कहीं राफेल की तरह भोथरा न निकले कांग्रेस का चुनावी बांड्स 'घोटाले' का आरोप
राफेल की ही तरह इस मसले में भी कांग्रेस ऐसा लगता है कि 'कौआ कान ले गया' का शोर मचा रही है. कांग्रेस जिसे आरबीआई अधिकारी की आपत्ति बता रही है, वह वास्तव में एक नोट था.
highlights
- कांग्रेस चुनावी बांड्स पर एक बार फिर कहीं राफेल सरीखी हारी लड़ाई तो नहीं लड़ रही.
- सुप्रीम कोर्ट तक इलेक्टोरल बांड्स पर रोक लगाने से कर चुका है इंकार.
- चुनाव आयोग ने भी इस व्यवस्था को कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगाने वाला बताया.
New Delhi:
कांग्रेस चुनावी बांड्स को लेकर एक बार फिर कहीं राफेल सरीखी हारी हुई लड़ाई तो नहीं लड़ रही है. खासकर यह देखते हुए कि सुप्रीम कोर्ट तक ने इलेक्टोरल बांड्स पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था. हां, सुप्रीम कोर्ट ने इतना जरूर कहा था कि सभी राजनीतिक पार्टियां इसका ब्योरा निर्वाचन आयोग को उपलब्ध कराएं. इसके बावजूद कांग्रेस का इस पर हाय-तौबा मचाना समझ से परे हैं. खासकर महज एक आरटीआई के आधार पर जिसमें रिजर्व बैंक के एक बड़े अधिकारी का स्वीकारनामा है कि सरकार इस मसले पर जल्दबाजी में रही. जाहिर है आरबीआई ने अपनी आपत्ति में जल्दबाजी और एक समानातंर व्यवस्था की आशंका प्रकट की है, लेकिन इससे यह सिद्ध नहीं होता कि यह व्यवस्था ही समग्र तौर पर भ्रष्ट है.
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पारदर्शिता लाएंगे चुनावी बांड्स
गौरतलब है कि सरकार ने 2 जनवरी 2018 को चुनावी बांड को अधिसूचित किया था. इसके प्रावधानों के अनुसार ऐसा कोई भी शख्स चुनावी बांड खरीद सकता है, जो भारत का नागरिक हो या भारत में स्थापित कोई कंपनी भी इसमें निवेश कर सकती है. एक शख्स निजी तौर एकल या अन्य दूसरों के साथ संयुक्त तौर पर चुनावी बांड्स खरीद सकता है. जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29-क के तहत केवल ऐसे पंजीकृत राजनीतिक दल चुनावी बांड्स हासिल कर सकते हैं, जिन्होंने बीते चुनावों में एक फीसदी से अधिक मत हासिल किए हों. राजनीति में दान के नाम हो रही मनमानी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए शुरू की गई इस व्यवस्था के तहत राजनीतिक दल इन बांड्स को बैंक खाते के माध्यम से नकदी में बदल सकेंगे.
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सुप्रीम कोर्ट रोक लगाने से कर चुका है इंकार
इसके बाद चुनावी बांड्स को लेकर एक एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया. एनजीओ ने चुनावी बांड्स की वैधता को चुनौती देते हुए कहा था कि या तो चुनावी बंड्स को जारी करना स्थगित किया जाए या चुनावी प्रक्रिया में शुचिता बनाए रखने के लिए दानकर्ताओं को नाम उजागर किए जाए. अदालत में सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चुनावी बांड्स जारी करना सरकार का नीतिगत निर्णय करार दिया था. साथ ही कहा था कि अदालत चुनाव बाद इस योजना की पड़ताल कर सकती है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे चुनावी बांड्स की रसीदों और दानकर्ताओं की पहचान का ब्योरी सील बंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंप दें. चुनाव आयोग ने भी इस योजना को कालेधन के इस्तेमाल पर प्रभावी रोक देने वाला करार दिया था.
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कांग्रेस ने इसे करार दिया घोटाला
अब संसद के शीतकालीन सत्र के पहले आरटीआई के हवाले से सामने आई जानकारी के बाद कांग्रेस ने इसे 'घोटाला' करार दे कर संसद के दोनों सदनों में बहस की मांग कर दी और बाद में वॉक आउट कर दिया. कांग्रेस का आरोप था कि रिजर्व बैंक की मनाही के बावजूद मोदी सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बांड्स को हरी झंडी दे दी. यही नहीं, कांग्रेस ने यह आरोप भी लगाया कि महज लोकसभा चुनाव के लिए लाई गई योजना का इस्तेमाल कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले किया गया. साथ ही बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर अभी चुनाव आयोग को सीलबंद लिफाफे में बांड्स का ब्योरा नहीं सौंपा है.
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पुख्ता सबूत नहीं कांग्रेस के पास
राफेल की ही तरह इस मसले में भी कांग्रेस ऐसा लगता है कि 'कौआ कान ले गया' का शोर मचा रही है. कांग्रेस जिसे रिजर्व बैंक अधिकारी की आपत्ति बता रही है, वह वास्तव में एक नोट था जिसके तहत गुमनाम डोनेशन को वैध बताने के लिए आरबीआई अधिनियम में संशोधन की बात कही गई थी. राफेल में भी कुछ ऐसा ही हुआ था कि जिस टिप्पणी को लेकर सौदे में विरोध के स्वर होने की बात कही गई थी, वह वास्तव में सौदेबाजी में शामिल एक अधिकारी की टिप्पणी थी, जिसका विस्तार से जवाब बाद में सरकार की ओर से दिया गया था. यही कुछ चुनावी बांड्स में भी होता नजर आ रहा है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाने से इंकार और चुनाव आयोग की योजना को लेकर सराहना का बावजूद कांग्रेस 'घोटाले' का शोर मचा रही है. आरबीआई की आशंकाओं पर सरकार ने उन्हें खारिज ही किया होगा, इसका प्रमाण कांग्रेस के पास नहीं है.
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कांग्रेस बेवजह हंगामा नहीं खड़ा करे
रहा सवाल बीजेपी को सबसे ज्यादा चुनावी चंदा मिलने का तो यह दस्तूर रहा है कि सत्ता पक्ष को सबसे ज्यादा चुनावी चंदा मिलता है. अगर बीजेपी को इसमें कोई हेर-फेर करनी होती तो यह आंकड़ा भी सामने नहीं आता, जिसके तहत कांग्रेस उसे सबसे ज्यादा चंदा मिलने की बात कह रही है. हां, चुनावी बांड्स में खामियां हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सबकुछ गुमनामी में हो रहा है. प्रावधान के तहत चुनावी बांड्स खरीदते वक्त संबंधित शख्स को बैंक का केवायसी विवरण पूरा करना पड़ता है. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि चंदा किसने दिया, उसका पुख्ता स्रोत नहीं है. बेहतर होगा कि कांग्रेस सिर्फ हंगामा खड़ा नहीं करे, बल्कि देश की तस्वीर बदलने के लिए जमीन पर प्रयास करे. अन्यथा भविष्य के लिए उसकी राजनीति और भी दुरूह होती जाएगी.
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