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एक पैर गंवा चुकी इस खिलाड़ी ने कायम किया था विश्व रिकॉर्ड, अब रचने जा रही हैं इतिहास

वॉलीबॉल खिलाड़ी को कुछ बदमाशों ने चलती ट्रेन से धक्का दे दिया था। इस दुर्घटना में उस खिलाड़ी ने अपनी एक टांग गंवा दी।

Updated on: 16 Dec 2018, 04:00 PM

NEW DELHI:

एक दर्दनाक हादसे से उबर कर अपनी कमजोरी को ही अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाकर इतिहास कायम करने वाली विश्व रिकॉर्डधारी पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा एक बार फिर नया इतिहास रचने को तैयार हैं। वह दुनिया की सात प्रमुख चोटियों में से आखिरी बची 'माउंट विन्सन' पर तिरंगा लहराने का लक्ष्य हासिल कर रविवार को पुंटा से यूनियन ग्लेशियर के लिए रवाना हो चुकी हैं।

अपने लक्ष्य के लिए रवाना होने से पहले एक साक्षात्कार में अरुणिमा ने कहा कि उनकी इस कामयाबी के पीछे उनके आलोचकों का हाथ है और इसके लिए वे अपने आलोचकों का शुक्रिया अदा करना चाहती हैं।

अप्रैल, 2011 में लखनऊ से नई दिल्ली जा रही एक राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी को कुछ बदमाशों ने चलती ट्रेन से धक्का दे दिया था। इस दुर्घटना में उस खिलाड़ी ने अपनी एक टांग गंवा दी। दो साल बाद लोगों ने उसी खिलाड़ी को दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगे के साथ देखा और उनके जज्बे को सलाम किया। वह खिलाड़ी थीं अरुणिमा सिन्हा।

अरुणिमा के लिए हालांकि, यह सफर भी आसान नहीं था। एक घटना में अपनी टांग गंवाने के बाद उन्होंने निराश न होकर एक नई मंजिल को अपनाने का फैसला किया। इस हौंसले के लिए जहां कई लोगों ने उन्हें सराहा, तो कई लोगों ने उनकी आलोचना भी की।

इस पर अरुणिमा ने कहा, "मैंने जब एवरेस्ट पर फतह की थी तब मैं दोनों हाथ ऊपर उठाकर जोर से चिल्लाना चाहती थी और उन सभी लोगों को यह कहना चाहती थी कि देखो मैंने कर दिखाया। उन सभी लोगों को, जिन्होंने मुझे पागल कहा, विक्लांग कहा और यह भी कहा कि एक औरत होकर मैं ऐसा नहीं कर पाऊंगी।"

अरुणिमा ने कहा, "मैं अपने आलोचकों की सबसे ज्यादा शुक्रगुजार हूं। उन्हीं की वजह से मुझे मेरे लक्ष्य को हासिल करने का जुनून मिला और आखिरकार मैंने वो कर दिखाया।"

एवरेस्ट पर फतह करने वाली पहली दिव्यांग भारतीय होने का गौरव हासिल करने वाली अरुणिमा 18 तारीख को माउंट विन्सन पर अपनी चढ़ाई शुरू करेंगी और 20 या 30 दिसम्बर तक वह इस शिखर पर फतह हासिल कर सकती हैं।

इसके लिए तैयारियों के बारे में उन्होंने कहा, "इसके लिए काफी कठिन अभ्यास किया है। हमने 15 किलोग्राम का बैग और 40 किलोग्राम के अन्य भार के साथ अभ्यास किया है। मैंने टायर कमर पर बांध के यह अभ्यास किया है।"

अपने नए लक्ष्य की चर्चा के दौरान अरुणिमा ने दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए अकादमी खोलने की इच्छा भी जाहिर की और उन्होंने कहा कि इस क्रम में उन्होंने जमीन भी ले ली है।

अरुणिमा ने कहा, "मैं विक्लांग खिलाड़ियों की मदद के लिए अकादमी खोलना चाहती हूं और इस कोशिश में मैंने जमीन ले ली है। जो उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में है।"

अरुणिमा ने कहा कि उन्होंने इस प्रयास के लिए सरकार से मदद की अपील की थी लेकिन उन्हें सरकार से किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। हालांकि, वह इससे निराश नहीं हुई हैं और एक दिन वह यह अकादमी जरूर खोलेंगी। उन्होंने इस अकादमी का नाम शहीद चंद्रशेखर आजाद के नाम पर रखने का फैसला किया है।

इसके पीछे का कारण बताते हुए अरुणिमा ने कहा, "मैंने यह फैसला इसीलिए, किया क्योंकि मैं चंद्रशेखर आजाद की अनुयायी हूं और वे उन्नाव जिले के निवासी थे। मेरी यह जमीन भी उन्नाव में ही है। मैं अभी इतनी बड़ी शख्सियत नहीं बनी कि मैं अपने नाम पर अकादमी का नाम रखूं। यह भी एक कारण है कि इस अकादमी का नाम आजाद के नाम पर रखने का फैसला मैंने किया है।"

अरुणिमा ने एक कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट फतह करने के साथ-साथ किलिमंजारो (अफ्रीका), एल्ब्रुस (रूस), कास्टेन पिरामिड (इंडोनेशिया), किजाश्को (आस्ट्रेलिया) और माउंट अकंकागुआ (दक्षिण अमेरिका) पर्वत चोटियों पर फतह हासिल कर ली है और माउंट विन्सन उनकी आखिरी मंजिल है। दक्षिणी ध्रुव में अंटार्कटिका स्थित माउंट विन्सन उनकी आखिरी मंजिल है।

अपने लक्ष्य पर टिके रहने की प्रेरणा के बारे में अरुणिमा ने कहा, "मुझे इसकी प्रेरणा अपने परिवार और स्वामी विवेकानंद जी से मिलती है। मैं उनके पथ पर चलती हूं। मेरा परिवार मेरी रीढ़ की हड्डी है और सबसे अहम बात की मैं अपने लक्ष्य को कभी नहीं भूलती।"

अरुणिमा ने कहा कि माउंट विन्सन उनका अगला लक्ष्य है और इसे हासिल करने के लिए वह आखिरी पल तक कोशिश करेंगी। इसी सोत के साथ उन्होंने एवरेस्ट फतह किया था और इसी के साथ वह इस पर्वत को भी फतह कर लेंगी।