National Sports Day: Major Dhyan Chand Birthday, जानिए भारतीय सिपाही से लेकर 'हॉकी के जादूगर' बनने तक का सफर
'हॉकी के जादूगर' के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्द और पू्र्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी एंव कप्तान मेजर ध्यानचंद का आज 113वां जन्मदिन है।
नई दिल्ली:
'हॉकी के जादूगर' के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्द और पू्र्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी एंव कप्तान मेजर ध्यानचंद का आज 113वां जन्मदिन है। मेजर ध्यानचंद तीन बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले भारतीय टीम के खिलाड़ी रहे हैं। मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत में 'राष्ट्रीय खेल दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। ध्यानचंद के हॉकी स्टिक से गेंद इस कदर चिपकी रहती थी कि विरोधी खिलाड़ी को अक्सर ऐसा लगता था कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहीं नहीं हॉलैंड में एक बार तो उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई थी।
मेजर ध्यानचंद को बचपन में खेलने का कोई शौक नहीं था। साधारण शिक्षा ग्रहण करने के बाद 16 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद 1922 में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हुए। सेना में जब भर्ती हुए उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या रूचि नहीं थी।
लेकिन उसी रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी ने ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया। मेजर तिवारी एक हॉकी खिलाड़ी थे। उनकी देख-रेख में फिर ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे और देखते ही देखते वह हॉकी के जादूगर बन गए।
साल 1922 से 1926 तक ध्यानचंद सेना टीम के लिए हॉकी खेलते थे। इस दौरान रेजीमेंट के टूर्नामेंट में धमाल मचा रहे थे उनकी टीम ने 18 मैच जीते, 2 मैच ड्रॉ हुए और सिर्फ 1 मैच हारे थे। ऐसे में उन्हें भारतीय सेना की टीम में जगह मिल गई।
साल 1928 में इंडियन हॉकी फेडरेशन ने एमस्टरडर्म में होने वाले ओलंपिक के लिए भारतीय टीम का चयन करने के लिए टूर्नामेंट का आयोजन किया। जिसमें पांच टीमों ने हिस्सा लिया।
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सेना ने उन्हें यूनाइटेड प्रोविंस की तरफ से टूर्नामेंट में भाग लेने की अनुमति दे दी। टूर्नामेंट में अपने शानदार खेल के जरिए ध्यानचंद ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। इसके बाद उन्हें ओलंपिक में भाग लेने वाली टीम में जगह मिल गई।
भारत को ग्रुप ए में ऑस्ट्रिया, बेल्जियम डेनमार्क और स्विटरजरलैंड के साथ जगह मिली थी। भारत ने अपने पहले मैच में ऑस्ट्रिया को 6-0 से मात दी जिसमें ध्यानचंद ने तीन गोल किए। इसके बाद अगले दिन भारत ने बेल्जियम को 9-0 के अंतर से रौंद दिया।
इस मैच में ध्यानचंद एक गोल कर सके। लेकिन डेनमार्क के खिलाफ मैच में भारत की 5-0 की जीत में दद्दा के नाम से मशहूर इस खिलाड़ी ने 3 गोल किए। इसके बाद सेमीफाइनल में भारत ने स्विटजरलैंड को 6-0 से मात दी। जिसमें 4 गोल ध्यानचंद की स्टिक से निकले।
26 मई को खेले गए फाइनल मुकाबले में भारत ने मेजबान नीदरलैंड को 3-0 से मात देकर पहली बार ओलंपिक गोल्ड मेडल अपने नाम किया। ध्यानचंद ने 5 मैच में सबसे ज्यादा 14 गोल किए।
मेजर ध्यानचंद के जादुई खेल से प्रभावित होकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें अपने देश जर्मनी की ओर से खेलने की पेशकश की थी। लेकिन ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा।
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1928, 1932 और 1936 के तीनों मुकाबलों में भारतीय टीम का नेतृत्व हॉकी के जादूगर नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद ने किया। 1932 के ओलपिंक में हुए 37 मैचों में भारत द्वारा किए गए 330 गोल में ध्यानचंद ने अकेले 133 गोल किए थे। 1948 में 43 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतरराट्रीय हॉकी को अलविदा कहा था।
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