logo-image

महिला का घर सीज करने पहुंचे अधिकारियों को दिखा ऐसा नजारा.. खुद ही चुका दिया सारा लोन और दिए 65 हजार रुपये

हरगोविंद के परिवार की ऐसी हालत देख बैंक अधिकारियों ने न सिर्फ उनका बचा हुआ कर्ज चुकाने का फैसला किया बल्कि उन्होंने हरगोविंद की बेटियों की शिक्षा की भी जिम्मेदारी ले ली.

Updated on: 19 Feb 2019, 08:40 AM

सागर:

मध्य प्रदेश के सागर में 8 महीने पहले एक ऐसे शख्स की मौत हो गई थी, जिसने अपना घर बनाने के लिए बैंक से लोन लिया था. मृतक का नाम हरगोविंद था, उसे ब्लड कैंसर था. करीब 8 महीने पहले 5 जून 2018 को ही हरगोविंद की ब्लड कैंसर से मौत हो गई थी. उसका परिवार इस स्थिति में नहीं था कि वे बैंक से लिए लोन को चुका सकें. काफी समय तक हरगोविंद का परिवार लोन की किश्त जमा नहीं कराया तो बैंक अधिकारी मृतक के घर को सीज करने के लिए पहुंच गए. हरगोविंद के घर पहुंचते ही अधिकारियों के होश उड़ गए. उन्होंने देखा कि पैसों की किल्लत की वजह से ही उनकी बेटियों की पढ़ाई भी छुड़वा दी गई है. इसके अलावा परिवार की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि वे हर महीने 900 रुपये की किश्त जमा करने में भी सक्षम नहीं थे.

ये भी पढ़ें- पूरे चेहरे पर उग आते हैं घने बाल, बच्चे ने गंभीर बीमारी के आगे कभी नहीं टेके घुटने, भावुक कर देगी कहानी

हरगोविंद के परिवार की ऐसी हालत देख बैंक अधिकारियों ने न सिर्फ उनका बचा हुआ कर्ज चुकाने का फैसला किया बल्कि उन्होंने हरगोविंद की बेटियों की शिक्षा की भी जिम्मेदारी ले ली. हरगोविंद की पत्नी दीपाली ने बताया कि हरगोविंद एक मेडिकल की दुकान पर काम करता था. वेतन के रूप में हरगोविंद को हर महीने 5 हजार रुपये मिलते थे. दीपाली ने बताया कि करीब तीन साल पहले हरगोविंद ने खुद का घर लेने का मन बनाया था, जिसे पूरा करने के लिए उसने बैंक से एक लाख रुपये का लोन लिया था. लेकिन लोन चुका पाने से पहले ही ब्लड कैंसर ने उसकी जान ले ली. दीपाली ने बताया कि घर आने के कुछ दिन बैंक से अधिकारियों का फोन आया और उन्होंने कहा कि उनके घर का लोन चुका दिया गया है. इसके साथ ही अधिकारियों ने दीपाली को बेटियों की पढ़ाई के लिए 65 हजार रुपये भी भेजे हैं.

ये भी पढ़ें- सांसद ने सुपरमार्केट से चुराया सैंडविच, संसद में पोल-पट्टी खुलने के बाद देना पड़ा इस्तीफा.. जानें पूरा मामला

दीपाली और हरगोविंद की तीन बेटियां हैं. पति की मौत के बाद दीपाली ने घर चलाने के लिए पापड़ बनाने का काम शुरू कर दिया था. लेकिन पूरे दिन भी पापड़ बनाने के लिए दीपाली को केवल 50 रुपये का मेहनताना मिलता है. इतने रुपये में दीपाली अपने परिवार को एक वक्त का खाना भी नहीं खिला पा रही थी. जिसकी वजह से उनकी बेटियों की पढ़ाई भी छूट गई थी.