैसी से लेकर शरजील इमाम से लेकर अन्य मुस्लिम नेताओं और मौलवियों के भड़काऊ बयानों पर कांग्रेस का रवैया शुतुरमुर्गी ही रहा. कांग्रेस कह सकते हैं कि अपने अस्तित्व के संकट से जूझते हुए अब तथ्यहीन और भ्रामक राजनीति पर उतर आई है.
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सिर्फ विरोध के लिए विरोध वाला रवैया
कांग्रेस को समझना होगा कि खोया जनाधार या वोट बैंक को हासिल करने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना उसके खिलाफ ही जाएगा. हो भी यही रहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के जज के ट्रांसफर पर हायतौबा मचाने वाली कांग्रेस खासकर राजनीति में सक्रिय गांधी परिवार के सदस्यों के खिलाफ ही हाईकोर्ट ने भड़काऊ बयानबाजी पर मुकदमे की याचिका स्वीकार कर ली है. एक समय सत्तारूढ़ दल का सिर्फ विरोध के लिए विरोध का रवैया वामदलों ने अपना रखा था. आज वह लगभग इतिहास बनने की कगार पर है. कांग्रेस भी उसी गति को प्राप्त होती लग रही है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने ठान लिया है कि वह अपनी रीत-नीति में बदलाव लाने के बजाय तथ्यहीन और भड़काऊ राजनीति करेगी. जाहिर है वह भूल रही है कि आम जनता अब बहुत जागरूक है और वह सही-गलत का फैसला लेने के लिए किसी राजनीतिक दल के बयानों को आधार नहीं बनाती है. अगर ऐसा होता तो दिल्ली विधानसभा में बीजेपी अच्छी-खासी सीटें जीतती. ऐसे में कांग्रेस जितनी जल्दी यह बात स्वीकार कर लेगी, अपनी वापसी की राह भी उतनी ही जल्दी हासिल कर लेगी.
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