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...जब रात के सन्नाटे में तबाह हो गईं कई जिंदगियां, लोग आज भी नहीं भूले वो खौफनाक मंजर

सच को धुंधला करने से किस को क्या हासिल हुआ इस पर चर्चा तो तब हो जब सच पर कोई बात करे. डरे हुए लोग शहर दर शहर जला सकते है और प्रेस के लोग खुलेआम गाली दे सकते है.

Updated on: 25 Dec 2019, 11:18 AM

नई दिल्ली:

सच को धुंधला करने से किस को क्या हासिल हुआ इस पर चर्चा तो तब हो जब सच पर कोई बात करे. डरे हुए लोग शहर दर शहर जला सकते है और प्रेस के लोग खुलेआम गाली दे सकते है.
" पहला ही लेख था लेकिन एक दोस्त नाराज हो गया और उसने अपने हिसाब से हासिल सबसे बड़ी गाली दे दी कि मुझे आएसएस या बीजेपी ज्वॉइन कर लेनी चाहिए, कोई नाराजगी नहीं है बस एक लाइन याद आ गयी कि बांग्लादेश/पाकिस्तान में स्कूलों में बच्चे एक दूसरे को हिंदू हिंदू कह कर गालियां देते है. एक देश जो सात हजार साल की परंपराओं से जन्मी धारा को जिंदा रखे है और जिस धर्म के चलते ये संभव हुआ उसी जमीन को तीन हिस्सों में बांटा और हिंदू शब्द को ही गाली बना दिया और इसकी जिम्मेदारी भी उसी के माथे थमा दी...खैर ये विषयातंर है.

ये लेख उन लोगों की कहानियां समझने की कोशिश भर है जो उन तीन इस्लामिक देशों में नरक भोग कर यहां इस देश में नरक भोग रहे है, और उनको बस जरा सी राहत देने की कोशिश हुई तो इसके विरोध में देश भर में आग लगा रहे लोगों की दिक्कत क्या है मुझे ये कहानी समझ नहीं आई, क्या उनके कट्टरपंथ की कहानी नुमायां होगी या फिर इस देश को भी ऐसे ही देश में बदल देने की किसी योजना का खुलासा हो सकता है. मुझे समझ नहीं आ रहा है लेकिन हम लेख के दूसरे भाग की ओर चलते है."

पाकिस्तान का हिस्सा रहा बांग्लादेश तब तक देश नहीं बना था तब भी वहां अल्पसंख्यकों (हिंदु, बौद्ध, सिख , ईसाई) के साथ वहां की मेजोरिटी के मुसलमान कोई बहुत अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे थे, लेकिन प्रचार ये किया गया कि इसके पीछे पाकिस्तानी सरकार की नीतियां लोगों को उकसा रही है. हालांकि गांव-गांव में अल्पसंख्यकों को बेदखल करने का काम लगातार आम आदमी ही कर रहा था और वो, जो सदियों से साथ रहने का दम भरता रहा. चलिए कुछ लाइनों से समझने की कोशिश करते है.

"गोलकपुर में तीस हिंदू लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया, चंचली, संध्यामणि... निकुंज दत्त की मौत हो गई. भगवती नाम की एक वद्धाकी, डर के मारे दिल की धड़कन रूक जाने से मौत हो गई. गोलकपुर में दिन के उजाले में भी बलात्कार की घटना घटी है. मुसलमानों के घर में आश्रय लेने वाली लड़कियों तक की इज्जत लूटी गयी. दासेर हाट के नांटू की चौदस सौ मन सुपाड़ी का गोदाम जला कर राख कर दिया गया. भोला शहर के मंदिरों के तोड़े जाने की घटना के समय पुलिस, मजिस्ट्रेट, डीसी चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे. गहनों की दुकानों को खुल्लमखुला लूटा गया. हिंदुओं का धोबीखाना जलाकर राख कर दिया. मानकगंज शहर का लक्ष्मी मंडप, सार्वजनिक शिवबाड़ी, दाशोरा, कालीखला, स्वर्णकारपट्टी, गदाधर पाल का ब्रीवरेज और पक्की सिगरेट की दुकान को भी तोड़ डाला गया. तीन ट्रक आदमियों ने तरा, बनियाजुरी, पुकिरया, उथली, महादेवपर, जोका. शिवालय थाने पर हमला किया. शहर के तीन किलोमीटर की दूरी पर बेतिला गांव लूटा गया. सेनपाड़ी की एक हिंदू गृहवधू के साथ बलात्कार किया गया.

