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धारा 377: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, समलैंगिक संबंध बनाना अपराध नहीं

समलैगिंकता को अपराध करार देने वाली IPC 377 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट आज इस पर अपना फैसला सुनाएगी।

Updated on: 06 Sep 2018, 02:20 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को IPC 377 के खिलाफ दायर याचिका पर ऐतिहासिक सुनवाई करते हुए समलैगिंकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शुअल ओरिएंटेशन (यौन रुझान) बयॉलजिकल है। इस पर रोक संवैधानिक अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने कहा LGBT समुदाय के अधिकार भी अन्य लोगों की तरह हैं। वहीं जानवरों और बच्चों के साथ बनाए गए अप्रकृतिक यौन संबंधो को अपराध के श्रेणी में रखा गया है। बता दें कि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट अपना फैसाला पढ़ रही है।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, हमारी विविधता को स्वीकृति देनी होगी। व्यक्तिगत पसंद को सम्मान देना होगा। एलजीबीटी को भी समान अधिकार है। राइट टु लाइफ उनका अधिकार है और यह सुनिश्चित करना कोर्ट का काम है।

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद से चैन्नई, मुंबई और महाराष्ट्र की विभिन्न जगहों से लोगों के खुशियां मनाने की तस्वीरें सामने आ रही हैं।

चैन्नई में जश्न मनाते लोग।

इससे पहले कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों से कहा था कि वो समलैंगिकता मामले में अपने दावों के समर्थन में लिखित में दलीलें पेश करें। धारा 377 के खिलाफ याचिकाओं में 2 वयस्कों के बीच आपसी सहमति से एकांत में बने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट संकेत दे चुका है कि वो समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रहने के पक्ष में है।

दरसअल सबसे पहले एनजीओ नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में यह कहते हुए धारा 377 की वैधता पर सवाल उठाया था कि अगर दो वयस्क आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए। 2009 में हाईकोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा 377, यानी समलैंगिकता को फिर अपराध करार दे दिया था।

2013 का अपना ही फैसला पलटा 
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला देकर दिसंबर 2013 को सुनाए गए अपने ही फैसले को पलट दिया है। इस साल सीजेआई दीपक मिश्रा, के साथ जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने 10 जुलाई को मामले की सुनवाई शुरु की थी और 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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क्या है धारा 377

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अनुसार किसी पुरूष, स्त्री या पशुओं से अप्रकृतिक रूप से संबंध बनाना अपराध है। इस अपराध के लिए दोषी को दस साल कैद के साथ आर्थिक दंड की सजा का प्रावधान है। इस धारा के अनुसार अगर कोई व्यस्क आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंद बनाते हैं तो यह अपराध होगा।