नई दिल्ली:
केरल के सबरीमाला मंदिर का द्वार एक बार फिर खोल दिया गया है. मंदिर के अधिकारियों ने बताया कि मंदिर मलयालम महीना कुंबम के दौरान मासिक पूजा के लिए मंगलवार से पांच दिन (यानी 12 फरवरी से 17 फरवरी) तक खुला रहेगा. मंदिर में इन पांच दिनों के दौरान 'कालाभाभिषेकम', 'सहस्रकलसम' और ‘लक्षर्चना’ समेत कई विशेष कर्मकांड पूरे किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि तंत्री (प्रमुख पुजारी) कंडारारू राजीवरु भी पूजा के दौरान मौजूद रहेंगे.
Kerala: Devotees throng to Sabarimala temple which has reopened for five-day monthly 'puja' in the Malayalam month of Kumbhom. pic.twitter.com/jeAwmEJ8L4
— ANI (@ANI) February 14, 2019
मंदिर के फिर से खुलने का समय नजदीक आने के साथ ही राज्य पुलिस ने संघ के संगठनों द्वारा परंपरागत रूप से प्रतिबंधित महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ संभावित प्रदर्शनों की आशंका के मद्देनजर सतर्कता बढ़ा दी गई है.
पुलिस ने कहा कि आधार शिविर निलक्कल, सन्नीधानम (मंदिर परिसर) के इलाके में भक्तों के सुगम दर्शन के लिये कई प्रतिबंध लगाए गए हैं.
मासिक धर्म उम्र की महिलाओं की मंदिर में प्रवेश को लेकर हाल में समाप्त हुई वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान काफी विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसे देखते हुए सबरीमला के आसपास चिंता का भाव है.
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दो महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के बाद बवाल
बता दें कि बीते 2 जनवरी को बिंदू अम्मिनी और कनक दुर्गा नाम की दो महिलाओं ने परंपराओं को तोड़ते हुए सबरीमाला मंदिर का दर्शन किया था जिसके बाद मंदिर में शुद्धिकरण अनुष्ठान किया था. सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को इन दो महिलाओं को समुचित सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया है. मंदिर खुलने के दौरान कई और महिलाओं ने भी भगवान अयप्पा के दर्शन करने की कोशिश की थी लेकिन भारी विरोध प्रदर्शन के बीच कोई सफल नहीं हो सकी थी.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 28 सितंबर को दिए अपने फैसले में कहा था कि सभी उम्र की महिलाओं (पहले 10-50 वर्ष की उम्र की महिलाओं पर बैन था) को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश मिलेगी. वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 48 पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए 22 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई है.
कोर्ट ने क्या कहा था
अदालत ने कहा था कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. अदालत की 5 सदस्यीय पीठ में से 4 ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया जबकि पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग राय रखी थी.
पूर्व मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस एम.एम. खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा था, 'शारीरिक या जैविक आधार पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता. सभी भक्त बराबर हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता.'