logo-image

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मास्टर प्लान संशोधन पर लगाई रोक में किया संशोधन

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिया कि वह मास्टर प्लान में प्रस्तावित संशोधनों पर आपत्तियां मंगाने के लिए 15 दिन का समय दे।

Updated on: 15 May 2018, 07:29 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मास्टर प्लान-2021 में प्रस्तावित संशोधन पर रोक लगाने के अपने 6 मार्च के आदेश में मंगलवार को आंशिक संशोधन कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिया कि वह मास्टर प्लान में प्रस्तावित संशोधनों पर आपत्तियां मंगाने के लिए 15 दिन का समय दे।

जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस नवीन सिन्हा की बैच ने डीडीए की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल से जानना चाहा कि क्या विभाग के संबंधित अधिकारियों को उनके अधिकार क्षेत्र वाले इलाकों में अनधिकृत निर्माण होने पर निलंबित किया जाएगा?

वेणुगोपाल ने 6 मार्च के आदेश में सुधार काअनुरोध करते हुए अधिकारों के बंटवारे की अवधारणा का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि विधायी प्राधिकारियों को कानून बनाने से रोका नहीं जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से कहा कि प्रस्तावित संशोधनों पर आपत्तियां मंगाने के लिए 15 दिन का समय दिया जाए और सरकार को सभी पहलुओं पर विचार के बाद ही अंतिम निर्णय लेना चाहिए।

बैच ने इसके साथ ही इस मामले को अब 17 मई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। मास्टर प्लान-2021 विस्तृत विकास सुनिश्चित करने के लिए शहरी नियोजन और महानगर के विस्तार की रूपरेखा है।

और पढ़ें: पेंशन के लिए जरूरी नहीं है आधार कार्ड - केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह

प्रस्तावित संशोधनों का मकसद दुकान, रिहायशी भूखंडों और परिसरों को रिहायशी भूखंडों के एफएआर के समान लाने का लक्ष्य है।

बता दे कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की ओर से प्रस्तावित मास्टर प्लान-2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 6 मार्च को संभावित संशोधन पर रोक लगा दी थी। 

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डीडीए को मनमानी करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। 

हालांकि इस दौरान कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए डीडीए और एमसीडी को फटकार लगाई और कहा कि यह दादागिरी नहीं चलेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले यह भी कहा था कि कोर्ट द्वारा नियुक्त निगरानी समिति के कामकाज में किसी प्रकार का हस्तक्षेप अवमानना होगा।

बैच ने अवैध निर्माण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि दिल्ली में भवन निर्माण की मंजूरी के मामले में कानून का शासन पूरी तरह चरमरा गया है।

कोर्ट ने अवैध निर्माणों का पता लगाने और उन्हें सील करने के लिए 24 मार्च, 2006 को गठित निगरानी समिति को भी बहाल कर दिया था।

इस समिति में निर्वाचन आयोग के पूर्व सलाहकार के.जे. राव, पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण के अध्यक्ष भूरे लाल और मेजर जनरल (सेवा.) सोम झींगन शामिल हैं।

और पढ़ें: घोटाले ने PNB को डुबोया, चौथी तिमाही में हुआ 13, 416 करोड़ रु का रिकॉर्ड घाटा