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Exclusive: सीमा विवाद, डोकलाम से कहीं आगे जा चुके हैं भारत-चीन संबंध

NewsState के वरिष्ठ सहयोगी सुनील मिश्रा ने यांग ई फांग (Yang Yifeng) और अखिल पराशर (Akhil Parashar) से चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे से पीएम मोदी से किन मुद्दों पर बातचीत हो सकती है इस पर बात चीत की.

Updated on: 10 Oct 2019, 09:49 AM

नई दिल्ली:

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President XI Jinping) 11 अक्टूबर को भारत के दौरे पर आ रहे हैं. जिनपिंग (XI Jinping) यहां भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Indian PM Narendra Modi) से अनौपचारिक बातचीत करेंगे. इस दौरान दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष किन मुद्दों पर बातचीत करेंगे, इसे लेकर NewsState के वरिष्ठ सहयोगी सुनील मिश्रा ने चाइना मीडिया ग्रुप (CMG) के प्रतिनिधियों यांग ई फांग (Yang Yifeng) और सीनियर करेस्पॉन्डेंट अखिल पराशर (Akhil Parashar) से बातचीत की. यांग ई फांग चाइना मीडिया ग्रुप की हिन्‍दी विभाग की डायरेक्टर हैं. अखिल पाराशर भी पिछले 8 सालों से चाइना मीडिया ग्रुप से जुड़े हुए हैं. चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे से पीएम मोदी से किन मुद्दों पर बातचीत हो सकती है, इस पर यांग ई फांग और अखिल पाराशर ने अपनी राय जाहिर की.

प्रश्न - चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारतीय दौरे पर आ रहे हैं और महाबलीपुरम में पीएम मोदी से उनकी अनौपचारिक बातचीत होनी है, इससे पहले उनकी वुहान में अनौपचारिक बातचीत हुई थी. वुहान से महाबलीपुरम तक का सफर कैसा आपको लगता है. भारत चीन संबंध किस दिशा में जा रहा है?

उत्तर (यांग ईफांग)- चूंकि पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच चीन के बुहान में पहली अनौपचारिक बैठक हुई थी और इस बार इस साल भारत के महाबलीपुरम में दूसरी अनौपचारिक वार्ता होगी. मेरे विचार में ये तो चीन और भारत के संबंध को आगे बढ़ाने के लिए यह एक बहुत अच्छा मौका है और अच्छा तरीका भी है. दरअसल आजकल भारत और चीन के बीच रिश्तों बढ़ाने की सबसे बड़ी प्रेरणाशक्ति दोनों देशों के नेता हैं.

(अखिल) - बिलकुल मैं इनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहूंगा कि, जैसा कि आपने प्रश्न किया कि वुहान समिट हुआ और अब महाबलीपुरम में मीटिंग होने जा रही है तो इसका जो सफर है काफी सकारात्मक सफर रहा है इस दौरान दोनों देशों ने कई क्षेत्रों में सहयोग करने पर हाथ भी मिलाया. शी जिनपिंग और पीएम मोदी एक दूसरे से अलग-अलग मंचों पर और अलग-अलग देशों में कई बार मुलाकात भी कर चुके हैं. और आज के समय के चीन और भारत के संबंधों की तुलना अगर हम पिछले कुछ समय पहले से करें तो आज के समय दोनों देशों के संबंध एक अच्छे काल से गुजर रहे हैं दोनों का अच्छा समय चल रहा है और दोनों देश करीब आ रहे हैं. और मैं बताना चाहूंगा कि ये जो अनौपचारिक समिट है इसी से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि दोनों देश एक दूसरे के करीब आ रहे हैं. आप इन अनौपचारिक मीटिंग्स से इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों का कॉन्फिडेंस लेवल कितना हाई है. दोनों देशों के नेताओं के बीच काफी मधुर संबंध हैं अगर ऐसा नहीं होता तो दोनों देशों के बीच ये बैठक अनौपचारिक नहीं होती बल्कि फॉर्मल होती. अनौपचारिक का मतलब है कि हम किसी भी मुद्दे पर बात कर सकते हैं इस दौरान किसी भी तरह की बंदिशें नहीं होंगी मीडिया का इस बैठक में ज्यादा दखल नहीं होगा और दोनों नेता किसी भी मुद्दे पर खुल कर बात करेंगे.

