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एम नागेश्वर राव के CBI अंतरिम निदेशक नियुक्ति को प्रशांत भूषण ने SC में दी चुनौती

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने एम नागेश्वर राव की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अंतरिम डायरेक्टर के तौर पर नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

Updated on: 14 Jan 2019, 02:57 PM

नई दिल्ली:

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने एम नागेश्वर राव की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अंतरिम निदेशक के तौर पर नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. प्रशांत भूषण ने एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से यह याचिका दाखिल की है. इससे पहले आलोक वर्मा को निदेशक पद से हटाए जाने को लेकर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री की भूमिका में 'हितों के टकराव' की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री उस तीन सदस्यीय समिति का हिस्सा हैं जिसने वर्मा को पद से हटाया है. इसमें लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सर्वोच्च न्यायालय के मनोनीत प्रतिनिधि प्रधान न्यायाधीश द्वारा नामित न्यायमूर्ति एके सीकरी हैं.

उन्होंने कहा, 'सीबीआई निदेशक के रूप में पदभार संभालने के एक दिन बाद, मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने फिर से आलोक वर्मा को बिना सुनवाई के जल्दबाजी में हटा दिया, क्योंकि उन्हें डर था कि राफेल घोटाले में मोदी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने की संभावना है.'

उन्होंने कहा, 'आलोक वर्मा का पक्ष सुने बिना समिति यह कैसे तय कर सकती है? यह सरकार की हताशा को दर्शाता है. इसमें प्रधानमंत्री के हितों का टकराव है. इतनी हताशा, किसी भी जांच को रोकने के लिए है.'

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने गुरुवार को आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख के पद से हटा दिया था. जिसके बाद शुक्रवार को अतिरिक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को फिर से सीबीआई निदेशक का कार्यभार दे दिया गया. वर्ष 1986 बैच के ओडिशा कैडर के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी राव ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के अनुरूप कार्यभार संभाल लिया.

सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना और वर्मा द्वारा एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के बाद केंद्र सरकार ने 23 अक्टूबर को वर्मा और अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया था और राव को अंतरिम निदेशक का प्रभार सौंपा था.

वर्मा को सीबीआई निदेशक के रूप में फिर से नियुक्त करने के 48 घंटे के भीतर ही पद से हटाकर राव को पद्भार सौंप दिया गया.

वहीं आलोक वर्मा ने भ्रष्टाचार के आरोप में हटाए जाने को लेकर कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप झूठे, अप्रमाणित हैं. विशेष निदेशक राकेश अस्थाना द्वारा लगाए गए अरोपों का जिक्र करते हुए आलोक वर्मा ने कहा, 'यह दुखद है कि मेरे विरोधी सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा लगाए गए झूठे, अप्रमाणित, हल्के आरोपों के आधार पर मेरा तबादला कर दिया गया.'

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आलोक वर्मा ने गुरुवार रात कहा, "मैंने संस्था की अखंडता बनाए रखने की कोशिश की और अगर मौका मिला तो कानूनी नियमों को बनाए रखने के लिए फिर से ऐसा करूंगा."

उन्होंने कहा कि सीबीआई भ्रष्टाचार से निपटने वाली एक प्रमुख जांच एजेंसी है, एक ऐसी संस्था है जिसकी स्वतंत्रता को संरक्षित और सुरक्षित किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, "इसे बिना किसी बाहरी प्रभावों यानी दखलअंदाजी के कार्य करना चाहिए. मैंने संस्था की साख बनाए रखने की कोशिश की है, जबकि इसे नष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं."

उन्होंने सरकार व सीवीसी के 23 अक्टूबर के आदेशों का जिक्र करते हुए कहा, "इसे केंद्र सरकार और सीवीसी के 23 अक्टूबर, 2018 के आदेशों में देखा जा सकता है जो बिना किसी अधिकार क्षेत्र के दिए गए थे."

सरकार व सीवीसी के 23 अक्टूबर के आदेश में आलोक वर्मा को उनके अधिकारों से वंचित कर उन्हें छुट्टी पर भेज दिया गया था.

समिति की बैठक के तुंरत बाद आलोक वर्मा को 31 जनवरी तक के लिए अग्निशमन सेवा, नागरिक सुरक्षा और होम गार्ड का महानिदेशक नियुक्त कर दिया गया. आलोक वर्मा का कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त हो रहा है.

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सरकार ने अगले निदेशक की नियुक्ति तक सीबीआई के अतिरिक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक के रूप में जिम्मेदारी सौंपी है.