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Kumbh Mela 2019 : आपको जानकर गर्व होगा कि आखिर क्यों दुनिया के हर उत्सव से अलग है कुंभ

र्व का एक महत्वपूर्ण भाग गरीबों एवं वंचितों को अन्न एवं वस्त्र का दान कर्म है और संतों को आध्यात्मिक भाव के साथ गाय एवं स्वर्ण दान किया जाता है.

Updated on: 28 Dec 2018, 10:56 PM

नई दिल्ली:

किसी उत्सव के आयोजन में भारी जनसम्पर्क अभियान, उसको बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाना और आयोजन में अतिथियों को आमंत्रण दिए जाने की आवश्यकता होती है, जबकि कुंभ विश्व में एक ऐसा पर्व है जहां कोई आमंत्रण नहीं होता है  फिर भी करोड़ों तीर्थयात्री इस पवित्र पर्व को मनाने के लिये एकत्र होते हैं. प्राथमिक स्नान कर्म के अतिरिक्त पर्व का सामाजिक पक्ष विभिन्न यज्ञों, वेद मंत्रों का उच्चारण, प्रवचन, नृत्य, भक्ति भाव के गीतों, आध्यात्मिक कथानकों पर आधारित कार्यक्रमों, प्रार्थनाओं, धार्मिक सभाओं के चारो ओर धूमती हैं, जहां सिद्धांतों पर वाद-विवाद एवं विमर्श प्रसिद्ध संतों एवं साधुओं के द्वारा किया जाता है और मानकस्वरूप प्रदान किया जाता है. पर्व का एक महत्वपूर्ण भाग गरीबों एवं वंचितों को अन्न एवं वस्त्र का दान कर्म है और संतों को आध्यात्मिक भाव के साथ गाय एवं स्वर्ण दान किया जाता है.

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मानव मात्र का कल्याण, सम्पूर्ण विश्व में सभी मानव प्रजाति के मध्य वसुधैव कुटुम्बकम के रूप में अच्छा सम्बन्ध बनाये रखने के साथ आदर्श विचारों एवं गूढ़ ज्ञान का आदान प्रदान कुंभ का मूल तत्व और संदेश है जो कुंभ पर्व के दौरान प्रचलित है. कुंभ भारत और विश्व के जन सामान्य को अविस्मरणीय काल तक आध्यात्मिक रूप से एकताबद्ध करता रहा है और भविष्य में ऐसा किया जाना जारी रहेगा.

गौरतलब है कि हिन्दू समाज में कुंभ मेले को बहुत ही पावन पर्व माना गया है. मान्यताओं के अनुसार यह पर्व किसी तीर्थ से कम नहीं है. कुंभ में अनेक कर्मकाण्ड सम्मिलित हैं जिसमें स्नान कर्म कुंभ के कर्मकाण्डों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. करोड़ों तीर्थयात्री पर्यटक और दर्शकगण कुंभ मेला में स्नान कर्म में हिस्सा लेते हैं.त्रिवेणी संगम पर पवित्र डुबकी लगायी जाती है. पवित्र कुंभ स्नानकर्म इस विश्वास के अनुसरण में किया जाता है कि त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर एक व्यक्ति अपने समस्त पापों को धो डालता है, स्वयं को और अपने पूर्वजों को पुनर्जन्म के चक्र से अवमुक्त कर देता है और मोक्ष को प्राप्त हो जाता है. स्नान - कर्मकाण्ड के साथ-साथ तीर्थयात्री पवित्र नदी के तटों पर पूजा भी करते हैं और विभिन्न साधुगण के साथ सत्संग में भी हिस्सा लेते हैं.