CAB पर पीएम मोदी का विपक्ष पर वार- ये North-East में आग लगाने की कोशिश कर रहे
मोदी ने कहा कि मैं नॉर्थ-ईस्ट और पूर्वी भारत के हर राज्य, हर जनजातीय समाज को आश्वस्त करना चाहता हूं कि असम सहित नॉर्थ-ईस्ट के अलग-अलग क्षेत्रों की परंपराओं, वहां की संस्कृति, उन्हें संरक्षण देना और समृद्ध करना भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिकता है.
धनबाद:
नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों को जमकर घेरा है. झारखंड के धनबाद में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस और उसके साथी नॉर्थ-ईस्ट में भी आग लगाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वहां भ्रम फैलाया जा रहा है कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग आ जाएंगे, जबकि ये कानून पहले से ही भारत आ चुके शरणार्थियों की नागरिकता के लिए है. 31 दिसंबर 2014 तक जो भारत आए उन शरणार्थियों के लिए ही ये व्यवस्था है. इतना ही नहीं नॉर्थ-ईस्ट के करीब-करीब सभी राज्य इस कानून के दायरे से बाहर हैं.
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मोदी ने कहा कि मैं नॉर्थ-ईस्ट और पूर्वी भारत के हर राज्य, हर जनजातीय समाज को आश्वस्त करना चाहता हूं कि असम सहित नॉर्थ-ईस्ट के अलग-अलग क्षेत्रों की परंपराओं, वहां की संस्कृति, उन्हें संरक्षण देना और समृद्ध करना भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिकता है. उन्होंने कहा, 'मैं आज नॉर्थ-ईस्ट के और विशेषकर असम के भाइयों-बहनों और वहां के युवा साथियों को अपील करता हूं कि आप अपने इस सेवक मोदी पर विश्वास रखिए. मैं नॉर्थ-ईस्ट के भाइयों बहनों की किसी परंपरा-भाषा-रहन सहन, संस्कृति पर आंच नहीं आने दूंगा.'
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि कांग्रेस और उनके साथियों की डिक्शनरी में कभी भी जनहित शब्द ही नहीं है. उन्होंने हमेशा स्वहित के लिए, परिवार हित के लिए काम किया है. इनकी राजनीति रही है लूटो और लटकाओ. उन्होंने कहा कि अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए राष्ट्र का अहित करने वाली कांग्रेस की सोच का एक और उदाहरण देना चाहता हूं. 1947 में जब देश आजाद हुआ, भारत के टुकड़े हो गए, माता को आजाद कराने के लिए भारत माता की भुजाएं काट दी गईं. 1971 में बांग्लादेश का निर्माण हुआ. दोनों बार सबसे अधिक प्रभावित वो लोग हुए जो पाकिस्तान में, बांग्लादेश में, अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक थे, जिनका ध्यान रखने का समझौता हुआ था. ये अल्पसंख्यक कौन हैं? इनमें अधिकतर हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी लोग थे.
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उन्होंने कहा, 'ये लोग अनेकों पीढ़ियों से वहां रह रहे थे. वो कहीं और से जाकर वहां नहीं बसे थे. इन लोगों ने अलग देश की मांग भी नहीं की थी. उन पर ये फैसला 47 में थोपा गया था. हिंदुओं में भी अधिकतर दलित परिवारों के लोग थे, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान में रह गए थे और ये लोग थे जो वहां साफ-सफाई का काम करते थे, जिनको पाकिस्तान के जमींदारों ने वहां सेवा के लिए, कामकाज के लिए रखा था. जब अफगानिस्तान में तालिबान के हमले बढ़े तो दर्जनों ईसाई परिवार भी जान बचाकर भारत आए। लेकिन भारत आने के बाद कांग्रेस सरकार ने इन लोगों का भी साथ नहीं दिया.'
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