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भगत सिंह के जन्मदिन पर विशेष : क्या आप जानते हैं शहीद ए आजम किसकी तस्वीर लिए अलविदा कह गए

भगत सिंह भीतर ऐसा जोश भरने का काम करने वाला कौन था.

Updated on: 28 Sep 2018, 09:52 AM

नई दिल्ली:

शहीद ए आजम भगत सिंह का आज जन्मदिन है. देश उनकी कुर्बानी को कभी नहीं भूला. गुलामी के समय देश के युवाओं में जोश भरने के लिए भगत सिंह और उनके दोस्तों ने जो काम किया उसने उन्हें अमर बना दिया. भगत सिंह भीतर ऐसा जोश भरने का काम करने वाला कौन था. आखिर वो कौन था जिसने भगत सिंह को देश की आजादी के लिए प्रेरित किया. वो कौन था जिसकी बात से प्रभावित होकर भगत सिंह ने देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया. इस प्रकार के सवाल हमेशा से देश के युवा के मन में आते रहते हैं और कई बार तो यह होता है कि हम यह जान भी नहीं पाते हैं कि भगत सिंह किसकी प्रेरणा से शहीद ए आजम कहलाए. आज वहीं कहानी हम यहां लाए हैं. 

(अमर शहीद करतार सिंह सराभा)

फांसी की कोठरी में बंद एक युवक से उसके दादा आखिरी बार मिलने आते है. पिता बचपन में ही गुजर गए थे लिहाजा दादा ने ही पाला था. खानदान का अकेला चिराग और वो भी देश के लिए फांसी चढ़ने जा रहा है. दादा की आंखों में पानी तैर रहा था कहा 'करतार सिंह जिनके लिए मर रहे हो , वे तुम्हें गालियां देते हैं. तुम्हारे मरने से देश को कुछ लाभ होगा, ऐसा भी दिखाई नहीं देता.'

करतार सिंह ने बहुत धीमे से पूछा -' दादा जी, फलां रिश्तेदार कहां है ? '
'प्लेग से मर गया .'
'फलां कहां है ? '
' हैजे से मर गया. '
' तो क्या आप चाहते हैं कि करतार सिंह महीनों बिस्तर पर पड़ा रहे और पीड़ा से दुखी किसी रोग से मरे : क्या उस मौत से यह मौत हजार गुना अच्छी नहीं ?' दादा चुप हो गए. 

ये सवाल-जवाब अमर शहीद करतार सिंह सराभा के हैं. साढ़े अठ्ठारह साल की उम्र का नौजवान जिसकी फोटो शहीद ए आजम भगत सिंह की जेब में आखिरी वक्त तक रही. कहानी तो दूसरी भी है, एक से एक बढ़कर है आजादी के लिए अपना परिवार, करियर, संपत्ति और सबसे ऊपर अपनी जान गवांने वाले नौजवानों के किस्सें. जिनको किताबों में नहीं रखा गया क्योंकि वामपंथियों ने क्या समझा क्या नहीं मालूम नहीं. लेकिन देश के अमर शहीदों में क्रांत्रिकारियों की गिनती आप किसी स्कूली छात्र से पूछ कर देखिएँ आपकी ऊंगुलियां ज्यादा होगी उसके नाम कम होंगे. ऐसा हुआ क्या. इस पर फिर कभी बात होंगी. लेकिन आज सोचता हूं कि वो सवाल आज भी देश के क्रांत्रिकारियों के सामने मुंह बाएं हुए खड़ा है कि 

'ऐसे बलिदान का क्या फायदा जिसमें तुम्हें देश याद करना तो दूर गालियों से नवाजें. ऐसा बलिदान क्यों दे. किस के लिए. ?'

उन लोगों के लिए जो एसी कमरों में बैठकर पहले अंग्रेजों के लिए हिंदुस्तानियों के खून का सौदा करते रहे और आज ऐसे गठजोड़ लिए के लिए काम कर रहे है जो आजादी का मतलब भी किसी आम आदमी को नहीं समझने दे रहे है. करतार सिंह सराभा के जैसे नौजवान आज कश्मीर में खड़े हुए अपनी जान गंवा रहे है. जब ये पक्तियां लिख रहा हूं उस वक्त तीन जवानों ने एक आंतकी को मारने में अपनी जान गंवा दी. और दलाली के लिए प्रख्यात एक महिला (पत्रकार इस लिए नहीं लिखूंगा क्योंकि उसके किस्सें दुनिया को मालूम है. ) पूछती है कि 'पैलेट गन को इस्तेमाल करने के लिए हरियाणा सही जगह नहीं थी क्या ?' सवाल हरियाणा के दंगें के समय उठने चाहिए थे न कि कश्मीर के दंगाईंयों के निबटने के दौरान. देश ने हरियाणा के वक्त भी सरकार को देखा था कि किस तरह एक सरकार ने दंगाईंयों के सामने समर्पण कर दिया था. और उस वक्त भी सरकार को कोसा था. लेकिन देश के खिलाफ लड़ाई और जातियों के बीच की लड़ाई का अंतर नहीं कर पा रही है वो महान महिला. 