प्रश्न - महाबलीपुरम में होने वाली द्विपक्षीय वार्ता का एजेंडा क्या हो सकता है?

उत्तर - (अखिल) देखिये मेरे ख्याल से जो अनौपचारिक समिट होती है इनमें किसी तरह का एजेंडा नहीं होता है. जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया कि किसी भी मुद्दे पर बात हो सकती है. लेकिन फिर भी इस वार्ता में दोनों देशों के बीच खटास पैदा करने वाले मुद्दों पर वार्ता हो सकती है. बातचीत के माध्यम से ऐसे मुद्दों को दरकिनार करने की कोशिश की जा सकती है दोनों ओर से विवादित मुद्दों को ठंडे बस्ते में डालने पर विचार हो सकता है. दोनों देश एशिया के शक्तिशाली देश हैं और दोनों को आगे बढ़ना है. दोनों देश आगे कैसे बढ़ सकते हैं और दोनों देश कैसे पूरी दुनिया का नेतृत्व कैसे कर सकते हैं इन मुद्दों पर बात चीत हो सकती है. चीन और भारत के अनेक क्षेत्रों जैसे न सिर्फ ऑर्थिक क्षेत्र बल्कि सामाजिक क्षेत्र और मनोरंजन के क्षेत्र में दोनों देश काफी अच्छा कर रहे हैं. पिछले साल करीब 10 भारतीय फिल्में चीन के बड़े पर्दे पर देखीं गईं हैं. इन फिल्मों ने वहां पर अच्छा बिजनेस भी किया है, तो चीन और भारत इसके आगे कैसे बढ़ेंगे उन मुद्दों पर ज्यादा बातचीत करेंगे ना कि उन मुद्दों पर जो कि भारत चीन को पीछे खीचेंगे.

प्रश्न - सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच काफी पहले काफी विवाद रहा है, पिछले साल डोकलाम विवाद हुआ अभी हाल में डोकलाम के पास एक और मामला हुआ जिसमें सेना आगे-पीछे होती रही है क्या इस मुद्दे पर भी इस बैठक में बातचीत हो सकती है?

उत्तर - (यांग ईफांग)- मेरे विचार में जो शी और मोदी की इस औपचारिक बैठक में इन मुद्दों पर जरूर बातचीत करेंगे लेकिन मुझे आशा है कि वो दोनों एक सकारात्मक दिशा में इस सवाल को हल करने की कोशिश करेंगे और लोगों के लिए प्रेरणा बन सकेंगे. चीन और भारत के बीच कुछ मतभेद हैं हम सब जानते हैं लेकिन मेरे विचार में ये तो कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि एक परिवार के लोगों के विचार भी अलग-अलग होते हैं. यदि हम सब मिलकर एक दिशा में काम करने की कोशिश करें तो जरूर आगे बढ़ सकते हैं.

(अखिल)- बिलकुल मैं इनकी बात को आगे पूरा करता हूं यह बात बिलकुल सही है कि दोनों देशों के बीच सीमा का मुद्दा है. और यह मुद्दा कोई नया नहीं है बल्कि पुराना और ऐतिहासिक मुद्दा है. दोनों देश समय-समय पर इसको सुलझाने की कोशिश करते हुए आए हैं. दोनों देश इतने समझदार हैं कि इतने दिनों से इस मुद्दे पर सिर्फ बातचीत ही होती आई है दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर कभी एक गोली भी नहीं चली है. जैसे कि आपने डोकलाम विवाद पर बात की 72 दिनों तक चले इस विवाद में दोनों देशों की ओर से एक भी गोली नहीं चलाई गई. दोनों देशों के नेता समझदार है और मुझे यकीन है कि आने वाले समय में दोनों देशों के नेता इस मुद्दे को निपटा लेंगे.

प्रश्न - मिस यांग अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन को काफी आपत्ति होती है जैसे पिछले दिनों जब हमने वहां एक पुल का काम कर रहे थे तो चीन ने आपत्‍ति जताई थी. ऐसा क्‍याें?

