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गर मांस के जलने की बदबू भी आपको परेशां नहीं करे...तो सोच बदलिए शुरुआत घर से करें

अपने लड़कों से यह कहना शुरू करना होगा...'तुम भी अंधेरा होने से पहले घर लौट आना. जमाना खराब है. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी सोच भी बदल जाए और तुम किसी मासूम को अपने पुरुषोचित्त दंभ से परिचित कराने लगो'.

Updated on: 01 Dec 2019, 04:26 PM

highlights

  • सबसे पहले तो लड़कियों को ही ऐसी कुत्सित सोच रखने वालों से मुकाबिल होने के लिए तैयार करें.
  • लड़कियों से कहना बंद करना होगा...'भईया से तुलना मत करो. तुम अंधेरा होने से पहले घर आ जाना'. 
  • लड़कों से यह कहना शुरू करना होगा...'तुम भी अंधेरा होने से पहले घर लौट आना. जमाना खराब है.

New Delhi:

हैदराबाद गैंग रेप और हत्याकांड के बाद देश भर में दिसंबर 2012 में हुए दिल्ली के निर्भया कांड जैसा माहौल दिख रहा है. हैदराबाद से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक कैंडिल मार्च निकल रहे हैं. आरोपियों को फांसी देने की मांग उठ रही है. इनमें से कुछ समझदार लोग फास्ट ट्रैक कोर्ट में पूरे मामले की सुनवाई कर दोषियों के लिए कड़ी से कड़ी या कहें कि 'दुर्लभ' सजा देने की मांग कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर फैसला 'ऑन द स्पॉट' के नारे लग रहे हैं. 'सभ्य समाज' के पुरुषों को ललकारा जा रहा है कि उनका 'खून खौलना' कब शुरू होगा. स्थानीय बार कॉउंसिल ने आरोपियों की तरफ से मुकदमा नहीं लड़ने का निर्णय किया है. निर्भया कांड पर भी ऐसे ही नजारे देखने में आए थे, लेकिन एक कड़वी सच्चाई यही है कि बीते लगभग आठ सालों से कुछ नहीं बदला है. हर रोज कहीं न कहीं बलात्कार हो रहे हैं. गैंग-रेप की घटनाएं सामने आ रही हैं और हम बतौर समाज 'तीखी प्रतिक्रिया' देकर अपने 'नागरिक कर्तव्यों' की 'इतिश्री' कर ले रहे हैं.

यकीन मानिए हैदराबाद कांड की विभीषिका बताने के लिए शब्द नहीं हैं. एक 'डर' है. हम किस ओर जा रहे हैं. चंद सिरफिरे और पुरुषात्मक दंभ से वशीभूत मानसिक सोच वाले 'दरिंदों' ने एक 26-27 साल की लड़की की क्या गत कर दी!!! सोशल मीडिया पर तैरती उसकी तस्वीरें किसी की भी आंखें नम कर सकती हैं. कुछ लोग यही सोच रहे हैं कि गनीमत है कि उनके लड़कियां नहीं हैं. इस सोच पर कुछ लोग ऐसी सोच रखने वालों से कह रहे हैं कि इससे तो कोई लड़की ही नहीं पैदा होगी! सही सोच है. बिल्कुल सही सोच है, इस तरह से तो स्त्री-पुरुष अनुपात ही बिगड़ जाएगा. इस मामले में हर शख्स की अपनी 'सोच' है. यह जो सोच है वह उन 'दरिंदों की सोच' को कठघरे में खड़ी करती है. लोग पूछ रहे हैं कि आखिर किस सोच के वशीभूत होकर नरपिशाचों ने मासूम को अपनी हवस का न सिर्फ शिकार बनाया, बल्कि उसे जिंदा फूंक दिया. एक 'सभ्य समाज वालों की सोच' है, जो जाने-अनजाने टकरा जाती है. इसकी गूंज-अनुगूंज कहीं न कहीं लड़कियों के पहनावे को जिम्मेदार ठहरा उन्हें ही कठघरे में खड़ा कर देती है.

अलग-अलग सोच रखने वाला यह समाज यह एक गंभीर सवाल क्यों नहीं सोच पा रहा है कि हैदराबाद की उस मासूम लड़की को जिंदा फूंके जाने के बाद उठी मानव मांस की बदबू भी क्यों कर किसी की झकझोर नहीं सकी? सवा अरब से अधिक आबादी वाले देश में हरेक नागरिक के पीछे पुलिस होगी, यह सोच भी बेमानी है. फिर कैसे हो इस समस्या का निदान? दो तरीके हैं. सबसे पहले तो लड़कियों को ही ऐसी कुत्सित सोच रखने वालों से मुकाबिल होने के लिए तैयार करें. लड़कियों को सेल्फ डिफेंस के साथ ऐसी स्थिति से निपटने के लिए मानसिक-शारीरिक तौर पर तैयार करें. उन्हें समझाएं कि पुरुषोचित्त दंभ रखने वालों के पास भी एक 'कमजोरी' होती है, वहां 'वार' करें. पर्स में मिर्च पाउडर, तेज आवाज करने वाली सीटी रखवाएं ताकि ऐसी किसी आपदा के समय वह किसी सभ्य सोच रखने वाले का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सके. यह सोच कहीं अधिक कारगर होगी और लड़कियों की कानून-पुलिस पर निर्भरता कम करेगी. पुरुषोचित्त दंभ रखने वाले चोट खाने के बाद किसी के पास अपना मुंह लेकर जा भी नहीं सकेंगे.

दूसरे अपने-अपने बच्चों के मासूम मन में उनके बचपने से ही यह सोच भर दें कि लड़कियां सिर्फ एक 'उसी काम' के लिए नहीं बनी हैं. वह सिर्फ कहने के लिए बराबर नहीं हैं, बल्कि सच में बराबर हैं. इसके लिए आपको घर से शुरुआत करनी होगी और लड़कियों से कहना बंद करना होगा...'भईया से तुलना मत करो. तुम अंधेरा होने से पहले घर आ जाना'. इसके साथ ही अपने लड़कों से यह कहना शुरू करना होगा...'तुम भी अंधेरा होने से पहले घर लौट आना. जमाना खराब है. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी सोच भी बदल जाए और तुम किसी मासूम को अपने पुरुषोचित्त दंभ से परिचित कराने लगो'. यह टोका-टाकी जब तक समाज के कथित सभ्य समाज के लोग अपने बच्चों के प्रति विकसित नहीं करेंगे, तब तक वास्तव में कुछ नहीं हो सकेगा. तब तक लड़कियां शाम के धुधंलके से ही डरती रहेंगी. स्कूटी का टायर पंचर होने पर हैदराबाद की मासूम की तरह अपनी बहन से कहती रहेंगी... डर लग रहा है. यकीन मानिए हमारे देश का कानून लचर है. सालों लग जाएंगे एक निर्भया को न्याय मिलने में. अपनी बेटियों को न्याय दिलाना है तो शुरुआत घर से करें. समाज अपने आप ही बदल जाएगा. ध्यान दे हम सभ्य समाज में रहने का दंभ भरते हैं. अयोध्या मसले पर आए फैसले के पक्ष-विपक्ष में तर्क करते हैं. इसके साथ ही जाने अंजाने श्रीराम और रावण को भी याद करते हैं. उस रावण को जो राक्षस था और जिसने सीता का अपहरण किया था. उसने भी सीता को अशोक वाटिका में कैद कर रखा था, छुआ तक नहीं था.  यह उसकी 'सोच' थी.