खैर मैं वापस करतार सिंह सराभा की कहानी पर. करतार सिंह सराभा ने समझ के विकसित होने के बाद से अपनी जिंदगी की हर सांस देश की आजादी के लिए ल़ड़ने के लिए लगा दी थी. देश में नहीं विदेशों से भी इस महान क्रांत्रिकारी ने क्रांत्रि का नाद किया था. अखबार छापने से लेकर सशस्त्र कांत्रि हर कही करतार सिंह दिखाई दिए. सराभा की कहानी ऐसी है कि कहां से शुरू की जाएँ और कहां खत्म की जाएं. लुधियाना जिला का सराभा गांव और वहां 1896 में करतार सिंह का जन्म हुआ था बचपन में पिता की मृत्यु हो गई.

दादा ने ही पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी उठाई. 1912 में पढ़ाई के लिए वो अमेरिका चले गए. गदर की तैयारी हुई. गदर नाम का अखबार निकाला. सिंतबर 1914 में कामागाटामारू जहाज के अत्याचार की कहानी शायद इस देश के लिए कोई मतलब नहीं रखती है अब. लेकिन वो आजादी एक बड़ा अफसाना था जिसने हजारों नौजवानों के दिल में अंग्रेजों के खिलाफ आग भड़का दी थी. जापान पहुंचे वाहं से फिर सानफ्रांसिस्कों में गदर और गदर की गूंज नाम की पत्रिका छापी और बांटी. फरवरी 1914 में स्टाकरन के पब्लिक जलसे में आजादी का झंडा लहराया गया और आजादी के लिए जान देने की शपथ ली. फिर देश लौट आएँ. गदर की तैयारियां शुरू हुई . पैसे की कमी हुई तो डकैती करने का सुझाव दिया.

इस से सब चौंक गए लेकिन करतार सिंह ने साफ कहा कि आजादी का काम सिर्फ हथियारों के लिए नहीं रूकना चाहिए. डकैती के लिए एक घर में घुसे तो साथियों में से एक ने घर की एक लड़की की तरफ हाथ बढ़ा दिया. करतार सिंह ने जैसे ही उसको देखा पिस्तौल निकाल कर उसके सिर पर लगा कर कहा कि पैर छू कर बहिन से माफी मांग अगर माफ किया तो ठीक है नहीं तो तेरे सिर को गोलियों से भर दूंगा. पैर छूकर माफी मांगते ही मां और बेटी ने उसको माफ कर दिया. लेकिन मां ने कहा कि ऐसे विचार रखते हो और डकैती डालते हो. इस पर करतार सिंह ने साफ किया कि हम अपना सबकुछ दांव पर लगाकर डकैती जैसा काम कर रहे है क्योंकि गदर के लिए पैसा चाहिए. इस पर मां ने सांस भरते हुए कहां कि ठीक है जो ले जाना हो ले जाओं लेकिन इस बेटी की शादी है अगर कुछ छोड़ देना चाहते हो तो छोड़ देना. इस पर करतार सिंह ने सारा पैसा मां के चरणों में रख कर कहा कि वो ही दान दे जो देना है . उस बूढ़ी औरत ने कुछ पैसा रख कर बाकि पैसा करतार को देते हुए आशीर्वाद भी दिया. (लुधियाना के आसपास के इलाकों में ये कहानी कोई भी आपको सुना सकता है और इसका जिक्र किताबों में मौजूद है.)

