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किडनी चोरी होने के बाद बदल गई रिक्‍शा चालक की किस्‍मत, गांव से पहुंच गया स्‍विट्जरलैंड

यह कहानी है एक ऐसे रिक्शा चालक की जो आया था बरेली से लखनऊ रोजी रोटी की तलाश में, लेकिन भारतीय दूरसंचार विभाग के एक बड़े अफसर के झांसे में आकर अपनी किडनी गवां दी.

Updated on: 04 Feb 2019, 07:46 AM

नई दिल्‍ली:

यह कहानी है एक ऐसे रिक्शा चालक की जो आया था बरेली से लखनऊ रोजी रोटी की तलाश में, लेकिन पंजाब के भारतीय दूरसंचार विभाग के एक बड़े अफसर के झांसे में आकर अपनी किडनी गवां दी. इसके बाद किडनी चुराने वालों के खिलाफ उसने न केवल न्याय की लड़ाई लड़ी बल्कि अंग्रेजी, हिंदी और मलयालम में अपनी आपबीती लिख डाली. किताब का नाम रखा ' दे स्टोल माय किडनी'. किताब से मिली रॉयल्टी और संघर्ष के दौरान मिले साथियों की मदद से उसने स्नातक की डिग्री हासिल की. इसके बाद उसने स्पेनिश भाषा में डिप्लोमा किया. आज स्विट्ज़रलैंड की नागरिकता लेकर एक चैनल में वह कार्यरत है. इसके बावजूद वह अपने देश्स के प्रति अपनी जिम्‍मेदारी नहीं भूला, वह आज भी बरेली में बुजर्गों और बच्चों के लिए एक आश्रम बनवाया और इसमें रहने वाले लोगों का खर्च उठा रहा है.

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हम बात कर रहे हैं मूल रूप से उत्‍तर प्रदेश के बरेली के रहने वाले अकरम रजा खां की. गरीबी में पले बढे़ अकरम के पूर्वज कभी ज़मींदार थे, लेकिन आज़ादी के बाद ज़मींदारी नहीं रही. परिवार की आर्थिक हालात को बेहतर करने के लिए अकरम 1998 में लखनऊ आ गए. यहां वह किराये पर रिक्शा लेकर चलाने लगे. रोजाना इतनी कमाई हो जाती थी अकरम अपना खुद का खर्च उठा सकते थे.

13 मार्च 1998 को होली थी और अकरम अपना रिक्शा चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने खड़ा कर सवारी का इंतजार कर रहे थे. इतने में एक सूटबूट में स्मार्ट सा दिखने वाला आरसी गुप्ता नामक एक व्यक्ति अकरम से िमला और लालबाग चलने को कहा. यात्रा के दौरान उसने खुद को सरकारी अफसर बताया और दिल्ली में नौकरी लगवाने की बात कही. अकरम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. एक तो सरकारी नौकरी ऊपर से पगार चार हजार रुपया महीना. अगले ही दिन वह उस अफसर के साथ दिल्ली रवाना हो गए.

अकरम को दो दिन दिल्ली में गुप्ता अपने साथ रखा. इसके बाद वह उन्हें जालंधर ले गया. यहाँ उन्हें बतौर माली के रूप में काम मिला. इस बीच गुप्ता ने बताया कि सरकारी नौकरी के लिए मेडिकली फिट होना जरूरी है और कई सारे टेस्ट कराने पड़ेंगे. सवाल नौकरी का था तो वह सहर्ष तैयार हो गए. अकरम के कई सारे मेडिकल टेस्ट किए गए. 26 अप्रैल 1998 को गुर्दे में पथरी बताकर उनका ऑपरेशन किया गया. अकरम के अनुसार अस्पताल की एक नर्स ने उनकी तारीफ करते हुए कहा,' आपने गुर्दा दान करके गुप्ताजी की पत्नी की जान बचा ली. ' यह सुनकर अकरम सन्न रह गए.

