जानें क्या है समलैंगिकता का प्रतीक इंद्रधनुषी झंडे का इतिहास
जब यह झंडा तैयार किया गया था, उस वक्त इसमें आठ रंग थे, जिसे बाद में कम करके छह रंगों का कर दिया गया। अब इसमें हरा, केसरिया, पीला, गुलाबी, लाल, आसमानी रंग शामिल हैं।
नई दिल्ली:
आपने देखा होगा कि भारत और पूरे विश्व में जहां भी समलैंगिता पर बात होती है, आंदोलन होते हैं वहां लोग एक विशेष झंडे के साथ होते हैं। इस झंडे में अलग-अलग रंग होते हैं। बता दें कि यह झंडा समुदाय का प्रतीक है। जिसे हमें पूरे सम्मान से लहराना चाहिए। गुरूवार को आए ऐतिहासिक फैसले के बाद से लोग तस्वीरों और वीडियो में इस झंडे के साथ दिख रहे हैं। पर क्या आपने कभी इस झंडे के बारे में जानने की कोशिश की। क्या है इसका इतिहास और क्यों है यह प्रतीक का। क्यों भारत के नक्से को रंग दिया गया है, इंद्रधनुषी रंग में। हम नीचे दे रहे हैं इस झंडे से जुड़ी जरूरी जानकारी।
समलैंगिकता और इंद्रधनुषी झंडे का इतिहास
यह छह रगों को झंडा समलैंगिकता का प्रतीक है। अमेरिका में गे अधिकारों के दौरान इस झंडे को तैयार किया गया था। 1978 में अमेरिकी गे राइट एक्टिविस्ट गिलबर्ट बेकर ने इस झंडे का डिजाइन तैयार किया था। बताया जाता है कि गिलबर्ट को इस झंडे की प्रेरणा प्रकृति से मिली। बादलों में दिखने वाले इंद्रधनुष में अलग-अलग रगों की झलक दिखती है। गिलबर्ट को लगा कि यही अलग-अलग रंगों की पट्टियां लोगों को समानता का भाव देंगी, सबके जीवन में ढेरों रंग बर देंगी। यह प्रतीक संमलैंगिक लोगों को भी समान सूत्र में पिरोएगा।
जब यह झंडा तैयार किया गया था, उस वक्त इसमें आठ रंग थे, जिसे बाद में कम करके छह रंगों का कर दिया गया। अब इसमें हरा, केसरिया, पीला, गुलाबी, लाल, आसमानी रंग शामिल हैं।
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क्या है इन रंगों के मायने
झंडे में लाल रंग - जिंदगी का प्रतीक है, हरा- प्रकृति का प्रतीक, गुलाबी रंग- समलैंगिको के सेक्स का प्रतीक, पीला- सूरज की रोशनी का प्रतीक, केसरिया रंग- जख्मों पर मरहम लगाने का प्रतीक और आसमानी रंग है प्रतीक जादू का।
इस झंडे से लोगों की कई भावनाएं जुड़ी हुई हैं। इसके वजह यह है कि जब झंडे को पहली दफे अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को शहर में फहराया गया था उसके कुछ ही घंटों में हार्वे मिल्क की हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद हार्वे बहुत से लोगों को हीरो बन गए। तो आप भी गर्व से लहराइए समलैंगिता के प्रतीक इस झंडे को और लड़ते रहिए अपने अधिकारों के लिए।
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