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सबरीमला पर उच्चतम न्यायालय का फैसला, अब सबकी निगाहें केरल की वाम सरकार पर

उच्चतम न्यायालय अपने फैसले में कहा कि धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है.

Updated on: 14 Nov 2019, 08:50 PM

नई दिल्‍ली:

भगवान अयप्पा मंदिर की 17 नवंबर से शुरू होने जा रही तीर्थयात्रा से पहले अब पूजा-अर्चना के लिए 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने की अनुमति को लेकर अब सभी निगाहें केरल की वाम सरकार पर टिकी हैं क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने अपने पूर्व के फैसले की समीक्षा करने की मांग करने वाली याचिकाओं को लंबित रखने का फैसला किया है. वहीं, केरल के अधिकतर राजनीतिक दलों ने उच्चतम न्यायालय के बृहस्पतिवार को आए फैसले का स्वागत किया है जिसमें उसने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को भगवान अयप्पा के मंदिर में जाने की अनुमति देने वाले अपने पूर्व के आदेश को नए सिरे से विचार के लिए सात सदस्यीय संविधान पीठ को भेजने का निर्णय किया है.

इसके साथ ही विभिन्न महिला कार्यकर्ताओं ने मामला वृहद पीठ को भेजे जाने को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण और अनावश्यक’’ करार दिया है. केरल के देवस्वम मंत्री कडकमपल्ली सुरेंद्रन ने कहा कि फैसले का व्यापक अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं विपक्ष से पिछले साल की तरह मुद्दे पर कोई राजनीतिक बखेड़ा खड़ा न करने का अनुरोध करता हूं.’’

यह पूछे जाने पर कि क्या युवा महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी, उन्होंने कहा, ‘‘यह समय इस बारे में टिप्पणी करने का नहीं है.’’ वहीं, विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए राज्य की वाम सरकार से रजस्वला आयु वर्ग की स्त्रियों को सुरक्षा दायरे में भगवान अयप्पा के मंदिर में ले जाकर ‘किसी प्रकार का मुद्दा’ खड़ा नहीं करने को कहा. चेन्निथला ने कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि 28 सितंबर के फैसले पर कोई रोक नहीं लगी है, इसलिए एलडीएफ सरकार को महिलाओं को सुरक्षा प्रदान कर सबरीमला मंदिर जाने की अनुमति देकर कोई मुद्दा खड़ा नहीं करना चाहिए. राज्य सरकार को रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर ले जाने का अपना पूर्व का एजेंडा फिर से नहीं चलाना चाहिए.’’

केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने फैसले को ‘‘श्रद्धालुओं की जीत’’ करार देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने सबरीमला दर्शन, परंपरा और वहां प्रचलित विभिन्न पूजा पद्धतियों को समझा है. उच्चतम न्यायालय ने आज के अपने फैसले में कहा कि धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है. इसके साथ ही न्यायालय ने सभी पुनर्विचार याचिकाओं को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने स्वयं अपनी ओर से, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की ओर से फैसला पढ़ता हुए कहा कि वृहद पीठ सबरीमला मंदिर, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश तथा दाऊदी बोहरा समाज में स्त्रियों के खतना सहित विभिन्न धार्मिक मुद्दों पर फैसला करेगी.

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वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा कि नए फैसले से श्रद्धालुओं की आस्था की रक्षा करने में मदद मिलेगी. इस मामले में एक याचिकाकर्ता एवं पंडलाम राजघराने के सदस्य शशिकुमार वर्मा ने कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के फैसले से बेहद प्रसन्न हैं. उन्होंने कहा, ‘‘अदालत ने श्रद्धालुओं की भावनाओं को समझा और पुनर्विचार याचिकाओं को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया. इसका मतलब है कि पहले के फैसले में कोई त्रुटि थी. हमें इस बात का संतोष है और खुशी है कि उच्चतम न्यायालय ने अपने पहले के फैसले पर नए सिरे से विचार का निर्णय लिया है. यह भगवान अयप्पा की कृपा है.’’ भाजपा के वरिष्ठ नेता कुम्मानम राजशेखरन ने कहा कि पुनर्विचार याचिका को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेजा जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि पहले के फैसले में कुछ प्रत्यक्ष त्रुटि थी. राजशेखरन ने कहा,‘‘सरकार को संयम बरतना चाहिए और वृहद पीठ के फैसले का इंतजार करना चाहिए. अगर रजस्वला आयु वर्ग की स्त्रियां पूजा अर्चना का प्रयास करती हैं तो सरकार को उन्हें रोकने की कोशिश करनी चाहिए.’’

