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सिख विरोधी दंगे में आया फैसला, जानें मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री कमलनाथ का क्‍या है 'दंगा कनेक्‍शन'

कांग्रेस ने ऐसा सोचा भी नहीं होगा कि जिस दिन वह तीन राज्‍यों में अपनी जीत की नुमाइश कर रही थी, उसी दिन उसके बड़े नेता को दंगाई करार दिया जाएगा

Updated on: 17 Dec 2018, 03:12 PM

नई दिल्ली:

कांग्रेस ने ऐसा सोचा भी नहीं होगा कि जिस दिन वह तीन राज्‍यों में अपनी जीत की नुमाइश कर रही थी, उसी दिन उसके बड़े नेता को दंगाई करार दिया जाएगा और उसे आजीवन कैद की सजा होगी. मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ में 17 दिसंबर को शपथग्रहण की एक साथ तैयारी चल रही थी, इस बीच दिल्‍ली हाई कोर्ट ने सिख विरोधी दंगे में कांग्रेस नेता सज्‍जन कुमार को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. इसके बाद बीजेपी कांग्रेस के खिलाफ मुखर हो गई और उसके मंत्री व नेता कमलनाथ पर भी दंगे में शामिल होने के आरोप लगाने लगे.

बीजेपी नेताओं का आरोप है कि कमलनाथ दिल्ली के रक़ाबगंज गुरुद्वारे पर हुए हमले में शामिल थे. उधर, बीबीसी पर उपलब्‍ध जानकारी के अनुसार, आम आदमी पार्टी के नेता और जाने माने वकील एचएस फूलका ने वर्ष 2006 में एक गवाह अदालत के सामने पेश किया था, जिसका नाम मुख्त्यार सिंह बताया जाता है. इस गवाह के बयान के आधार पर ही कमलनाथ का नाम सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामलों में शामिल किया. कमलनाथ ने पार्टी को भेजे गए पत्र में सफ़ाई देने की कोशिश करते हुए आरोप लगाया कि एच एस फूलका अब आम आदमी पार्टी में हैं, इसलिए वे फिर से उनपर आरोप लगा रहे है.

एनडीए शासनकाल में सिख विरोधी दंगों की जांच कर रहे नानावटी कमीशन के सामने कमलनाथ की पेशी भी हुई थी. उससे भी पहले न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की कमेटी के सामने भी कमलनाथ की पेशी हो चुकी है, जब पत्रकार संजय सूरी बतौर एक गवाह उपस्थित हुए थे और उन्होंने कमलनाथ की पहचान की थी.

कमलनाथ बताते हैं, 'मेरे खिलाफ़ 2005 तक इस बारे में एक भी एफआईआर नहीं थी. इस मामले में पहली बार मेरा नाम 1984 की घटना के 21 साल बाद उछला गया है. पिछली एनडीए सरकार द्वारा गठित नानावटी कमीशन की जांच के बाद मेरे खिलाफ़ किसी भी प्रकार का कोई सबूत नहीं मिला. कमलनाथ ने इस बात पर आश्‍चर्य जताया कि तब किसी ने उनका विरोध नहीं किया, जब वो दिल्ली प्रदेश के प्रभारी थे.

कमलनाथ को मिला था पंजाब का जिम्मा, छोड़ना पड़ा था पद
कमलनाथ को आल इण्डिया कांग्रेस कमिटी का पंजाब प्रभारी भी बनाया गया था. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला बिना सोचे-समझे आनन फ़ानन लिया गया
था, क्योंकि 1984 के सिख दंगों में कमलनाथ पर आरोप लगे थे. हालांकि कमलनाथ इन आरोपों से इंकार करते हैं. हायतौबा मचने के बाद कमलनाथ ने अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष को भेज दिया. कांग्रेस के नेताओं ने ही इस फैसले की तीखी आलोचना की थी. यूपीए के शासनकाल में मंत्री रहे मनोहर सिंह गिल ने कहा था, कमलनाथ की नियुक्ति 'सिखों के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने' के जैसा है. मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का कहना था कि ऐसा कर कांग्रेस ने सिखों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है. जबकि आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि कमलनाथ को कांग्रेस 'दंगों के लिए इस तरह पुरुस्कृत' कर रही है.

पंजाब के मुख्‍यमंत्री अमरिंदर सिंह ने जताया था विरोध
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरेंद्र ने सोनिया गांधी से मिलकर फैसले पर नाराजगी जताई थी. कमलनाथ पर आम आदमी पार्टी और अकाली दल ने निशाना साधा और आरोप लगाया कि सिख विरोधी दंगों में शामिल किसी को कांग्रेस पंजाब का प्रभारी कैसे बना सकती है.