कश्मीर में गिरफ्तार नेताओं को धीरे-धीरे रिहा किया जाए, इंटरनेट बहाली से अमेरिका संतुष्ट
दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों की प्रिंसिपल डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी एलिस वैल्स ने सीएए और कश्मीर के हालातों खासकर इंटरनेट सेवा की आंशिक बहाली पर संतोष जताया है.
highlights
- अमेरिका की दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों की प्रिंसिपल डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी भारत दौरे पर.
- एलिस वैल्स ने सीएए और कश्मीर के हालातों खासकर इंटरनेट सेवा की आंशिक बहाली पर संतोष जताया.
- लोकतंत्र के लिए बेहतरीन संकेत है कि किसी मसले पर व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श हो.
नई दिल्ली:
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद के हालातों पर दुनिया भर की नजरें हैं. भले ही सभी देश इसे भारत का अंदरूनी मामला करार दे रहे हों, लेकिन उनकी निगाहें कश्मीर समेत नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उपजे हालात पर हैं. इनमें से एक अमेरिका भी है. यही वजह है कि दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों की प्रिंसिपल डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी एलिस वैल्स ने सीएए और कश्मीर के हालातों खासकर इंटरनेट सेवा की आंशिक बहाली पर संतोष जताया है. उनके इस बयान से जाहिर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा से पहले कश्मीर मसले पर यूएस प्रशासन हर औपचारिकता पूरी कर लेना चाहता है. गौरतलब है कि पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम ने ट्रंप से हालिया मुलाकात में कश्मीर मसले पर फिर से राग छेड़ा था.
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गिरफ्तार नेता किए जाएं रिहा
कश्मीर में इंटरनेट सेवा को धीरे-धीरे बहाल कर मोदी सरकार भी देश के भीतर उठने वाली आवाजों को शांत कर रही है. ऐसे में प्रिंसिपल डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी एलिस वैल्स ने कश्मीर समेत सीएए पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'यह देख कर काफी अच्छा लग रहा है कि कश्मीर में इंटरनेट सेवा बहाली जैसे चरणबद्ध कदम उठा कर हालात सामान्य किए जा रहे हैं. अमेरिका मोदी सरकार से अपील करता है कि हमारे राजदूतों को वहां के हालात देखने-समझने का नियमित अवसर प्रदान किया जाए. इसके साथ ही लंबे समय से नजरबंद या गिरफ्तार चल रहे स्थानीय नेताओं को भी चरणबद्ध तरीके से रिहा करना चाहिए.'
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सीएए लोकतांत्रिक कसौटी पर
डोनाल्ड ट्रंप के आगमन से पहले दिल्ली दौरे पर आईं एलिस वैल्स ने नागरिकता संशोधन कानून पर कहा हमारी दिल्ली यात्रा से भारत के संदर्भ में और भी बहुत कुछ जानने-समझने का अवसर मिलेगा. खासकर सीएए को लेकर देश में जो हालात हैं, उसे लेकर कह सकते हैं कि इस मसले को लोकतांत्रिक कसौटी पर कसा जा रहा है. भले ही वह सड़क पर हो रहे धरना-प्रदर्शन के जरिए या फिर विपक्षी नेताओं के बयानों से. इसके साथ ही मीडिया और अदालत भी इस मसले को लोकतांत्रिक-संवौधानिक कसौटी पर कस रही है. किसी भी लोकतंत्र के लिए यह एक बेहतरीन संकेत है कि किसी मसले के पक्ष-विपक्ष में व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श हो.
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