logo-image
ओडिशा नाव हादसे में मरने वालों की संख्या हुई सात, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी Punjab: संगरूर जेल में धारदार हथियार से हमला, दो कैदियों की मौत और 2 घायल Punjab: कांग्रेस को झटका, तेजिंदर सिंह बिट्टू ने छोड़ी पार्टी, बीजेपी में होंगे शामिल Karnataka: बेंगलुरु में विरोध प्रदर्शन पहले पुलिस ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव की मौजूदगी में कई कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल कर्नाटक: पुलिस ने कांग्रेस नेता रिजवान अरशद और रणदीप सिंह सुरजेवाला को हिरासत में लिया पंजाब में कांग्रेस को एक और बड़ा झटका पूर्व सांसद संतोख सिंह चौधरी की पत्नी करमजीत कौर आज दिल्ली में बीजेपी में शामिल हो गईं.

भारतीय पायलट का मामला जिनेवा संधि के तहत आएगा, नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा पाकिस्तान, जानें क्या हैं युद्ध बंदियों के नियम?

भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर को पाकिस्तान द्वारा बुधवार को हिरासत में लेने का मामला 1929 की जिनेवा संधि के तहत आएगा.

Updated on: 27 Feb 2019, 09:49 PM

नई दिल्ली:

भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर को पाकिस्तान द्वारा बुधवार को हिरासत में लेने का मामला 1929 की जिनेवा संधि के तहत आएगा. उनके विमान को गिराए जाने के बाद पाकिस्तान ने उन्हें हिरासत में ले लिया. पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने ट्विटर पर कहा, 'पाकिस्तानी सेना की हिरासत में सिर्फ एक पायलट है. विंग कमांडर के साथ सैन्य आचरण के मुताबिक सलूक किया जा रहा है.'

युद्ध बंदियों का सरंक्षण (पीओडब्ल्यू) करने वाले नियम विशिष्ट हैं. इन्हें पहले 1929 में जिनेवा संधि के जरिए ब्यौरे वार किया गया था और द्वितीय विश्व युद्ध से सबक सीखते हुए 1949 में तीसरी जिनेवा संधि में उनमें संशोधन किया गया था. नियमों के मुताबिक, जंगी कैदी का संरक्षण का दर्जा अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों में ही लागू होता है.

संधि के मुताबिक, युद्ध बंदी वह होते हैं जो संघर्ष के दौरान आमतौर पर किसी एक पक्ष के सशस्त्र बलों के सदस्य होते हैं जिन्हें प्रतिद्वंद्वी पक्ष अपनी हिरासत में ले लेता है. यह कहता है कि पीओडब्ल्यू को युद्ध कार्य में सीधा हिस्सा लेने के लिए उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.

इसके मुताबिक, उनकी हिरासत सज़ा के तौर पर नहीं होती है बल्कि इसका मकसद संघर्ष में उन्हें फिर से हिस्सा लेने से रोकना होता है. युद्ध खत्म होने के बाद उन्हें रिहा किया जाना चाहिए और बिना किसी देरी के वतन वापस भेजना चाहिए. हिरासत में लेने वाली शक्ति उनके खिलाफ संभावित युद्ध अपराध के लिए मुकदमा चला सकती है लेकिन हिंसा की कार्रवाई के लिए नहीं जो अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के तहत विधिपूर्ण है.

नियम साफतौर पर कहते हैं कि जंगी कैदियों के साथ हर परिस्थिति में मानवीय तरीके से सलूक किया जाना चाहिए. जिनेवा संधि कहती है कि वह हिंसा की किसी भी कार्रवाई के साथ-साथ डराने, अपमानित करने और सार्वजनिक नुमाइश से पूरी तरह से सरंक्षित हैं.