फरवरी 1915 में विद्रोह की तारीख तय हुई. देश भर की छावनियों में संपर्क कर सैनिकों को तैयार किया गया. करतार सिंह ने खुद हर जगह जाकर इसकी पूरी रूपरेखा रची. और फिर 21 तारीख को विद्रोह का दिन नियत किया गया. लेकिन ग्रुप में किरपाल सिंह नाम का मुखबिर भी था उसने सरकार को पूरी सूचना दे दी. करतार सिंह इतने निडर कि दो दिन पहले विद्रोह करने की तैयारी की लेकिन सरकार को सूचना मिल गई और जब करतार सिंह फैसले के मुताबिक 50-60 साथियों के साथ फिरोज पुर पहुंचे. हवलदार से मिले लेकिन अंग्रेजी फौंज पहले ही हिंदुस्तानी सैनिकों को निहत्था कर चुकी थी. धड़ाधड़ गिरफ्तारियां होने लगी. रासबिहारी बोस निराश हो कर करतार सिंह के साथ एक गुप्त स्थान पर मौजूद थे. उनको लगा कि अब ये सब विफल हो गया. लेकिन करतार सिंह ने हार मानने से इंकार कर दिया. फिर से सरगोधा के पास चक्क नंबर पांच में छा ? 'वनी में तैयारी के लिए गए. वहां मुखबिर की सूचना पर पकड़े गए. जंजीरों में जकड़ कर लाहौर स्टेशन पर लाया गया. इतनी कम उम्र के नौजवान को देखकर पुलिस कप्तान कुछ कहे उससे पहले ही करतार सिंह ने हंसते हुए कहा मिस्टर टामकिन कुछ खाना तो लाईएं. पकड़े जाने पर करतार सिंह बेहद खुश थे. प्राय कहा करते थे कि वीरता और हिम्मत से मरने पर मुझे विद्रोही की उपाधि देना.'

कोई याद करे तो विद्रोही करतार सिंह कहकर याद करे. मुकदमें में वो सबसे कम उम्र के आरोपी थे. लेकिन जज ने उनके बारे में जो लिखा वो किसी भी हिंदुस्तानी का माथा ऊंचा कर सकता है. जज ने लिखा ' वो इन अपराधियों ( जज ने लिखा लेकिन हमारे लिए वो देश के क्रांत्रिकारी है) में सबसे खतरनाक अपराधियों में से एक है. अमेरिका की यात्रा के दौरान और फिर भारत में इस षडयंत्र का कोई ऐसा हिस्सा नहीं है जिसमें उसने महत्वपूर्ण भूमिका न निभाई हो 'जजों ने उनसे बयान देने के लिए कहा करतार सिंह ने सब कुछ मान लिया. जज अपने मुंह में कलम दबा कर बैठे रहे एक शब्द नहीं लिखा. कहा कि जो तुमने कहा है उसका मतलब भी समझते हो आज हम आपका बयान नहीं ले रहे है कल फिर से बयान होगा. सोचकर बयान देना. अगले दिन फिर बयान शुरू हुआ और करतार सिंह ने और भी जोश से पूरा बयान दोहरा दिया. और आखिर में करतार सिंह ने कहा कि 'अपराध के लिए मुझे आजन्म कारावास मिलेगा या फिर उम्रकैद. लेकिन मैं फांसी को प्राथमिकता दूंगा, ताकि फिर जन्म लेकर - जब तक हिंदुस्तान आजाद नहीं हो, तब तक मैं बार-बार जन्म लेकर फांसी पर लटकता रहूंगा. यही मेरी अंतिम इच्छा है... '

डेढ़ साल तक मुकदमा चला. 16 दिंसबर 1915 का दिन था, जब उन्हें फांसी पर लटका दिया गया. उस भी हंसतें हुए फांसी के तख्तें तक गए. बाद में दर्ज हुआ कि मजाक करते हुए जा रहे थे. उनका वजन दस पौंड बढ़ गया था. 'भारत माता की जय ' बोलते हुए वो फांसी के तख्तें पर झूल गए. 
कभी भी थक जाने पर वो एक गीत गाया करते थे जो भगतसिंह बाद में काफी मन से गाते थे .

'सेवा देश दी जिंदडिए बड़ी औखी,
गल्लां करनीआं ढेर सुखल्लीयां ने.
जिन्नां देशसेवा विच पैर पाया, 
उन्नां लक्ख मुसीबतां झल्लियां ने.

(देश सेवा करनी बहुत मुश्किल है, जबकि बातें करना खूब आसान है. जिन्होंने देश सेवा के रास्ते पर कदम उठा लिया वे लाख मुसीबतें झेलते हैं)

फिर बात यही खत्म करता हूं कि ये वही भारत माता है जिसके नाम बोलने में आज वोटों के गणित में अपनी हैसियत बढ़ा लेने वाले लोगों की जबान जल रही है. और उनकी तरफदारी करने वालों की तादाद कलमनवीसों में भी काफी हो रही है.