बेटों को सेना में भेजने वालों को उम्मीदवार बनाएं पार्टियां : सुब्बा राव
बोले सुब्बा राव पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सिर्फ युद्ध को एक मात्र रास्ता करार दिया जाना उचित नहीं
भोपाल:
गांधीवादी विचारक एस.एन. सुब्बाराव देश के सियासी दलों द्वारा पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए युद्ध को एकमात्र हथियार बताए जाने से असहमत हैं. उनका कहना है कि राजनेता अपने राजनीतिक लाभ के लिए कुछ भी कहने को तैयार हैं, जो दुखद है. जो दल या नेता युद्ध समर्थक हैं, उन्हें आम चुनाव में उसी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना चाहिए, जिसका बेटा फौज में गया हो. सुब्बा राव ने कहा, "आतंकवाद दुनिया के कई देशों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है, पुलवामा में सेना पर हुए आतंकी हमले के बाद सेना की कार्रवाई उचित थी, आतंकवाद के खात्मे के लिए इस तरह की कार्रवाई ठीक है, मगर पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सिर्फ युद्ध को एक मात्र रास्ता करार दिया जाना उचित नहीं है." विभिन्न दलों के नेताओं द्वारा पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए युद्ध को एकमात्र रास्ता बताए जाने पर सुब्बा राव प्रतिप्रश्न करते हैं और कहते हैं कि युद्ध होगा तो मरेगा कौन, सिपाही. नेता अपने बेटे को सिपाही बनाता नहीं है, बात जरूर युद्ध की करता है.
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लिहाजा, युद्ध की पैरवी करने वाले नेताओं को आम चुनाव में उसे उम्मीदवार बनाना चाहिए, जिसका बेटा या परिवार का सदस्य फौज में गया हो.देश की खातिर जान न्योछावर करने वाले सैनिकों के परिवारों की हालत का जिक्र करते हुए सुब्बा राव ने कहा कि सैनिक देश के लिए जान दे देता है, उसकी पत्नी विधवा हो जाती है, सरकार प्रभावित परिवार को धन उपलब्ध करा देती है, मगर विधवा महिला का जीवन बेरंग हो जाता है. नेताओं को क्या है, वे तो युद्ध का समर्थन करते हैं, मगर जिस सैनिक की पत्नी विधवा होती है, उसके दर्द का उन्हें पता ही नहीं है.देश के नेताओं के दोहरे चरित्र के लिए उनके बयान और उनके निजी जिंदगी के अंतर पर सुब्बा राव सवाल करते हुए कहते हैं, "नेता बात तो युद्ध की करेंगे, मगर बेटा फौज में नहीं जाएगा, सरकारी स्कूल में पढ़ाने का आह्वान करेंगे, मगर बेटा विदेश में पढ़ेगा. इलाज सरकारी अस्पतालों में कराने की बात होगी.
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मगर खुद और परिवार को उससे दूर रखेंगे. यह दोहरा मापदंड है, जिसके चलते सरकारी व्यवस्थाएं नहीं सुधर पा रहीं, अगर नेता सरकारी संस्थाओं में जाने लगें तो यह हाल ही न हो."पाकिस्तान के पड़ोसी देश होने और उसके साथ रिश्ते बेहतर होने की मजबूरी का जिक्र करते हुए सुब्बा राव ने कहा, "दोस्त तो हम अपनी मर्जी से बना सकते हैं, मगर पड़ोसी ऊपर वाले द्वारा बनाया जाता है. जर्मनी, फ्रांस से दोस्ती आसान है, मगर पड़ोसी पाकिस्तान, श्रीलंका व नेपाल से दोस्ती मुश्किल है. मगर पड़ोसी से दोस्ती बनाना जरूरी है."देश के राजनेताओं द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली भाषा के गिरते स्तर पर सुब्बा राव ने चिंता जताई और कहा कि पहले नेता अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए अच्छी भाषा के साथ समाजहित की बात करते थे, मगर अब के नेता दूसरे नेता को नीचे गिराने के लिए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करने लगे हैं, जो देश और समाज के हित में नहीं है.
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