मदारीपुर के रमजानपुर गांव में सविता रानी और पुष्पारानी का यूनुस सरदार के आदमियों ने बलात्कार किया. खुलना जिले के ड्यूरिया की अर्चना रानी विश्वास और भगवती विश्वास नामक दो बहनों को बाजार से लौटते वक्त वैन से जबरदस्ती खींचकर वालिद अली के घर ले जाकर बलात्कार किया गया. सिलहट के बड़लेखा विद्यालय की छात्रा सवितार रानी देर रात में पढ़ रही थी ऐसे में निजामुद्दीन ने गुंडे साथ लेकर उसका अपरहरण कर लिया. आज तक सविता की कोई खबर नहीं मिली. बुगड़ा के मृगेन्द्र चनमद्र दत्त की लड़की शेफालीरानी दत्त का जबरन अपहरण कर उसका धर्म बदल दिया गया. इस मामले में प्रशासन ने उसकी कोई मदद नहीं की. जैसोर जिले के शुड़ो और बांगडांगा गांव में हथियार लेकर चारों तरफ से घरकर कर हिंदुओं के घरों को लूटा गया. हिंदुओं की मनचाही पिटाई की गई. ग्यारह लड़कियों को रात भर रेप किया गया. बहुत सारी घटनाएं है कि मैं लिखता रहूं तो खत्म न हो.

ये कहानियां इसी तरह चलती रही है बस नाम और जगह बदलती रहती है. बांग्लादेश की इन घटनाओं का भारत से सीधा रिश्ता बताया गया और ये घटनाएं बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि विवाद में ढांचे के गिराये जाने के बाद की है. इन घटनाओं को लेकर कोई सफाई देनी की जरूरत किसी को महसूस नहीं हुई.

लेकिन कश्मीर की घटनाओं का भी दूसरे देश में बसे हुए हिंदुओं से क्या रिश्ता हो सकता है ये बात शायद मुझे भी समझ में नहीं आती अगर चीजों को बहुत सारे रैफरेंस से नहीं देखा होता. देश में हजारों सालों से अपनी जमीन पर रह रहे कश्मीरी पंडितों को बेदखल होना पड़ा और उस देश में जो सेक्युलर है और पारंपरिक तौर पर उनका अपना कहलाता है. लेकिन उस वक्त तथाकथित जनत्ंत्र समर्थक और आजादी की मांग करने वाले किसी भी संगठन की जुबां पर लगा ताला नहीं टूटा. खैर कश्मीर पर बात फिर कभी, कश्मीर का जिक्र तो यहां उन तीन इस्लामिक देशों में किस तरह अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने के लिए किया गया उसका जिक्र करना है.

हजरत बल की घटना को लेकर हिंदुस्तान में क्या हुआ इसको लेकर शायद ही लोगों को पता चला हो लेकिन बांग्लादेश में लाखों लोगों को बलात्कार, लूट और हत्याओं के दौर से गुजरना पड़ा. और ये दौर इतना लंबा था कि दो लाख लोग वहां से भाग निकले अपनी जान की अमान लेकर.

इस्लाम की ये कौन सी शाखा है जो वहां सत्ता में है और अबाध तरीके से हिंदुओं पर अमानुषिक अत्याचार करने में सतत लगी हुई है। और यहां हिंदुस्तान में बहुत से लोग सिर्फ इन घटनाओं का ब्यौरा लिखने पर आरएसएस और बीजेपी का घोषित करने में लगे रहते है. एक ख्याल ये आता है कि इन इनकी जेहनियत में पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश के उन लोगों की सोच तो नहीं जो इन अत्याचारों के पीछे है. कोई संवाद नहीं कोई वाद-विवाद नहीं सीधे शैतान बना देने वाले ये लोग है कौन, क्या है इनकी मंशा क्यों वहां हो रहे विवादों पर भी बात नहीं करने देते.

