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अनुच्छेद 35 A : बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई टली, अब इतने हफ्ते करना होगा इंतजार

इस अनुच्छेद को लेकर पहले से भी और कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

Updated on: 12 Feb 2019, 04:01 PM

नई दिल्ली:

जम्मू कश्मीर में स्थायी नागरिकता की परिभाषा देने वाले अनुच्छेद 35 A को चुनौती देने वाली बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई चार हफ्ते के लिए टल गई है. इस अनुच्छेद को लेकर पहले से भी और कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि अनुच्छेद 35 A के चलते जम्मू-कश्मीर के बाहर के भारतीय नागरिकों को राज्य में अचल संपत्ति खरीदने और वोट देने का हक नहीं है. साथ ही, जम्मू कश्मीर की महिला कश्मीर से बाहर के शख्स से शादी करने पर राज्य में सम्पति, रोजगार के तमाम हक खो देती है. वहीं उनके बच्चों को भी स्थायी निवासी का सर्टिफिकेट नही मिलता है.

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आखिर क्या है अनुच्छेद 35 ए, आइए जानते हैं..

  • अनुच्छेद 35A से जम्मू कश्मीर को ये अधिकार मिला है कि वो किसे अपना स्थाई निवासी माने और किसे नहीं.
  • जम्मू कश्मीर सरकार उन लोगों को स्थाई निवासी मानती है जो 14 मई 1954 के पहले कश्मीर में बसे थे.
  • ऐसे स्थाई निवासियों को जमीन खरीदने, रोजगार पाने और सरकारी योजनाओं में विशेष अधिकार मिले हैं.
  • देश के किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर में जाकर स्थाई निवासी के तौर पर नहीं बस सकता.
  • दूसरे राज्यों के निवासी ना कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं, ना राज्य सरकार उन्हें नौकरी दे सकती है.
  • अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके अधिकार छीन लिए जाते हैं.
  • उमर अब्दुल्ला की शादी भी राज्य से बाहर की महिला से हुई है, लेकिन उनके बच्चों को राज्य के सारे अधिकार हासिल हैं.
  • उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला राज्य से बाहर के व्यक्ति से विवाह करने के बाद संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दी गई हैं.

संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत ही जोड़ा गया था अनुच्छेद 35ए

  • अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता है.
  • अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू कश्मीर में अलग झंडा और अलग संविधान चलता है.
  • इसकी वजह से कश्मीर में विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है, जबकि अन्य राज्यों में 5 साल का होता है.
  • इसकी वजह से जम्मू-कश्मीर को लेकर कानून बनाने के अधिकार भारतीय संसद के पास बहुत सीमित हैं.
  • संसद में पास कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते जैसे ना शिक्षा का अधिकार, ना सूचना का अधिकार.
  • ना तो आरक्षण मिलता है, ना ही न्यूनतम वेतन का कानून लागू होता है.

क्या है इसका कानूनी पहलू?

  • 2014 में वी द सिटिजंस नाम के एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी.
  • इस अर्जी में संविधान के अनुच्छेद 35A और अनुच्छेद 370 की वैधता को चुनौती दी गई.
  • ये दलील दी गई कि संविधान बनाते वक्त कश्मीर के ऐसे विशेष दर्जे की कोई बात नहीं कही गई थी.
  • यहां तक कि संविधान का ड्राफ्ट बनाने वाली संविधान सभा में चार सदस्य खुद कश्मीर से थे.
  • अनुच्छेद 370 टेम्परेरी प्रावधान था, जो उस वक्त हालात सामान्य और लोकतंत्र मजबूत करने के लिए लाया गया था.
  • संविधान निर्माताओं ये नहीं सोचा था कि अनुच्छेद 370 के नाम पर 35 ए जैसे प्रावधान जोड़े जाएंगे.
  • अनुच्छेद 35 ए उस भावना पर चोट करता है जो एक भारत के तौर पर पूरे देश को जोड़ता है.
  • जम्मू कश्मीर में दूसरे राज्यों के नागरिकों के अधिकार ना होना संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ है.

क्या है अनुच्छेद 35 ए का इतिहास?

  • अनुच्छेद 35A को राष्ट्रपति के एक आदेश से संविधान में साल 1954 में जोड़ा गया था.
  • ये आदेश तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट की सलाह पर जारी हुआ था.
  • इससे दो साल पहले 1952 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला का दिल्ली समझौता हुआ था.
  • जिसके तहत भारतीय नागरिकता जम्मू-कश्मीर के राज्य के विषयों में लागू करने की बात थी.
  • लेकिन अनुच्छेद 35 ए को खास तौर पर कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को दिखाने के लिए लाया गया.
  • विरोध की दलील ये है कि ये राष्ट्रपति आदेश है, जिसे खत्म होना चाहिए. क्योंकि इस पर संसद में कोई चर्चा और बहस नहीं हुई.
  • संसद को बताए बिना 35 ए को ऐसे आदेश के जरिए संविधान में जोड़ दिया गया.