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राज्यों के चुनाव में मत प्रतिशत घटने से चिंतित भारतीय जनता पार्टी बदल सकती है रणनीति

समीक्षा बैठकों से मिले संकेतों के अनुसार, भाजपा नेतृत्व भविष्य में प्रदेशों में होने वाले चुनावों में, जहां संभव होगा, मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार देने को प्राथमिकता देगा.

Updated on: 19 Feb 2020, 10:19 AM

दिल्ली:

झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में हार के बाद चुनावी रणनीति की समीक्षा कर रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) राज्यों में अब पचास फीसदी वोट हासिल करने के लिए लोकप्रिय स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देने तथा समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय दलों के साथ गठजोड़ पर गंभीरता से विचार कर रही है. झारखंड में झाविमो (पी) के नेता बाबूलाल मरांडी (Babu Lal Marandi) की भाजपा में वापसी को इसी नजरिये से देखा जा रहा है. दिल्ली में चुनावी हार के बाद हुई समीक्षा बैठकों से मिले संकेतों के अनुसार, भाजपा नेतृत्व भविष्य में प्रदेशों में होने वाले चुनावों में, जहां संभव होगा, मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार देने को प्राथमिकता देगा.

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पिछले सप्ताह यहां हुई समीक्षा बैठकों में मौजूद सूत्रों ने बताया कि झारखंड और दिल्ली में पार्टी को समर्थन न मिलने का एक कारण उसके पास लोकप्रिय मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न होना भी था. झारखंड में मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव लड़ा था, जिनके खिलाफ कार्यकर्ताओं में नाराजगी की खबरें आलाकमान को भी मिली थीं. जबकि दिल्ली में भाजपा ने किसी को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया.

भाजपा सूत्रों के अनुसार, नेतृत्व की चिंता लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसे मिल रहे मत प्रतिशत के अंतर से बढ़ी है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा को गठबंधन के सहयोगियों सहित 17 राज्यों में पचास फीसदी से अधिक वोट मिले, लेकिन राज्यों के विधानसभा चुनावों में वह काफी पीछे रही. बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में भाजपा का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से है.

पार्टी के एक रणनीतिकार ने कहा, 'इसे ध्यान में रख कर हमें देखना होगा कि हमारी रणनीति पचास फीसदी से अधिक वोट हासिल करने की हो, क्योंकि क्षेत्रीय दल यदि कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ते हैं तो ज्यादा संभावना है कि उन्हें मिलने वाले वोट अधिक हों.' भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने 'भाषा' से कहा, 'हम समीक्षा कर रहे हैं. हमें देशभर में 51 प्रतिशत वोट शेयर तक जाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से बढ़ना है. इसके लिए प्रदेश नेतृत्व को बढ़ावा देने के साथ ही क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ की रणनीति का विकल्प भी पार्टी के सामने है.'

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2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को 15 राज्यों में अपने दम पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिले, जबकि बिहार और महाराष्ट्र में वह क्रमश: 52 और 50 प्रतिशत वोट अपने सहयोगियों के साथ हासिल करने में सफल हुई. बहरहाल, इसके बाद हरियाणा एवं झारखंड में पार्टी बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी. हरियाणा में भाजपा का मत प्रतिशत 36 रहा, जबकि झारखंड में यह 33.37 प्रतिशत रह गया. दिल्ली में 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को 56.58 फीसद वोट मिले थे और हाल के विधानसभा चुनाव में यह घटकर 38.5 प्रतिशत रह गए.

‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी' (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार का मानना है कि मतदाता अब देश और राज्य के आधार पर अलग-अलग सोचविचार कर मतदान करता है. उन्होंने कहा, 'इस बात को समझना है तो साल 2019 में ओडिशा में हुए चुनाव को ही उदाहरण के तौर पर देखें जहां एक ही दिन विधानसभा के लिए भी चुनाव हुए और लोकसभा के लिए भी, लेकिन जनता ने राज्य सरकार के लिए बीजद को चुना और केंद्र में सत्ता के लिए भाजपा को अच्छा समर्थन दिया.'

कुमार ने कहा कि भाजपा ने राज्यों के चुनावों में सशक्त चेहरा नहीं दिया जिसका बेशक कुछ ना कुछ उसे नुक़सान उठाना पड़ा है. उन्होंने कहा, 'इसमें कोई शक नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में सबसे लोकप्रिय नेता हैं लेकिन प्रदेशों के चुनाव में उनकी सीमाएं हैं.' दिल्ली के बाद पार्टी के सामने पश्चिम बंगाल की चुनौती है जहां विधानसभा चुनाव होने हैं. दिल्ली की तरह पश्चिम बंगाल को लेकर भी पार्टी की रणनीति अभी स्पष्ट नहीं है.

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