"1901 की जनगणना के अनुसार पूर्वी बंगाल में ढिन्दुओ की सख्या' 33.1 प्रतिशत थी. 1911 में यह संख्या घटकर 31.5 प्रतिशत हो गई. 1921 में 30.6 प्रतिशत 1931 में 29.4 प्रतिशत और 1941 में 28 प्रतिशत रह गयी. इकतालीस वर्ष में भारत विभाजन से पहले हिंदुओं की संख्या में पूर्वी बंगाल में पांच प्रतिशत की कमी आई थी. लेकिन विभाजन के बाद दस वर्षों में ही हिन्दुओं की संख्या 28 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत हो गयी. यानी चालीस वर्षों में जो कमी आई थी, वह महज़ दस वर्षों में आ गयी. पाकिस्तानी शासन काल में हिन्दू भारत जाने लगे. 1961 की जनगणना के अनुसार हिन्दुओं की संख्या 18.5 प्रतिशत थी, जो कि 1974 में घटकर 13.5 प्रतिशत हो गयी. लेकिन ये सिर्फ किसी किताब मेंलिख दिए गए आंकड़े नहीं है बल्कि रिसर्च शोध पेपर और दूसरी तमाम किताबों में मौजूद है.

बांग्लादेश का उदाहरण इसलिए दे रहा हूं क्योकि मुजीबुर्रहमान जिनको बचाने में भारत सरकार ने अपनी तमाम ताकत झोंक दी थी उन्होंने बंग बंधु के तौर पर कहा था कि यहां किसी भी जाति धर्म संप्रदाय के निवासी को अपनी तमाम पूजा पद्धतियों का पालन करने की छूट दी जाएगी. बंग बंधु के कत्ल के कुछ ही दिन बाद ये सब काम शुरू हो गया और ये सब इस्लाम के नाम पर सब किया गया. पाकिस्तान और अफगानिस्तान की कहानियां तो दर्द के उस पार चली जाती है. लेकिन दर्द की कहानियों के उलट हिंदुस्तान में कहानियां देखनी है तो झूठ में परोसी गई वामपथियों की कहानियां देखिये जो झूठ की चाशनी में इस तरह से परोसी गई है कि वो इसी देश में आजादी के हमदर्द और अभिव्यक्ति के रखवाले बन कर दिखा रहे है.

फैशन के तौर पर जलूसों में बैठकर या नारे लगाती हुई जनता में जो लोग वामपंथ की कहानियां जानते है वो इस बाबत से भी वाकिफ होंगे कि दुनिया में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है जिसमें वामपंथ सत्ता में आकर अभिव्यक्ति आजादी को संभाल कर रखने वाला रहा हो या फिर उसने मजलूमों को उत्पीड़ित न किया हो. इसी में अगली कड़ी में वामपंथ की एक कहानी जिसको लोगों ने भुला दिया वो शामिल करूंगा. मारीचझापी इस नाम को याद रखना क्योंकि ये नाम भी हिंदुस्तानी इतिहास के पन्नों में वामपंथ का वो काला पन्ना है जिसकों इतिहास से गायब किया.
एक और शायर जिसका शेर बहुत शिद्दत से आज लोग गुनगुना रहे हालांकि वो समझने वाले समझते है कि वो इस शेर में किसका इशारा करते है. जिसकी लाईन में बोलते है किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ही है मैं उस मैं उनके ही शेर उनकी नजर करता हूं ताकि समझ सके इस देश को वीरान करने वाले और उसमें लगे रहने वाले लोग कौन है. उनको पहचान सकते है आसानी से लेकिन पहचानना क्यों नहीं चाहते.

"चेहरों के शौक के लिए आईने कुर्बान किए है
इस शौक में अपने कई नुकसान किए है
महफ़िल में मुझे गालियां देकर है बहुत ख़ुश
जिस शख्स पर मैने कई एहसान किए है
रिश्तों के , मरासिम के, महुब्बत के, वफा के
कुछ शहर तो खुद हमने ही वीरान किए है"

(ये लेखक के अपने विचार हैं)