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राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामला: अयोध्या जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या भूमि विवाद को लेकर शुक्रवार से सुनवाई शुरू हो रही है। दोपहर दो बजे जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की विशेष बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी।

Updated on: 11 Aug 2017, 05:09 AM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या भूमि विवाद को लेकर शुक्रवार से सुनवाई शुरू हो रही है। दोपहर दो बजे जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की विशेष बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 में आये  फैसले के बाद, पिछले करीब सात साल से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। लेकिन इस मामले से जुड़े कई मुख्य पक्षकारों का कहना है कि कोर्ट में पेश करने के लिए अब दस्तावेज तैयार नहीं हुए है, उनका अनुवाद बाकी है।

ऐसे में ये देखना होगा कि कोर्ट क्या विस्तृत सुनवाई के लिए कोई नई तारीख तय करता है या नहीं। माना ये भी जा रहा है कि शुक्रवार को होने वाली सुनवाई में कोर्ट इस जटिल मामले में विस्तृत सुनवाई के दायरे तय कर सकता है।

क्या है इलाहाबाद हाइकोर्ट का फैसला?

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बाटने का आदेश दिया था, जिसका एक हिस्सा रामलला को ,दूसरा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाने की बात फैसले में कही गई थी।

* इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने फैसले में एएसआई (पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ) की रिपोर्ट को आधार मानते हुए माना कि विवादित जगह पर बाबरी मस्जिद से पहले राम मंदिर था। कोर्ट ने इस मान्यता को तरजीह दी कि रामलला कई सालों से मुख्य गुम्बद के नीचे स्थापित था और वहीं प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जिस जगह रामलला की मूर्ति विराजमान है, वो जगह रामलला विराजमान को दे दी जाए।

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* कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के इस दावे को मान्यता दी कि बाबरी मस्जिद से पहले बने वहाँ के मंदिर पर उसका अधिकार रहा है। इसी के चलते कोर्ट ने राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी।

*अयोध्या से जुडी हिंदू आस्था को फैसले में मान्यता देने के साथ साथ कोर्ट ने ये भी माना कि इस ऐतिहासिक तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती की वहां साढ़े चार सौ सालों तक एक ऐसी इमारत थी जिसे मस्जिद के रूप में बनाया गया था। कोर्ट ने बाकी बचा हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दे देने का निर्देश दिया।

जमीन बंटवारे के जरिये सतुंलन कायम रखने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से कोई भी पक्ष सन्तुष्ट नहीं हुआ और सभी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और विवादित जगह पर यथा स्थिति बनाने का आदेश दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की कि जब किसी पक्ष ने जमीन बंटवारे की बात नहीं की तो हाईकोर्ट ने बंटवारे को लेकर ऐसा फैसला क्यों दिया?

शिया वक़्फ़ बोर्ड का पेंच

इस मामले में जुड़ा एक पक्ष शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड का भी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी उसने शुरुआती दौर में जमीन पर दावा ठोंका था। हालांकि दलील पेश करने के लिए वहां उसकी ओर से कोई पेश नहीं हुआ था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले इस मामले से जुड़े शिया वक़्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा और याचिका दायर कर नया मोड़ ला दिया।

बोर्ड ने हलफनामे में कहा कि वो विवादित जगह से हट कर मस्ज़िद बनाने को तैयार है क्योंकि एक ही जगह पर मंदिर और मस्ज़िद होने से भविष्य में भी विवाद की आशंका रहेगी। इससे बचने के लिए मस्ज़िद दूसरी जगह पर बनाना बेहतर होगा। वहीं दूसरी ओर शिया बोर्ड ने विवादित ज़मीन पर सुन्नियों के दावे को गलत बताया। हलफनामे में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि कि बाबरी मस्जिद बनवाने वाला मीर बाकी शिया था। इसलिए, विवादित जमीन पर उसका है ना कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का ।

हलफनामे के अलावा शिया बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फैजाबाद की जिला अदालत के 1946 में दिए गए उस फैसले को भी चुनौती दी है जिसके तहत ट्रायल कोर्ट ने जमीन पर शिया वक़्फ़ बोर्ड के दावे को ठुकरा दिया था।

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इस याचिका में अपने दावे के पक्ष में दलील रखते हुए शिया बोर्ड ने माना है कि शिया से ताल्लुक रखने वाले मीर बाकी ने मंदिर का विध्वंश कर बाबरी मस्जिद बनाई थी। ये देखना अहम होगा कि जमीन पर शिया बोर्ड के दावे को सुप्रीम कोर्ट कितनी गम्भीरता से लेता है।