निर्भया की मां ने कहा- मानवाधिकार केवल दोषियों के हैं, मेरी बेटी के लिए नहीं
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर निर्भया की मां आशा देवी ने न्यूज नेशन से बातचीत में कहा- मेरी बेटी की जान चली गई. सात साल से इंसाफ के लिए भटक रही हूं.
नई दिल्ली:
निर्भया केस में दोषी मुकेश की अर्जी बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. मुकेश ने राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज जाने के फैसले को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर निर्भया की मां आशा देवी ने न्यूज नेशन से बातचीत में कहा- "मेरी बेटी की जान चली गई. सात साल से इंसाफ के लिए भटक रही हूं. मैं भी औरत हूं लेकिन कोर्ट में मुकेश की फांसी रुकवाने के लिए चार-चार महिला वकील पैरवी के लिए आ गईं. उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि मानवाधिकार सिर्फ दोषी के है, मेरी बेटी के नहीं."
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने निर्भया कांड (Nirbhaya Gangrape and Murder) के दोषी मुकेश की उस याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया, जिसमें उसने राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी. फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हमने फ़ाइल को देखा. सारे अहम दस्तावेज राष्ट्रपति के सामने रखे गए थे. इसलिए याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील में दम नहीं कि राष्ट्रपति के सामने पूरे रिकॉर्ड को नहीं रखा गया. राष्ट्रपति ने सारे दस्तावेजों को देखने के बाद ही दया याचिका को खारिज किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा का कोई आधार नहीं है. एक दिन पहले मुकेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था.
एक दिन पहले मंगलवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए दोषी मुकेश की ओर से दलील देते हुए अधिवक्ता अंजना प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा, मानवीय फैसलों में चूक हो सकती है. जीवन और व्यक्तिगत आजादी से जुड़े मसलों को गौर से देखने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा- माफी का अधिकार किसी की व्यक्तिगत कृपा न होकर, संविधान के तहत दोषी को मिला अधिकार है. राष्ट्रपति को मिले माफी के अधिकार का बहुत जिम्मेदारी से पालन ज़रूरी है. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के फैसले को भी कुछ आधार पर चुनौती दी जा सकती है.
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अंजना प्रकाश ने कहा, मुकेश की दया याचिका खारिज करने में तय प्रकिया का पालन नहीं हुआ और सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले के मुताबिक यह न्यायिक समीक्षा का केस बनता है. राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका में दिए तथ्यों पर बिना गौर किये, मनमाने ढंग से दया याचिका पर फैसला लिया गया.
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