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Adultery अपराध नहीं, SC ने IPC 497 को असंवैधानिक बताया, कहा- पत्नी का मालिक नहीं पति

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 (व्यभिचार) की वैधता पर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा. करीब 157 साल पुराने इस कानून पर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

Updated on: 27 Sep 2018, 01:54 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार यानी आज एक अहम फैसले में व्यभिचार कानून (adultery law) को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अपराध मानने से इनकार कर दिया है. अदालत की 5 जजों की पीठ ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक और मनमाने ढंग से लागू किया गया था. करीब 157 साल पुराने इस कानून पर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रखा था. 

मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा, 'व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता. यह निजता का मामला है. पति, पत्नी का मालिक नहीं है. महिलाओं के साथ पुरुषों के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए. 

मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस ए.एम.खानविलकर की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि कई देशों में व्यभिचार को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है. उन्होंने कहा, 'यह अपराध नहीं होना चाहिए, और लोग भी इसमें शामिल हैं.'

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'किसी भी तरह का भेदभाव संविधान के कोप को आमंत्रित करता है। एक महिला को उस तरह से सोचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिस तरह से समाज चाहता है कि वह उस तरह से सोचे.'

न्यायाधीश रोहिंटन एफ. नरीमन ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'महिलाओं को अपनी जागीर नहीं समझा जा सकता है.' 

न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एकमत लेकिन अलग फैसले में कहा कि समाज में यौन व्यवहार को लेकर दो तरह के नियम हैं, एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरूषों के लिए. 

उन्होंने कहा कि समाज महिलाओं को सदाचार की अभिव्यक्ति के रूप में देखता है, जिससे ऑनर किलिंग जैसी चीजें होती हैं. 

एक नजर में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा-

  • पति, पत्नी का मालिक नहीं, दोनो का बराबर हक़, महिला की निजी गरिमा सबसे अहम
  • कोई ऐसा कानून जो पत्नी को कमतर आंके,  ऐसा भेदभाव ,संविधान की मूल भावना के खिलाफ.
  • एक महिला को समाज की मर्जी के मुताबिक सोचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
  • IPC 499 एक अपराध नहीं हो सकती है, ये सिर्फ तलाक़ का आधार हो सकती है.
  • जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने भी adultery को संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन माना और कहा- IPC 497 अपने आप में मनमानी है.
  • पांच जजों की पीठ ने आईपीसी 497 को असंवैधानिक करार दिया.
  • Adultery (IPC 497), संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन, महिला के समानता के अधिकार का उल्लंघन.
  • जस्टिस चन्दचुड़ ने भी कहा -IPC 497 में पत्नी को पति की प्रॉपर्टी के तौर पर ट्रीट किया जाता है, और ये एक महिला के सम्मान और गरिमा के खिलाफ है.
  • किसी शादीशुदा महिला के साथ सबंध बनाने पर पुरुष के खिलाफ मुकदमा नहीं चलेगा.
  • कोर्ट ने  कहा- Adulerty अब अपराध नहीं, ये संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ, भेदभावपूर्ण, किसी महिला की गरिमा और समानता के अधिकार का हनन है.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा (Chief Justice Dipak Misra) की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 9 अगस्त को अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पिंकी आनंद के जिरह पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था

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इस मामले में पीठ ने 1 अगस्त से छह दिनों तक सुनवाई की थी। इस पीठ में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड और इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं.
केंद्र सरकार ने व्यभिचार पर आपराधिक कानून को बरकरार रखने का पक्ष लेते हुए कहा था कि यह एक गलत चीज है जिससे जीवनसाथी, बच्चों और परिवार पर असर पड़ता है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि सरकार की यह दलील कि विवाह की पवित्रता बनाए रखने के लिए व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में होना ही चाहिए, यह उचित नहीं लगता.

क्या है आईपीसी की धारा 497  (What is IPC section 497)
आईपीसी (IPC) की धारा 497 (Section 497) के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी शादीशुदा महिला के साथ रजामंदी से संबंध बनाता है तो उस महिला का पति एडल्टरी के नाम पर इस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज कर सकता है लेकिन वो अपनी पत्नि के खिलाफ किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है. साथ ही इस मामले में शामिल पुरुष की पत्नी भी महिला के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करवा सकती है. इसमें ये भी प्रावधान है कि विवाहेत्तर संबंध में शामिल पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है.

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(IANS इनपुट के साथ)