Shaheed Diwas 2020 : सुखदेव के बलिदान को नहीं भूल पाएंगे देशवासी, जानें उनका पूरा सफर
भारत ने इस दिन अपने तीन वीर सपूत को खोया था. उनकी शहादत की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है.
नई दिल्ली:
23 मार्च भारत की स्वतंत्रता के लिए खास महत्व रखता है. भारत इस दिन को हर वर्ष शहीद दिवस (Shaheed Diwas) के रूप में मनाता है. वर्ष 1931 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च के ही दिन फांसी दी गई थी. भारत ने इस दिन अपने तीन वीर सपूत को खोया था. उनकी शहादत (Martyr) की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है. देश की आजादी के लिए तीनों वीर सपूतों ने बलिदान दिया था. बताया जाता है कि असल में इन शहीदों को फांसी की सजा 24 मार्च को होनी थी, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने जल्द से जल्द फांसी देने के लिए एक दिन पहले ही दे दिया था. जिसके चलते तीन वीर सपूतों को 23 मार्च को ही फांसी दी गई थी.
यह भी पढ़ें- शहीद दिवस 2020: 23 मार्च को भगत सिंह को दी थी फांसी, जानें उनका पूरा सफर, पढ़ें उनकी आखिरी खत...
सेंट्रल असेंबली में बम फेंक कर किया था खुला विद्रोह
उन दिनों शहीद भगत सिंह का एक नारा था, जो आज 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' के नाम से हर देशवासियों की जबान पर है. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी सेंट्रल असेंबली में बम फोकने के आरोप में दी गई थी. भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे सिपाही रहे हैं, जिनका जिक्र आते ही शरीर में देशभक्ति के जोश से रोंगटे खड़े होने लगते हैं. सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर है. उनका जन्म 15 मई 1907 में हुआ था. इनका पैतृक घर भारत के लुधियाना शहर, नाघरा मोहल्ला, पंजाब में है. इनके पिता का नाम राम लाल था. बचपन से ही सुखदेव ने उन क्रूर अत्याचारों को देखा था, जो शाही ब्रिटिश सरकार ने भारत पर किए थे. जिसने उन्हें क्रांतिकारियों से मिलने के लिए बाध्य कर दिया. उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन के बंधनों से मुक्त करने का प्रण किया.
यह भी पढ़ें- शहीद दिवस 2020: 23 मार्च को ही अमर हो गए थे राजगुरु, जानें उनका पूरा सफर, कैसे चटाई थी अंग्रेजों को धूल
1929 में ‘जेल की भूख हड़ताल’ में सक्रिय भूमिका निभाई थी
सुखदेव लाहौर नेशनल कॉलेज में युवाओं को शिक्षित करने के लिए गए और वहां उन्हें भारत के गौरवशाली अतीत के बारे में अत्यन्त प्रेरणा मिली. उन्होंने अन्य प्रसिद्ध क्रांतिकारियों के साथ लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ की शुरुआत की. जो विभिन्न गतिविधियों में शामिल एक संगठन था. इन्होंने मुख्य रूप से युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने और सांप्रदायिकता को खत्म करने के लिए प्रेरित किया था. सुखदेव ने खुद कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे वर्ष 1929 में ‘जेल की भूख हड़ताल’ में सक्रिय भूमिका निभाई थी. लाहौर षडयंत्र के मामले (18 दिसंबर 1928) में उनके साहसी हमले के लिए, उन्हें हमेशा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में याद किया जाएगा, क्योंकि उसमें इन्होंने ब्रिटिश सरकार की नींव को हिलाकर रख दिया था.
फांसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -
मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे।
मेरा रंग दे बसंती चोला। माय रंग दे बसन्ती चोला॥
फांसी के बाद कहीं कोई आंदोलन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके पार्थिव शरीर के टुकड़े किये, फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये. जहां घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा. गांव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आये. इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गये. जब गांव वाले पास आये तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Good Friday 2024: क्यों मनाया जाता है गुड फ्राइडे, जानें प्रभु यीशु के बलिदान की कहानी
-
Sheetala Ashtami 2024: कब है 2024 में शीतला अष्टमी? जानें पूजा कि विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व
-
Chaitra Navaratri 2024: भारत ही नहीं, दुनिया के इन देशों में भी है माता के शक्तिपीठ
-
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार देश का शासक कैसा होना चाहिए, जानें