पोल खुलने के डर से गुप्‍ता ने अकरम को अस्‍पताल से िडस्‍चार्ज कराकर अपने घर में नज़रबंद कर लिया. इस बीच अकरम कई बार गुप्ता के चंगुल से निकलने की कोशिश की. सितंबर 1998 में किसी तरह वहां से निकलने में सफल हो गए.

गुप्ता के घर से निकलने के बाद अकरम ने लखनऊ का रुख किया. किडनी गंवाने के बाद अकरम के पास खोने के लिए कुछ नहीं था. वह हर हाल में अपने गुनहगारों को उनके अंजाम तक पहुंचाना चाहते थे.

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अकरम लखनऊ में नाट्यकर्मी रूपरेखा वर्मा के संपर्क आए. उन्‍होंने कई नुक्कड़ नाटक किए. इसी दौरान नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से नीलम गुप्ता और फिल्म अभिनेता अमोल पालेकर ने अकरम की प्रतिभा पहचानी और उन्हें दिल्ली बुलाया. नीलम ने दिल्ली में न केवल अकरम को अभिनय की बारीकियां सिखाई बल्कि भाषा व रहन-सहन का सलीका भी सुधारा. इसके बाद उनको कई धारावाहिकों में छोटे मोटे रोल मिले.

अकरम की मुलाकात समाज सेविका शबनम हाशमी से हुई. हाशमी की मदद से उनकी आपबीती हिंदी-अंग्रेजी अख़बारों की सुर्खियां बनी. इसी दौरान उनकी मुलाकात दिल्ली के गोल डाकख़ाना चर्च में आर्क बिशप से हुई. उन्होंने अकरम को एक वकील मेरी सकारिया से मिलाया और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की पहल पर लखनऊ में गुर्दा चोरों पर केस दर्ज हुआ.

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सकारिया की प्रेरणा और नीलम की मदद से अकरम ने किताब लिखी ,' दे स्टोल माय किडनी'. तीन भाषाओँ में छपकर यह किताब जब मार्केट में आई तो केस वापस लेने के लिए अकरम को पहले पैसे का प्रलोभन दिया गया. इन्‍कार करने पर उनपर हमले भी कराए गए, लेकिन वह तो किसी और मिटटी के बने थे. वह इन हमलों से डरे नहीं और अपनी लड़ाई जारी रखी. यह केस न्यायालय में अभी विचाराधीन है. अकरम को उम्‍मीद है कि एक न एक दिन उनके गुनहगार सलाखों के पीछे होंगे.

दिल्‍ली में एक दिन अकरम की मुलाकात स्पेन के राजदूत से हो गई. उन्होंने अकरमको स्पेनिश सीखने की सलाह दी. वह स्पेनिश सीखकर उनकी मदद से स्पेन पहुँच गए. वहां पर उन्‍होंने आगे की पढाई जारी रखी. इसका सारा खर्च ईसाई मिशनरीज उठा रही थी. इसके बाद वह स्विट्जरलैंड गए जहां एक टीवी चैनल में उन्हें काम मिल गया.


अकरम के अनुसार वहां वह बतौर पेइंग गेस्ट एक बुजुर्ग महिला क्रिस्टियन अगाथ के घर में रहने लगे. उनके व्यवहार से खुश होकर अगाथ ने एक भव्य समारोह में उनको अपना दत्तक पुत्र घोषित कर दिया. इसकी वजह से अकरम को वहां की नागरिकता और करोड़ों की संपति मिल गई.

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दौलत और शोहरत मिलने के बावजूद भी अकरम जमीन से जुड़े रहे. भारत और यहां के लोगों के लिए उनके दिल में प्रेम कभी कम नही हुआ. उन्होंने बरेली में बुजुर्गों और बच्‍चों के लिए एक आश्रम बनवाया. इस आश्रम का सारा खर्च अभी भी वही उठा रहे हैं. अपराधियों से डर कर हार मान लेने वाले लोगों के लिए अकरम एक मिसाल हैं. जिन्होंने किडनी चुराने वालों की नींद उड़ा दी.