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एक मगरमच्‍छ के मरने पर पूरे गांव वालों की आंखों में आंसू, जानें ऐसा क्‍या था उस 'गंगाराम' में

अगर किसी तालाब या नदी में आपका सामना मगरमच्‍छ से हो जाए तो आपको अपने सामने साक्षात मौत नजर आएगी.

Updated on: 10 Jan 2019, 08:23 AM

रायपुर:

अगर किसी तालाब या नदी में आपका सामना मगरमच्‍छ से हो जाए तो आपको अपने सामने साक्षात मौत नजर आएगी. सामने मुंह फाड़े खड़ी मौत को देखकर अच्‍छे-अच्‍छे के रौंगटे खड़े हो जाएंगे. लेकिन क्‍या कोई मगरमच्‍छ पूरे गांव के लिए इतना प्‍यारा हो सकता है जिसके मरने पर क्‍या बूढ़ा, क्‍या जवान, बच्‍चे या महिलाएं, जिनकी आंख नम न हुई हो. यह कहानी कोई फिल्‍मी नहीं है. छत्‍तीसगढ़ के बेमतरा जिले के मोहतरा गांव की है.

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दरअसल गंगाराम एक ऐसा मगरमच्छ था जो सौ साल से अधिक उम्र का था. बताया जाता है कि गंगाराम की आयु 130 वर्ष थी. हालांकि इसे लेकर कोई प्रमाण नहीं है. वैसे इस बुढ़े मगरमच्छ का नाम गंगाराम कब और कैसे पड़ा इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है.राजधानी रायपुर से 80 किलोमीटर और बेमेतरा जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर बावामोहतरा में गंगराम की कहानी सौ साल अधिक पुरानी है. वे बतौर प्रत्यक्षदर्शी के तौर बताते हैं कि उ बावामोहतरा गांव वालों से बातचीत में यह पता चला कि बावामोहतरा एक धार्मिक-पौराणिक नगरी के रूप में जिले के भीतर अपनी पहचान रखता है.

अब तालाब के पार, गलियों में नहीं दिखेगा गंगाराम

इस गांव में महंत ईश्वरीशरण देव यूपी से आए थे. वे पहुँचे हुए सिद्ध पुरूष थे. बताते हैं कि वही अपने साथ पालतू मगरमच्छ लेकर आए थे. उन्होंने गांव के तालाब में उसे छोड़ा था. बताते हैं उनके साथ-साथ पहले कुछ और भी मगरमच्छ थे. लेकिन समय-काल में सिर्फ गंगाराम बचा रहा. यह भी बताते हैं कि गंगाराम ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया. जबकि तालाब का इस्तेमाल गांव के लोग निस्तारी के रूप में सालों से करते आ रहे हैं. हां एक बार जरूर एक महिला पर गंगाराम ने हमला बोल दिया था लेकिन बाद में छोड़ दिया. गंगाराम कभी-कभी तलाब के पार आकर बैठ जाता था…बारिश के दिनों में वह गांव की गलियों और खेतों तक पहुँच जाता था. कई बार खुद गांव वालों ने उसे पकड़कर तालाब में डाला है.

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गांव वाले गंगाराम को देव की तरह ही पूजते रहे हैं. ग्रामीणों ने कभी भी गंगाराम को परेशान नहीं किया. एक आत्मीय रिश्ता इस बेजुबान मगरमच्छ से गांव वालों का जुड़ गया था. मोहतरावासियों का दुःख-सुख का साथी गंगाराम रहा है. और यही साथी मंगलवार 7 जनवरी को हमेशा के लिए मोहतरावासियों को छोड़कर चला गया. मंगलवार की सुबह जब गंगाराम के निधन की खबर गांव में लगी तो पूरा गांव तलाब किनारे इक्कठा हो गया. ग्रामीणों ने इसकी सूचना वन विभाग को दी. वन विभाग की टीम जब मगरमच्छ को ले जाने के लिए पहुँची तो गांव वाले गंगाराम की अंतिम रास्ता रोककर खड़े हो गए.

तलाबा पार बनेगा गंगाराम का स्मारक

एक जीव से इंसानी प्रेम और दिल का रिश्ता देख वन विभाग की टीम भी भाव-विभोर हो उठी. वन विभाग के एसडीओ आरके सिन्हा बातचीत में कहा कि सुबह गांव वालों से मगरमच्छ गंगाराम के निधन की खबर मिली. टीम मौके पर पहुँची. टीम ने गंगाराम का पीएम किया. पीएम रिपोर्ट अभी आई नहीं तो मौत का कारण पता नहीं. लेकिन गांव वालों की मांग और विनम्र आग्रह पर हमने गंगराम को गांव में दफन कर दिया. गांव वालों की मांग के मुताबिक उसी तालाब के पार पर जिस तालाब में गंगाराम रहा है. अधिकारी सिन्हा ने यह भी बताया कि गांव वाले वहां गंगराम का स्मारक बनाना चाहते हैं. तो ये थी मगरमच्छ गंगाराम की दिल छू लेने वाली कहानी. ऐसी सच्ची कहानियां बहुत कम पढ़ने को मिलती है. लेकिन कभी अगर मिले तो जरूर पढ़ें. क्योंकि क्या पता आपको कब कहां कोई गंगाराम मिल जाए.

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