मध्य प्रदेश की सियासत में अभी भी जारी है 'पत्रबाजी' का दौर
सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में हर किसी के हाथ में अत्याधुनिक मोबाइल नजर आ जाते हैं और उसी पर मैसेज लिखे जाने का चलन है. कागज पर पत्र लिखने का चलन लगभग खत्म सा होता प्रतीत हो रहा था, मगर मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों 'पत्रबाजी' का दौर चल पड़ा है.
भोपाल:
सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में हर किसी के हाथ में अत्याधुनिक मोबाइल नजर आ जाते हैं और उसी पर मैसेज लिखे जाने का चलन है. कागज पर पत्र लिखने का चलन लगभग खत्म सा होता प्रतीत हो रहा था, मगर मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों 'पत्रबाजी' का दौर चल पड़ा है. इन दिनों तमाम नेता अपनी बात एक-दूसरे तक पहुंचाने के लिए पत्र का सहारा ले रहे हैं. इन पत्रों की चर्चा भी सियासी गलियारों में है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दो दिन पहले राज्य के 39 सांसदों के नाम पत्र लिखकर कहा कि मध्यप्रदेश की सरकार के साथ सौतेला व्यवहार किए जाने को लेकर हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे.
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प्रदेश से निर्वाचित लोकसभा के 29 और राज्यसभा के 10 सदस्यों को जारी पत्र में दिग्विजय सिंह ने प्राकृतिक आपदा सहित विकास मूलक योजनाओं में केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे भेदभाव का उल्लेख किया है और कहा है, 'प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के हितों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है.'
पूर्व मुख्यमंत्री ने इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गुरुवार को केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के नाम पत्र लिखा. इन पत्रों में उन्होंने राज्य की स्थिति का जिक्र किया है. दिग्विजय ने शिवराज से कहा है, 'आओ हम मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करें.' साथ ही कहा है कि राज्य की जनता के हित में थोड़ा सा वक्त निकालें और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से चर्चा करे. इसी तरह केंद्रीय मंत्री तोमर से प्रदेश की समस्याओं पर केंद्र से चर्चा करने की बात कही है.
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एक तरफ दिग्विजय भाजपा नेताओं और सांसदों को पत्र लिख रहे हैं तो दूसरी ओर भाजपा नता व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने अपने विधायकों को पत्र लिखकर आगामी समय में प्रदेश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का आह्वान किया. इस पत्र में भार्गव ने तमाम विधायकों से उनके क्षेत्र की समस्याओं का ब्यौरा मांगा है. वहीं प्रदेश कांग्रेस के सचिव सुनील तिवारी ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के नाम पत्र लिखा है. इसमें कहा गया है कि दतिया जिले का प्रशासन कांग्रेस कार्यकर्ताओं और जनता की आवाज दबाने में लगा है. कार्यकर्ताओं को प्रशासन के कियाकलाप से लगता है कि वह विपक्षी दल के लोगों को लाभ दे रहा है. इसलिए जरूरी है कि प्रशासन को निर्देश दिए जाएं कि कार्यकर्ताओं की बात को वह गंभीरता से ले.
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