logo-image

क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम, भारत में क्यों है इसकी जरूरत?

यूनिवर्सल बेसिक इनकम से लोगों के जीवनस्तर में बहुत हद तक बदलाव आ सकता है. इससे असमानता को पाटने में मदद मिलेगी और गरीबी खत्म की जा सकती है.

Updated on: 02 Jan 2019, 02:24 PM

नई दिल्ली:

भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) की चर्चा पिछले काफी समय से हो रही है. अब लोकसभा चुनाव-2019 से पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इसे लागू करने पर विचार कर रही है. वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, वित्त मंत्री अरुण जेटली फरवरी में पेश किए जाने वाले अंतरिम बजट में यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम का ऐलान कर सकते हैं. इससे पहले 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में तत्कालीन मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यन ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्‍कीम को लागू किए जाने का सुझाव दिया था. तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद बीजेपी इस तरह की जनहित योजना को लागू कर एक बार फिर लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब हो सकती है.

क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम

यूबीआई मूल रूप से एक सामाजिक सुरक्षा योजना है जो किसी देश में गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने का तरीका है. इसके तहत देश के हर नागरिक को हर महीने एक निश्चित राशि मुहैया कराई जाती है ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें. यानी लोगों को बिना कोई काम किए और बिना शर्त एक निश्चित रकम सरकार की तरफ से मिल जाएगी.

देश में उदारीकरण लागू होने के करीब 27 साल बाद आज देखें तो गरीबी और अमीरी का फासला बढ़ा ही है. सरकार की तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद देश को गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी जैसी समस्‍याओं से निजात नहीं मिल पाई है. इसलिए सरकार ऐसी योजनाओं को लागू करने पर विचार कर रही है जिससे गरीबी को जड़ से मिटाया जाए.

यूनिवर्सल बेसिक इनकम किस तरीके से लागू होगी, कितनी राशि दी जाएगी. कितने लोगों इसके दायरे में आएंगे, इनकी कैटगरी क्या होगी, क्या इसका आधार सामाजिक और आर्थिक होगा, अभी इसका पता नहीं है. सरकार हर मंत्रालयों से राय ले रही है. हाल ही में लोकसभा में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने यूबीआई का मसला उठाते हुए कहा था कि देश में गरीबी हटाने के लिए 10 करोड़ गरीब परिवारों के खाते में 3,000 रुपये डाले जाने चाहिए.

भारत जैसे देश में यूबीआई सभी नागरिकों के लिए लागू नहीं की जा सकती है और सरकार को कहीं पर यह पैमाना तय करना पड़ेगा, क्योंकि देश में पहले से आवास योजना, पीडीएस स्कीम, मनरेगा जैसी कई जनकल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं जो लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए ही है. क्या यूबीआई लागू करने के बाद इन योजनाओं को सरकार खत्म कर देगी?

भारत में अभी तक किसी भी राज्य में ऐसी योजना लागू नहीं हुई है लेकिन मध्य प्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 2010-16 तक एक योजना चलाई गई थी जिससे लोगों को काफी फायदा पहुंचा था. विश्व के कई देशों में सरकारें इसी तरह की सुविधाएं दे रही हैं जिसमें ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड जैसे देश शामिल हैं.

क्यों है इस योजना की जरूरत

यूनिवर्सल बेसिक इनकम से लोगों के जीवनस्तर में बहुत हद तक बदलाव आ सकता है. इससे असमानता को पाटने में मदद मिलेगी और गरीबी खत्म की जा सकती है. लोग इससे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होंगे जो इतनी सारी योजनाओं के लागू होने के बाद भी नहीं हो पा रही है.

महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा, झारखंड और बिहार के कई इलाकों में सरकारी नीतियों की उपेक्षा के कारण लोगों को अपना बुनियादी हक नहीं मिल पाया है. पिछले एक साल में सिर्फ झारखंड राज्य में भूख के कारण कई मौतों ने सिस्टम पर सवाल खड़े किए थे. किसानों की आत्महत्या और बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी इस योजना को मुख्य काट हो सकता है.

भारत इस साल वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में 119 देशों की सूची में 103वें नंबर पर आया था. वहीं मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की 189 देशों की सूची में 130वें नंबर पर है. इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है. जो देश के लोगों के औसत जीवन स्तर को बयां करता है.

और पढ़ें : 2019 में कौन पड़ेगा किस पर भारी, कांग्रेस के किसान या बीजेपी के भगवान?

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार 2018 बहुआयामी वैश्विक गरीबी सूचकांक (एमपीआई) रिपोर्ट को देखें तो भारत में अब भी 28 फीसदी लोग गरीबी में जी रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया था, 'भारत में सबसे ज्यादा गरीबी चार राज्यों में है. हालांकि भारत भर में छिटपुट रूप से गरीबी मौजूद है, लेकिन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में गरीबों की संख्या सर्वाधिक है. इन चारों राज्यों में पूरे भारत के आधे से ज्यादा गरीब रहते हैं, जो कि करीब 19.6 करोड़ की आबादी है.'

क्या होगा प्रभाव

इस योजना के लागू करने के कई सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं. लोगों के हाथ में पैसे आने से उनकी क्रय शक्ति जरूर बढ़ेगी लेकिन इससे एक खास वर्ग में रोष भी प्रकट होगा. जो व्यक्ति छोटे कामों को कर उतनी कमाई कर रहा है (जितना यूबीआई के तहत मिले तो), ऐसे में किसी को बिना काम किए इतने पैसे उपलब्ध कराना विरोधाभास पैदा करेगा.

यूबीआई के जरिये गरीबों की आर्थिक तरक्की तो होगी ही साथ ही महिलाओं की आर्थिक निर्भरता भी पुरुषों से हट जाएगी. मजदूरों और छोटे कामगारों की आर्थिक दशा सुधरेगी. इस योजना को व्यवहारिक तौर पर भारत में लागू करना एक बहुत बड़ी चुनौती है.

और पढ़ें : Human Rights Day: दुनिया में मानवाधिकार पाने की जारी है लड़ाई, क्यों मनाते हैं यह दिवस और क्या है भारत की स्थिति?

इस योजना को लागू करने की चुनौती यह भी है कि सरकार को बड़े संसाधन की जरूरत होगी. मौजूदा सरकार बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत चीजों पर जब जीडीपी का क्रमश: 3.48 और 2.2 फीसदी खर्च कर रही है तो सभी को आय प्रदान करना मुश्किल लगता है.

अनुमान के मुताबिक, अगर सभी गरीबों के बीच यूबीआई लागू की जाती है तो यह जीडीपी का 10 फीसदी से भी ज्यादा होगा जो अभी सरकार द्वारा दी जा रही हर तरह की सब्सिडी का करीब दोगुना होगा.