...जब क्रूर मुगल शासक औरंगज़ेब को एक गुलाम से हो गई थी बेपनाह मोहब्बत
एक नई किताब में बताया गया है कि औरंगजे़ब एक महिला की सुंदरता पर इतना मोहित हुआ कि वह ग़श खाकर गिर पड़ा था.
नई दिल्ली:
भारतीय इतिहास के सबसे क्रूर मुगल शासकों में गिने जाने वाले औरंगजे़ब के सीने में एक आशिक़ का दिल भी था, जिस पर शायद ही किसी ने विस्तार से लिखा हो. एक नई किताब में बताया गया है कि औरंगजे़ब एक महिला की सुंदरता पर इतना मोहित हुआ कि वह ग़श खाकर गिर पड़ा था. वरिष्ठ पत्रकार अफ़सर अहमद ने अपनी किताब 'औरंगजे़ब : नायक या खलनायक' में लिखा है कि औरंगजे़ब की तीन पत्नियों - दिलरस बानो, नवाब बाई और औरंगाबादी महल के अलावा एक और महिला थी जिसके बारे में कहा जा सकता है कि वह मुगल वंश के छठे शासक की ज़िंदगी में अकेला प्यार थी.
अहमद के मुताबिक, इस महिला का नाम हीरा बाई उर्फ जैनाबादी था. वह मीर खलील के यहां गु़लाम थी, जिसने औरंगजे़ब की मां मुमताज़ महल की बहन से निकाह किया था. जैनाबादी पर औरंगजे़ब के फ़िदा होने की कहानी बयान करते हुए अहमद अपनी किताब में लिखते हैं, 'साल 1653 में औरंगजेब जब दक्कन का गर्वनर था तब वह अपनी ख़ाला (मौसी) के यहां बुरहानपुर गया. औरंगजे़ब बिना पूर्व जानकारी के अपनी ख़ाला के घर के अंदर चला गया. हीरा बाई तब एक पेड़ के नीचे अपने एक हाथ से उसकी टहनी पकड़े खड़ी थी और गाना गा रही थी. यहीं पर उसने हीराबाई को देखा और ग़श खाकर गिर पड़ा. जब उसकी ख़ाला के पास यह ख़बर पहुंची तो वह दौड़ती हुई आई तथा औरंगज़ेब का सिर अपनी गोद में रख लिया. तीन-चार घड़ी के बाद औरंगजे़ब को होश आया.'
‘हिस्ट्री ऑफ औरंगजे़ब’ के पहले खंड के 67वें पन्ने के हवाले से अहमद ने लिखा है, 'औरंगजे़ब की ख़ाला ने जब उससे पूछा कि क्या हुआ और यह बेहोशी क्या उसे पहले भी हुई है ? औरंगज़ेब ने कोई जवाब नहीं दिया. क़रीब आधी रात को उसने अपनी ख़ाला से कहा कि अगर वह अपनी बीमारी की वजह बता दे तो क्या वह उसकी इच्छा पूरी कर पाएगी. ख़ाला ने जवाब दिया कि वह उसके लिए अपनी जान भी दे सकती है. तब औरंगजे़ब ने उसे वजह बताई. जवाब में ख़ाला ने कहा कि तुम्हारे ख़ालू यानी मौसा बेहद ख़तरनाक इंसान हैं. उन्होंने न तो कभी तुम्हारे पिता शाहजहां की फिक्र की और न ही वह तुम्हारी फिक्र करेंगे. अगर मैं उन्हें यह बताती हूं तो पहले वह जैनाबादी की जान लेंगे, फिर मुझे मार डालेंगे.'
इवोको पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित अहमद की किताब के मुताबिक, अगले दिन औरंगज़ेब अपने खेमे में लौटा. उसने अपने क़रीबी और दक्कन के दीवान मुर्शीद कुली ख़ान को पूरी बात बताई. ख़ान ने कहा 'मैं पहले तुम्हारे ख़ालू को मार देता हूं, बदले में तुम मुझे मार देना. इस तरह जैनाबादी को तुम पा सकते हो.'
हालांकि, औरंगज़ेब ने ऐसा करने से मना करते हुए कहा कि वह अपनी ख़ाला को विधवा नहीं बनाना चाहता. ख़ान ने यह वाक़या औरंगज़ेब के ख़ालू को सुनाया. ख़ालू का दिल पसीजा और उसने जैनाबादी को औरंगज़ेब के हरम की दासी छत्र बाई के बदले उसके पास भेजना स्वीकार कर लिया.
किताब के मुताबिक, औरंगज़ेब जैनाबादी से बेपनाह मोहब्बत करता था. वह जब दक्कन में था, तब जैनाबादी की मौत हो गई और उसे औरंगाबाद में दफनाया गया. अहमद ने अपनी किताब में इस मान्यता को भी खारिज किया है कि औरंगज़ेब फक़ीर बनना चाहता था.
उन्होंने लिखा है, 'यह सच है कि औरंगज़ेब एक वक्त फक़ीरों की तरह रहने लगा था. उसने अपनी तलवार निकाल कर रख दी थी. इसका सीधा अर्थ निकालकर पुराने इतिहासकारों को लगा कि वह फक़ीर बनना चाहता था, लेकिन ऐसा था नहीं. उसे फक़ीर बनने में कोई रुचि नहीं थी. दरअसल, उसका मकसद संपूर्ण तौर पर राजनीतिक था, न कि आध्यात्मिक. उसने सिर्फ अपना ओहदा छोड़ा था, लेकिन फक़ीर नहीं बना था.'
अहमद ने लिखा है, 'मुग़ल परंपरा के मुताबिक हर ओहदेदार को, चाहे वह सिविल में हो या सेना में हो, अपने पद के अनुसार सैन्य पोशाक पहननी होती थी और उसका तलवार बांधना जरूरी था, जो पोशाक का ही हिस्सा मानी जाती थी. इस तरह अपनी बेल्ट से तलवार को अलग करना अपना पद छोड़ना माना जाता था.'
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