उत्तर - (अखिल) आपको मैं इसका जवाब देना चाहूंगा कि यह दोनों देशों के बीच एक सीमा मुद्दा है जिसको दोनों देश एकसाथ बैठकर सुलझाएंगे. अगर चीन कहता है कि यह हमारा क्षेत्र है और भारत कहता है कि यह हमारा क्षेत्र है तो ये दोनों आपसी तालमेल की कमी है. दोनों देशों के प्रतिनिधि मंडल आए दिन ऐसे मुद्दों पर बातें करते रहते हैं आने वाले दिनों में इस बात को भी दोनों देश वार्ता से ही मिलकर सुलझा लेंगे.

प्रश्न - चीन से भारत का व्यापार लगातार आगे बढ़ता ही जा रहा है. मोदी और जिनपिंग की बातचीत के बाद यह कितना और आगे जाने की उम्मीद है?

उत्तर -  (यांग ई फांग) -  आर्थिक क्षेत्र में चीन और भारत के बीच में बहुत बड़ा सहयोग है. आंकड़े बताते हैं कि 2018 में भारत और चीन के बीच का व्यापार करीब 95 अरब तक पहुंच चुका है. चीन और भारत मिलकर दोनों देशों में रोजगार के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं.

(अखिल) बिलकुल जैसा कि इन्होंने बताया कि दोनों देशों के बीच व्यापार 95 अरब तक पहुंच चुका है जो कि जल्दी ही 100 अरब का आंकड़ा भी छू लेगा. दोनों देश आज की तारीख में उभरते हुए विकासशील देश हैं और दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं काफी मजबूत हैं. चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जबकि भारत चौथी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. और जब इतनी बड़ी दो अर्थव्यवस्थाएं मिलती हैं तो व्यापार का आंकड़ा 100 अरब की बजाय 200 अरब तक जाना चाहिए. दोनों देश अगर व्यापार बढ़ाएंगे तो दोनों देशों को ही फायदा होगा अगर चीन भारत में निवेश करता है तो यहां के युवाओं को रोजगार मिलेगा यही मामला चीन के साथ भी होगा.

प्रश्न - अमेरिका से चीन का ट्रेडवार चल रहा है तो क्या उसके बाद भारत और चीन के लिए बहुत ज्यादा गुंजाइश है आपस में मिलकर व्यापार करने का?

उत्तर-  (यांग ई फांग)- यह भारत के लिए बड़ा मौका है लेकिन चीन के लिए नहीं है चीन को यहां नुकसान उठाना पड़ सकता है. यहां चीन अन्य देशों के साथ मौके की तलाश करेगा जैसे भारत चीन का सबसे बड़ा पड़ोसी देश है और चीन भारत से अनेक सामानों का आयात कर सकते हैं जैसे दवाईयां और कुछ रॉ मटेरियल हैं तभी अखिल ने बीच में ही कहा कि इस प्रश्न का जवाब मुझसे लें .

अखिल - जैसे चीन अमेरिका से सबसे ज्यादा सोयाबीन आयात करता है और भारत भी सोयाबीन का बड़ा उत्पादक है. तो जैसा ट्रेड वार चीन और अमेरिका का चल रहा है उससे मेरी नजर में भारत को ही फायदा हो रहा है. अमेरिका से विवाद के बाद चीन अब भारत सहित अन्य देशों की तरफ देखेगा कि कहां पर अपना माल बेचा जाए और कहां से अपने लिये माल लाया जाए अभी हाल में ही अमेरिका ने चीन पर व्यापार का टैरिफ बढ़ा दिया ऐसे में चीन ने भारत से सोयाबीन निर्यात किया तो आप देख सकते हैं इस ट्रेड वार से भारत को ही फायदा मिल रहा है. आपको बता दें कि ये जो ट्रेड वार है ये जो टैरिफ बढ़ा रहे हैं ये किसी भी देश की इकोनॉमी के लिए ठीक नहीं है. सभी देशों को मिलजुलकर काम करना चाहिए, जितना टैरिफ कम रहेगा उतना ही फायदा मिलेगा. ये जो एक संरक्षण वार वाली पॉलिसी है यह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद नहीं है. ये देश टैरिफ बढ़ाएगा तो दूसरा भी टैरिफ बढ़ाएगा इस तरह से एक जंग सी छिड़ जाएगी जिससे सभी देशों को नुकसान होगा बढ़े हुए टैरिफ के कारण चीजें महंगी बिकेंगी जिसमें सिर्फ और सिर्फ आम जनता पिसेगी.