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सबरीमला मंदिर के मुख्य पुजारी कंडारारू राजीवारू ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि वह पिछले साल सितंबर के उच्चतम न्यायालय के फैसले को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेजने का स्वागत करते हैं. गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 28 सितंबर को सभी आयु वर्ग की महिलाओं को भगवान अयप्पा के मंदिर जाने और पूजा करने की अनुमति दी थी. न्यायालय के इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने फैसले पर अमल करने की कोशिश की थी जिसके बाद राज्य में हिंसक प्रदर्शक हुए थे. माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि पार्टी के पोलित ब्यूरो की 16 और 17 नवंबर को होने वाली बैठक में सबरीमला और हालिया फैसले पर विस्तृत चर्चा होगी.

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उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि शीर्ष अदालत ने सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश देने के अपने पिछले साल 28 सितंबर के अपने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, इसलिए यह निर्णय जारी रहनी चाहिए.’’ येचुरी ने कोझिकोड में कहा, ‘‘जो मैं समझ सकता हूं, अदालत ने पूर्व के फैसले पर रोक नहीं लगाई है. यदि उन्होंने रोक नहीं लगाई है तो फैसला कायम है. हमें इस पर और स्पष्टता की आवश्यकता है.’’ यह पूछे जाने पर कि क्या माकपा ने मुद्दे पर अपना रुख बदल लिया है, मार्क्सवादी नेता ने कहा, ‘‘हम कह चुके हैं कि उच्चतम न्यायालय जो निर्णय देगा, हम क्रियान्वित करेंगे.’’ एलडीएफ के संयोजक ए विजयराघवन ने कहा कि यूडीएफ ने पूर्व में शीर्ष अदालत के 28 सितंबर के फैसले से लाभ उठाने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार श्रद्धालुओं को तीर्थस्थल के शांतिपूर्ण दर्शन कराने के लिए तमाम प्रबंध करेगी.

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सरकार का प्राथमिक उद्देश्य शांति कायम रखने का है. वहीं, कनकदुर्गा के साथ दो जनवरी को तीर्थस्थल में पूजा करने वाली बिन्दु ने कहा कि फैसले का सकारात्मक पक्ष यह है कि अदालत ने 28 सितंबर के निर्णय पर रोक नहीं लगाई है. उन्होंने मीडिया से कहा कि अयोध्या पर न्यायालय के फैसले का स्वागत करने वाले संघ परिवार को इस फैसले का भी स्वागत करना चाहिए. वहीं, कनकदुर्गा ने आरोप लगाया कि मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाना राजनीति से प्रेरित है. उन्होंने कहा, ‘‘यदि कोई रोक नहीं है तो मैं वहां दोबारा जाना चाहूंगी.’’ वहीं, माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य एवं महिला कार्यकर्ता बृंदा करात ने कहा कि न्यायालय का पूर्व का फैसला बहुत स्पष्ट था. अब इसे बड़ी पीठ को भेजा जाना ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ है. पिछले साल नंवबर में मंदिर जाने की असफल कोशिश करने वाली महिला कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने कहा कि सात न्यायाधीशों की पीठ के फैसला करने तक महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश मिलना चाहिए.

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उन्होंने संकल्प लिया कि इस सप्ताह के अंत में मंदिर के खुलने पर वह वहां पूजा-अर्चना करेंगी. महिला कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने पूछा कि पुनर्विचार याचिका बड़ी पीठ को क्यों भेजी गई? वहीं, महिला सशक्तीकरण समूह ‘सहेली’ से जुड़ीं वाणी सुब्रमण्यम ने मामला बड़ी पीठ को भेजे जाने को ‘‘अनावश्यक’’ करार दिया. भारतीय सामजिक जागृतिक संगठन की छवि मेथी ने कहा कि किसी अन्य के मुकाबले न्यायिक प्रणाली से अधिक सवाल किए जाने की जरूरत है. वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वरन ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ‘‘यह आस्था के पक्ष में फैसला है.’’ आस्था के मामले में किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.