भाषा और इतिहास भूल गए तो अब देश भी भूल जाओ भारतीयों...
भाषा और इतिहास भूलना किसी भी देश की आखिरी भूल साबित होता है. मैं देखता हूँ कि कट्टरपंथियों को हर झूठ को इस्तेमाल करते हुए कि वो क्या चाहते है, गूंगी, बाहरी, और अंधी दुनिया भी जानती है कि वो क्या चाहते है.
नई दिल्ली:
शहरों को जलाते वक़्त लपटों की चपेट में हाथ भी कुछ जलाने वालों के जल गए
अब जले हुए शहर की पीड़ा दर्द में जलाने वालों का भी साझा है.
क़त्ल करते वक़्त बेगुनाहों का
क़ातिलों के खून के कुछ क़तरे ज़मी में मिल गए, अब नारा है ज़मीन में मिला ये सारा खून हमारा है.
भाषा और इतिहास भूलना किसी भी देश की आखिरी भूल साबित होता है. मैं देखता हूँ कि कट्टरपंथियों को हर झूठ को इस्तेमाल करते हुए कि वो क्या चाहते है, गूंगी, बाहरी, और अंधी दुनिया भी जानती है कि वो क्या चाहते है. लेकिन भरत की संतानें विरोध कर रही है जुल्म के शिकार हुए उन लोगों का जिनका भरत पर यकीन है, उनका जो भारत पर यकीन करते है. ये वाकई इतिहास से विरक्त लोगों के नारे है. राजनीतिक कारणों से तीन देशों के शरणार्थियों के विरोध कर रहे गैर मुस्लिमों को हटा कर देखें तो इन धरने-प्रदर्शनों में शामिल गैर मुस्लिम की भाषा पर गौर करे तो शायद ये निष्कर्ष निकले.
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मैं इस मिट्टी में तैमूर के खून को भी शामिल समझूं या नहीं शायर साहब. एक ही उदाहरण लिख रहा हूं वैसे हजारों लिख सकता हूं. "शुक्रवार की सुबह से ही सेना पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रह गया था. लूट के लोभ व जोश में धीरे-धीरे सारी की सारी फौज दिल्ली के तीनों शहरों में घुस पड़ी. उन के मन में उस समय और कोई विचार नहीं रह गया था. बल्कि नागरिकों को कत्ल करने, लूटने और स्त्रियों को कैद करने की होड़ सी मच गई. शुक्रवार को सारे दिन और सारी रात इसी तरह का कत्लेआम, लूटमार और आग लगाने का दौर जारी रहा. अगले दिन शनिवार था और रबी उल आखिरी महीने की 17वीं तारीख थी. इस दिन भी खूब लूटपाट और मारकाट मची.
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दिल्ली की ये लूट इतनी बड़ी थी कि हर सिपाही को 50 से 100 तक हिंदू कैदी के रूप में हाथ लगे. इसमें स्त्री, पुरूष और बच्चे सब शामिल थे. मेरा एक भी सैनिक ऐसा नहीं था, दिसने 20 से कम गुलाम बनाएं हो. इन गुलामों के अतिरिक्त और भी बहुत सी चीजें लूट में हाथ लगी जैसे माणिक्य, हीरे, लाल, मोती, सोने और चांदी के गहने. हिंदू औरतों के गहने इतनी बड़ी तादाद में मिले कि उसने पिछली लूटों के सारे के कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। सैय्यद, उलमा और दूसरे मुसलमानों के घरों को छोड़ कर सारा शहर लूट लिया गया.
(मैं किसी धर्म विरोध में नहीं लिख रहा हूँ इस CAA विरोधी आंदोलन के चरित्र पर अपनी समझ साझा कर रहा हूं, आपको पाने विचार रखने की छूट है बिना किसी गाली-गलौच के)
ये लेखक के अपने विचार हैं.
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