प्रश्न - चीन की 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना को लेकर भारत पॉजिटिव नहीं है इस मीटिंग में क्या भारत इस मुद्दे पर भी चर्चा कर सकता है?

उत्तर -  (यांग ई फांग)-चीन की 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना चीनी राष्ट्रपति ने साल 2011 से शुरू की है. इस परियोजना के बारे में भारत को शायद थोड़ी सी गलतफहमी है. यह प्रोजेक्ट पड़ोसी विदेशी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की एक नीति है. इस प्रोजेक्ट की मददस चीन विदेशों के साथ और ज्यादा आर्थिक सहयोग कर सकेंगे हम आशा करते हैं कि भारत भी इसमें शामिल हो जाए.

(अखिल) मैं आपको बताना चाहूंगा कि कई ऐसे मसले हैं जिनपर भारत संतुष्ट नहीं है जिसमें काफी हद तक सुरक्षा को लेकर है चूंकि यह पीओके से होकर बनाया जा रहा है इसलिए भारत को हमेशा इस प्रोजेक्ट से देश की सुरक्षा को लेकर आपत्ति रहेगी. इस मामले पर दोनों देशों को साथ बैठ कर एक दूसरे को विश्वास में लेकर बातचीत करनी होगी. भारत चीन के इस प्रोजेक्ट को किसी और नजरिए से देख रहा होगा तो वहीं चीन इस प्रोजेक्ट के बारे में अब तक भारत को समझा ही नहीं पा रहा है जबतक दोनों देश एक साथ बैठकर इन मुद्दों पर बातचीत नहीं करेंगे.

प्रश्न - क्या 'वन बेल्ट वन रोड' प्रोजेक्ट पर भारत के विरोध का कोई असर पड़ेगा या ये प्रोजेक्ट भारत की सहमति के बगैर नहीं पूरा हो सकता है?

उत्तर - (अखिल)- 'वन बेल्ट वन रोड' प्रोजेक्ट को भारत ने अभी तक अपना समर्थन नहीं दिया है लेकिन इस प्रोजेक्ट को लेकर नकारा भी नहीं है भारत का स्टैंड इस मुद्दे पर अभी किसी ओर नहीं रहा है भारत इस पर नजर रखे हुए है. बाकि और देशों से इस प्रोजेक्ट पर चीन को समर्थन मिल रहा है. भारत इस पर नजरें जमाए हुए है वो अभी किसी फैसले पर नहीं आया है कि इसका विरोध करे या समर्थन करे क्योंकि अभी तक भारत ने ऑफिशियली इस प्रोजेक्ट का विरोध नहीं किया है. (यांग ईफांग)- मेरे विचार से भारत सरकार ने कभी इसका खुले विचार से समर्थन नहीं किया

प्रश्न - हिंद महासागर में लगातार चीन अपनी दखल बढ़ाता जा रहा है और एक कृत्रिम द्वीप बनाने की भी बात चल रही है तो इसको लेकर भारत और चीन का संबंध प्रभावित होगा ?

उत्तर - यह क्षेत्रवाद का मामला है यह मेरा क्षेत्र है यह तुम्हारा क्षेत्र है ये उसी बात का मसला है मैने पहले ही बताया था कि दोनों ही देश इस मामले दोनों देश काफी समझदार हैं कूटनीतिक तौर पर दोनों देश काफी परिपक्व हैं और ऐसा भी नहीं है कि छोटे-मोटे मसलों से दोनों देशों के संबंध प्रभावित हो जाएं दोनों देशों के बीच हजारों साल पुराना संबंध है तो उससे प्रभावित होने की कोई गुंजाइश नहीं है जहां तक आप बात कर रहे हैं कि आइलैंड बनने की वो बातें अभी चीनी मीडिया में तो नहीं हैं ये खबरें वैसे तो पश्चिमी मीडिया में आती हैं. हमें यानि की चीनी मीडिया और भारतीय मीडिया को आपस में डायरेक्ट बात चीत करनी चाहिए ताकि क्योंकि वेस्टर्न मीडिया एशियाई देशों के बारे में हमेशा निगेटिव बातें ही लिखते हैं.