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टेलीफोन टेपिंग मामले की जांच करा सकती है कमलनाथ सरकार

मध्य प्रदेश में पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान सरकार के दौरान राजनेताओं, नौकरशाहों और अन्य महत्वपूर्ण लोगों के कथित तौर पर फोन टेप कराए जाने का मामला एक बार फिर जोर पकड़ने लगा है

Updated on: 17 Jun 2019, 08:11 PM

भोपाल:

मध्य प्रदेश में पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान सरकार के दौरान राजनेताओं, नौकरशाहों और अन्य महत्वपूर्ण लोगों के कथित तौर पर फोन टेप कराए जाने का मामला एक बार फिर जोर पकड़ने लगा है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद इस मामले की जांच चार साल से दबी पड़ी है. लेकिन अब संकेत मिल रहे हैं कि मौजूदा कमलनाथ सरकार टेलीफोन टेपिंग की जांच करा सकती है.

राज्य में वर्ष 2014 में नौकरशाहों, राजनेताओं और अन्य प्रमुख लोगों के टेलीफोन टेप कराने के मामले ने तूल पकड़ा था. इस मामले को लेकर व्हिसिलब्लोअर प्रशांत पांडेय सर्वोच्च न्यायालय गए थे. पांडेय की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने कथित तौर पर टेलीफोन टेपिंग, काल डिटेल तैयार करने वाली अमेरिकी कंपनी 'स्पंदन द आईटी पल्स' सहित राज्य व केंद्र सरकार को नोटिस जारी किए थे. साथ ही जांच के निर्देश दिए थे. लेकिन यह मामला अभी तक दबा रहा.

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राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद एक बार फिर टेलीफोन टेपिंग का मामला तूल पकड़ने लगा है. राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को एक पत्र के जरिए मामले की जांच कराने की मांग की है. तन्खा का दावा है, "पुलिस की विशेष शाखा ने वर्ष 2009 से 2014 के बीच राजनेताओं, नौकरशाहों और विशिष्ट लोगों के फोन टेप किए थे. इसके अलावा कॉल डिटेल की जानकारी हासिल की थी. इसकी उच्चस्तरीय जांच होने पर बड़ा खुलासा हो सकता है. "

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तन्खा ने आईएएनएस से कहा, "टेलीफोन टेप करने की चार साल तक जो प्रक्रिया चली, वह पूरी तरह किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन था. सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश है कि यदि किसी का टेलीफोन टेप करना है तो पहले गृह सचिव से अनुमति लो. लिहाजा मुख्यमंत्री कमलनाथ से एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति से जांच कराने की मांग की है. यह घटनाक्रम मध्य प्रदेश का है, इसलिए राज्य सरकार को जांच कराने का अधिकार है. "

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इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले प्रशांत पांडेय ने आईएएनएस को बताया, "राज्य में लगभग चार साल तक चले टेलीफोन टेपिंग मामले को लेकर याचिका दायर होते ही सरकार ने इस काम को बंद कर दिया. "पांडेय का दावा है कि हर रोज हजारों टेलीफोन टेप किए गए गए. इस सॉफ्टवेयर का पुलिस विभाग के अमले ने जमकर दुरुपयोग किया.

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उन्होंने आगे बताया, "मध्य प्रदेश पुलिस एक ऐसे सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रही थी, जो पूरी तरह अवैधानिक था. इसके लिए पुलिस अफसरों ने एक एजेंसी की मदद ली. इसके लिए कंपनी के साथ पूरा डेटा शेयर किया गया, जो नहीं किया जाना चाहिए था. इसमें मोबाइल नंबर सहित अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां थीं. उस आधार पर 'स्पंदन द आईटी पल्स' ने एक सॉफ्टवेयर बनाया था. इसके आधार पर कंपनी कॉल डिटेल के अलावा अन्य विश्लेषण कर पुलिस को ब्यौरा देती थी. "

पांडेय के मुताबिक, "जिस कंपनी को टेलीफोन टेपिंग और कॉल डिटेल एनलिसिस का जिम्मा दिया गया था, उस कंपनी ने हजारों फोन इंटरसेप्ट किए और उसे सर्वर पर अपलोड भी किया. इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने जांच के निर्देश दिए, मगर सरकार ने कुछ नहीं किया. इस मामले की जांच होती है तो कई राज खुल सकते हैं, क्योंकि सरकार ने राजनेताओं, नौकरशाहों और अन्य विशिष्ट लोगों के फोन टेप कराए हैं. "

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उल्लेखनीय है कि प्रशांत पांडेय मध्य प्रदेश पुलिस के आईटी सेल के सलाहकार रहे हैं. पांडेय द्वारा दायर याचिका में उनकी तरफ से पैरवी विवेक तन्खा कर रहे हैं. फिलहाल यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है. यह मामला निजता के उल्लंघन का है. भाजपा के मुख्य प्रवक्ता डॉ. दीपक विजयवर्गीय का कहना है, "कांग्रेस की सरकार को छह माह हो गए हैं और उसने जो वादे किए थे उन पर अमल नहीं किया, लिहाजा वे जनता का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह की बात कर रहे हैं. जनहित में जरूरी हो तो जांच कराएं. जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा, मगर सरकार को जनहित पर ध्यान देना चाहिए, जो वह नहीं कर रही है. "

आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ सरकार सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्देशों के आधार पर मामले की जांच करा सकती है. इस जांच में अगर टेलीफोन टेपिंग और डेटा साझा किए जाने का मामला उजागर होता है तो भाजपा से जुड़े नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.