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मोदी सरकार के पक्ष में आवाज बुलंद करने का पुरस्कार मिला आरिफ मोहम्मद खान को

तीन तलाक और कश्मीर से धारा 370 हटाने के मसले पर केंद्र सरकार के पक्ष में आवाज बुलंद करने के प्रोत्साहन स्वरूप नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें यह पद बख्शा है.

Updated on: 01 Sep 2019, 12:46 PM

highlights

  • तीन तलाक और धारा 370 पर किया था मोदी सरकार का समर्थन.
  • इसके पहले कांग्रेस के प्रगतिशील मुस्लिम नेता थे खान.
  • जनता दल, बसपा से होते हुए भाजपा में आए यूपी के कद्दावर नेता.

नई दिल्ली.:

मुस्लिम समाज के प्रगतिशील चेहरे बतौर पहचाने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को केंद्र सरकार ने एक बड़े फैसले के तहत केरल का राज्यपाल नियुक्त किया है. माना जा रहा है कि तीन तलाक और कश्मीर से धारा 370 हटाने के मसले पर केंद्र सरकार के पक्ष में आवाज बुलंद करने के प्रोत्साहन स्वरूप नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें यह पद बख्शा है. कभी कांग्रेस का मुस्लिम चेहरा रहे आरिफ मोहम्मद खान ने शाहबानो मसले पर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा दिया था.

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'भारत में जन्म लेना सौभाग्य'
केरल का राज्यपाल बनाए जाने पर समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत करते हुए आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, 'विविधता और समृद्ध विरासत वाले देश भारत में जन्म लेना ही सौभाग्य की बात है. केरल का राज्यपाल बनाया जाना एक सुअवसर है, इस भू-भाग को जानने-समझने का. गॉड्स ओन कंट्री के बतौर विख्यात इस राज्य की सेवा करने में मैं खुद को धन्य ही मानूंगा.'

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26 साल की उम्र में बने विधायक
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में 1951 में जन्मे आरिफ मोहम्मद खान का परिवार बाराबस्ती से ताल्लुक रखता है. बुलंदशहर ज़िले के इस इलाके में शुरुआती जीवन बिताने के बाद खान ने दिल्ली के जामिया मिलिया स्कूल से पढ़ाई की. उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और लखनऊ के शिया कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की. आरिफ मोहम्मद खान छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़ गए. भारतीय क्रांति दल नाम की स्थानीय पार्टी के टिकट पर पहली बार खान ने बुलंदशहर की सियाना सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे. फिर 26 साल की उम्र में 1977 में खान पहली बार विधायक चुने गए थे.

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शाहबानो मसले पर छोड़ी थी कांग्रेस
विधायक बनने के बाद खान ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली और 1980 में कानपुर से और 1984 में बहराइच से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने. इसी दशक में शाहबानो मसला चल रहा था और खान मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के ज़बरदस्त समर्थन में मुसलमानों की प्रगतिशीलता की वकालत कर रहे थे, लेकिन राजनीति और मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग इन विचारों के विरोध में दिख रहा था. ऐसे में 1986 में शाहबानो मामले में राजीव गांधी और कांग्रेस के पक्ष से नाराज़ होकर खान ने पार्टी और अपना मंत्री पद छोड़ दिया.

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फिर कई पार्टियों से होते हुए बीजेपी में आए
इसके बाद खान ने जनता दल का दामन थामा और 1989 में वह फिर सांसद चुने गए. जनता दल के शासनकाल में खान ने नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में काम किया, लेकिन बाद में उन्होंने जनता दल छोड़कर बहुजन समाज पार्टी का दामन थामा. बसपा के टिकट से 1998 में चुनाव जीतकर फिर संसद पहुंचे थे. फिर 2004 में खान भारतीय जनता पार्टी में आ गए. भाजपा के टिकट पर कैसरगंज सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. 2007 में उन्होंने भाजपा को भी छोड़ दिया क्योंकि पार्टी में उन्हें अपेक्षित तवज्जो नहीं दी जा रही थी. बाद में 2014 में बनी भाजपा की केंद्र सरकार के साथ उन्होंने बातचीत कर तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाए जाने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई.